नए कृषि कानून से निजी निवेश को मिलेगा बलः डा. एके सिंह

डा. सिंह ने कहा कि सरकार अपनी ओर से कृषि क्षेत्र की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी ओर से निवेश कर रही है लेकिन इसकी एक सीमा है। निजी निवेश यदि इस क्षेत्र में हो तो इससे बुनियादी सुविधाओं का तीव्र गति से विकास व विस्तार होगा।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Sat, 18 Sep 2021 07:45 AM (IST) Updated:Sat, 18 Sep 2021 07:48 AM (IST)
नए कृषि कानून से निजी निवेश को मिलेगा बलः डा. एके सिंह
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक ने कृषि क्षेत्र में निजी निवेश की बताई जरूरत।

नई दिल्ली [गौतम कुमार मिश्रा]। कृषि की बेहतरी के लिए जरूरी है कि इस क्षेत्र में निजी निवेश हो। नए कृषि कानून लोगों को इस क्षेत्र में निवेश के लिए प्रेरित करेंगे। सभी क्षेत्रों में लोग निजी निवेश का स्वागत करते हैं, यही सोच कृषि के क्षेत्र में भी होनी चाहिए। पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुंसधान संस्थान में वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज (मिलेट्स, इनमें ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो जैसे पोषक अनाज आते हैं) वर्ष घोषित किए जाने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संस्थान के निदेशक डा. एके सिंह ने कहा कि हरित क्रांति के बाद देश ने कृषि क्षेत्र में काफी उन्नति की है। लेकिन, हमारे लिए अनाज की बर्बादी एक बड़ी समस्या है। भंडारण की सुविधा नहीं होने के कारण उत्पादित खाद्यान्न, सब्जियां व फल की बड़ी मात्रा बर्बाद हो जाती है।

डा. सिंह ने कहा कि सरकार अपनी ओर से कृषि क्षेत्र की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी ओर से निवेश कर रही है, लेकिन इसकी एक सीमा है। निजी निवेश यदि इस क्षेत्र में हो तो इससे कृषि क्षेत्र से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं का तीव्र गति से विकास व विस्तार होगा।

कार्यक्रम में दिल्ली के अलावा हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों के किसान व इनके स्वजन जुटे थे। संबोधन में डा सिंह ने कृषक उत्पादन संगठन की खूबियां भी गिनवाई। उन्होंने कहा कि इन संगठनों के माध्यम से एकजुट होकर किसान बाजार की जरूरत के हिसाब से समय के साथ कदमताल कर सकेंगे। इस वर्ष संस्थान की ओर से कृषि से जुड़े अलग अलग क्षेत्रों में दस संगठन बनाने का लक्ष्य रखा गया है। कार्यक्रम में पद्मश्री से सम्मानित कंवल सिंह चौहान व संस्थान के प्रबंधन बोर्ड के सदस्य आरके सहरावत भी उपस्थित थे।

प्राचीन खानपान का बताया महत्व

‘कोदो, कुटकी, रागी, बाजरा, ज्वार अब बन गए हैं खास, स्वास्थ्य व सुपोषण के साथ करेंगे विकास।’ पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में आयोजित कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से आए किसानों को विज्ञानी इन पंक्तियों के माध्यम से भारत के प्राचीन खानपान के बारे में जब बता रहे थे, तब किसान तालियां बजा रहे थे। उनके साथ आए बच्चों के लिए यह जानना किसी आश्चर्य से कम नहीं था कि पहले थाली में गेहूं के आटे से बनी रोटी की जगह ज्वार व बाजरा से बनी रोटियां लोग चाव से खाते थे। पौष्टिकता में इनका कोई मुकाबला नहीं था।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. एके सिंह ने कहा कि आज मोटे अनाज हमारी थाली से दूर हो चुके हैं। इस दूरी को हमें कम करते हुए पूरी तरह समाप्त कर देना है। अच्छी बात यह है कि अब सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर इन कदन्न (मिलेट्स, इनमें ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो जैसे पोषक अनाज आते हैं) के महत्व को बाजार भी समझने लगा है। आलम यह है कि अब बाजरा से बिस्किट, ढोकला, ब्रेड, ब्राउनीज जैसे उत्पाद बनाए जा रहे हैं। कार्यक्रम के दौरान किसानों ने हैदराबाद स्थित भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के संबोधन का आनलाइन प्रसारण भी देखा। कार्यक्रम की समाप्ति पर परिसर में मौलश्री का पौधा लगाया गया।

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