Kisan Andolan: लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन संवैधानिक अधिकार, लेकिन दूसरों की स्वतंत्रता का हनन न हो

मौजूदा समय में जंतर-मंतर पर चल रहे कृषि कानून विरोधी प्रदर्शन को लेकर भी दिल्ली के उपराज्यपाल और पुलिस ने संवैधानिक प्रविधानों को ध्यान में रखते हुए ही अनुमति दी है। प्रदर्शनकारियों की संख्या और उनके प्रदर्शन का समय भी तय कर दिया गया है।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 03:09 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 03:09 PM (IST)
Kisan Andolan: लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन संवैधानिक अधिकार, लेकिन दूसरों की स्वतंत्रता का हनन न हो
सूझबूझ और उचित कार्रवाई से ही बनेगी बात

नई दिल्ली। लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन करना जनता का संवैधानिक अधिकार है, इसे छीना नहीं जा सकता। लेकिन इसकी सीमाएं अवश्य तय की जा सकती हैं। अगर यह विरोध प्रदर्शन दूसरों की स्वतंत्रता का हनन कर रहा हो तो उस दिशा में कुछ सख्त कदम भी उठाए जा सकते हैं। यहां पर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों की ही भूमिका महत्वपूर्ण बन जाती है। हमारा संविधान सभी नागरिकों को बिना किसी हथियार शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करने का अधिकार देता है। यह सही है कि राष्ट्रीय राजधानी के केंद्रीय इलाके में विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति देना बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहता है।

इससे आम जनता को होने वाली परेशानियों के प्रति भी आंखें नहीं मूंदी जा सकतीं। यहां आसपास केंद्रीय कार्यालय और तमाम दूतावास होने के कारण वीवीआइपी और विभिन्न देशों के राजनयिकों की सुरक्षा की दृष्टि से भी यह चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। कई बार प्रदर्शनकारी हिंसक भी हो जाते हैं और उन पर बल प्रयोग करना जरूरी हो जाता है। इस सूरत में आसपास की सुरक्षा व्यवस्था भी संवेदनशील तो बनी ही रहती है, पर विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार संवैधानिक होने के चलते इस पर रोक लगाना भी संभव नहीं है।

इसके लिए जगह निर्धारित कर दी जाती है। पहले प्रदर्शन के लिए वोट क्लब निर्धारित किया गया, फिर जंतर-मंतर को प्रदर्शन स्थल बना दिया गया।

तय शर्तो का हो सम्मान

मौजूदा समय में जंतर-मंतर पर चल रहे कृषि कानून विरोधी प्रदर्शन को लेकर भी दिल्ली के उपराज्यपाल और पुलिस ने संवैधानिक प्रविधानों को ध्यान में रखते हुए ही अनुमति दी है। प्रदर्शनकारियों की संख्या और उनके प्रदर्शन का समय भी तय कर दिया गया है। अगर किसान तय की गई शर्तो का उल्लंघन करते हैं तो अवश्य ही उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। या फिर अगर इनकी वजह से आम जनता को परेशानी हो रही हो तो भी कोई सख्त कदम उठाया जा सकता है, लेकिन सिंघु बार्डर या टीकरी बार्डर पर जो हो रहा है, वह पूर्णतया असंवैधानिक है।

आठ माह से हाईवे पर आवागमन बाधित हो रहा है। इन बार्डरों के आसपास की कालोनियों में रहने वालों का जीवन भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। वे लोग अपने ही घरों में कैद होकर रह गए हैं। उनकी सुरक्षा, उद्योग धंधे और सामाजिक जीवन भी खत्म सा हो गया है।

उपयुक्त स्थान का हो चयन

कुछ सौ या हजार प्रदर्शनकारी लाखों-करोड़ों आम जन से अहम नहीं हो सकते, इसलिए पहले आम जनता की परेशानी और स्वतंत्रता की चिंता की जानी चाहिए। कुछ शर्तो के साथ सांकेतिक प्रदर्शन की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों की तरह उन्हें सड़क और हाइवे पर घर बनाने और बसाने की इजाजत कतई नहीं दी जा सकती। पुलिस और सरकार को मिसाल पेश करने की जरूरत है। ऐसे मामलों में दी गई ढील को भविष्य के लिए नासूर बनने में देर नहीं लगती। न्यायपालिका को भी चाहिए कि इस तरह की स्थिति में स्पष्ट निर्णय दे। आम जनता की स्वतंत्रता का हनन न हो, यह सुनिश्चित करे। जंतर-मंतर के बजाय प्रदर्शनकारियों को ऐसा स्थान मुहैया कराना चाहिए, जहां वे अपनी आवाज भी उठा सकें और दिल्लीवासियों को परेशानी भी न हो।

राजनीतिक लाभ लेने की मची है होड़

दिल्ली में जैसे हालात उभरे हैं, उसमें अदालत की भूमिका काफी अहम हो जाती है। लेकिन इस मसले पर अदालत भी स्पष्ट निर्णय नहीं दे रही हैं। इसकी जिम्मेदारी कहीं सरकार तो कहीं पुलिस पर छोड़ दी गई है। जब अदालत इस मामले में खुलकर कोई आदेश नहीं दे रही है तो प्रशासन और सरकार भी टकराव लेने से बचने के रास्ते पर चलने लगते हैं। यह कतई सही नहीं है। एक बड़ी समस्या वोट बैंक की भी रहती है। राजनीतिक पार्टियां आम जनता को होने वाली परेशानी से ज्यादा अपने वोट बैंक की चिंता में लगी रहती हैं, इसीलिए कई राजनीतिक दल प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े होने का दावा और दिखावा करने में लगे हैं।

(लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा की संवाददाता संजीव गुप्ता से बातचीत पर आधारित)

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