जल बोर्ड के काम में बाधा डालते हैं राजनीतिक हस्तक्षेप, इस वजह से बनी है पानी की समस्या
दिल्ली की दो करोड़ आबादी को को साफ पानी पिलाने की जिम्मेदारी किसकी है? जल बोर्ड की। लेकिन समस्या यह है कि जल बोर्ड में राजनीतिक हस्तक्षेप हावी रहता है। यही वजह है कि अब तक की सरकारों ने जो भी कदम उठाएं हैं वे कभी कारगर साबित नहीं हुए।
नई दिल्ली, स्वदेश कुमार। दिल्ली की दो करोड़ आबादी को को साफ पानी पिलाने की जिम्मेदारी किसकी है? जल बोर्ड की। लेकिन समस्या यह है कि जल बोर्ड में राजनीतिक हस्तक्षेप हावी रहता है। यही वजह है कि अब तक की सरकारों ने जो भी कदम उठाएं हैं वे कभी कारगर साबित नहीं हुए। सरकारों ने सोचा कि निजीकरण के जरिये पानी की समस्या को दूर करेंगे। इस पर अमल करते हुए जल शोधन से लेकर वितरण तक के कार्य में निजी कंपनियों को आजमाया गया।
बस योजनाएं बनीं, अमल नहीं हुआ
जल प्रबंधन में वोट की राजनीति आ चुकी है। उसी वजह से पूरा ढांचा ही चरमरा गया है। नांगलोई में पानी वितरण का जिम्मा निजी कंपनी को दिया गया। वितरण के लिए इलाके तय थे। पाइपलाइन भी वहीं तक सीमित थी, लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए इसमें अनधिकृत कालोनियों और झुग्गी बस्तियों को जोड़ तो दिया, नई पाइपलाइन बिछाई नहीं। ऐसे में पानी का दबाव कम हो गया और पूरी योजना ठप हो गई। इसी तरह की योजना वसंत विहार और मालवीय नगर में भी फेल हो चुकी है।
राजधानी के कई और इलाके हैं जहां इस तरह की समस्या आ रही है। यहां पाइपलाइन में छेद कर दूसरे इलाकों में पानी पहुंचा दिया जाता है। अलग से कोई ढांचागत व्यवस्था नहीं की गई। इसी तरह का एक और उदाहरण है μलोमीटर का। सरकार ने जोरशोर से इसका प्रचार किया, योजना आई और लाभ सिफर ही रहा। लाभ क्यों नहीं मिला? क्योंकि इसकी समीक्षा ही नहीं की गई। फ्लोमीटर से देखा जाता है कि किसी इलाके में पानी का दबाव कितना है। उसे बढ़ाया जाना चाहिए या घटाना चाहिए। इस पर भी कोई काम नहीं हुआ। करोड़ों रुपये की अन्य योजनाएं भी लाई गईं लोगों को इसका कोई फायदा नहीं हुआ।
पर्याप्त संख्या में कर्मचारी तक नहीं
सबसे बड़ी समस्या रखरखाव की है। जल बोर्ड के पास 10 साल पहले 30 हजार से अधिक कर्मचारी थे। पाइपलाइन की देखरेख से जुड़े थे। आज इनकी संख्या 15 हजार से भी कम हो गई है। बीते दस सालों से नई नियुक्ति बंद है। आधे से भी
कम कर्मचारियों से काम चलाया जा रहा है। राजधानी में 24 घंटे पानी की आर्पूित शुरू कर दी जाए तो कई इलाकों में गंदे पानी की शिकायत नहीं रहेगी। दरअसल अभी सिर्फ सुबह और शाम निश्चित समय तक पानी आता है। बाकी समय पाइपलाइन
सूखी रहती है। जिस वजह से इसमें जंग लग जाता है। यही वजह है कि जब भी पानी आता है तो कुछ देर के लिए उसका रंग मटमैला होता है। गंदगी साथ में आती है।
राज्यों से बातचीत के जरिये ही निकलेगा समाधान
सबसे जरूरी है पानी की उपलब्धता। दिल्ली के पास अपना कोई जल स्नोत नहीं है। इसलिए वह पानी के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश पर निर्भर है। ऐसे में जरूरी है कि सरकारों के बीच सामंजस्य बना रहे। लेकिन राज्यों के बीच तालमेल की कमी अक्सर देखने को मिलती है।
गर्मियों में जब राजधानी में पानी की मांग सबसे ज्यादा होती है तो उसे कम पानी मिलता है। जब जरूरत कम की होती है तो आर्पूित अधिक होती है। इस समस्या से बातचीत के जरिये ही निपटा जा सकता है। इसके अलावा हरियाणा की तरफ से कभी-कभी प्रदूषित जल की आर्पूित भी कर दी जाती है। जिसमें अमोनिया की मात्रा अधिक होती है। इस वजह से भी कई बार दिल्ली में पानी की आर्पूित बंद करनी पड़ती है।
(एसए नकवी, संयोजक, सिटीजंस फ्रंट फार वाटर डेमोक्रेसी।)