बुलंदशहर के पूर्व विधायक हाजी अलीम की पत्नी की हत्या के आरोपितों के बरी होने से कठघरे में पुलिस
रिहाना की हत्या महज एक पहेली बनकर न रह जाए। अगर उनकी हत्या उनके सौतेले बेटों ने नहीं की तो आखिर किसने की इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।सवाल यह भी है कि आठ वर्ष बाद निचली अदालत ने तीनों आरोपितों को बरी कर दिया है।
नई दिल्ली [शुजाउद्दीन]। बुलंदशहर के पूर्व विधायक हाजी अलीम की दूसरी पत्नी की हत्या के तीनों आरोपितों तो बरी हो गए। लेकिन, जांच करने वाली पुलिस कठघरे में आ गई है। इस मामले में पुलिस की जांच पर ही सवाल उठने लगे हैं। अगर आरोपित निर्दोष थे तो हत्यारे कहां गए। अगर दोषी हैं तो पुलिस सुबूत क्यों नहीं जुटा पाई।
आठ वर्षों में तीनों आरोपित अनस, दानिश और नदीम ने बहुत कुछ झेला है। कई वर्ष जेल में भी रहे। पुलिस ने इतने कमजोर सुबूत पेश किए कि कोर्ट के समक्ष बचाव पक्ष की दलीलें भारी हो गईं। रिहाना की हत्या से एक दिन पहले ही अलीम हज यात्रा के लिए सऊदी अरब गए थे, हत्या की सूचना मिलने पर यात्रा को छोड़कर वह दिल्ली आ गए थे।
कहां गए गहने और नकदी
आरोपितों के वकील जेड बाबर चौहान ने बताया कि पूर्व विधायक हाजी अलीम ने खुद काेर्ट में बताया था कि उनकी पत्नी की हत्या के बाद घर में रखी नकदी और गहने गायब हैं। लेकिन, पुलिस ने इस पहलु से मामले की जांच ही नहीं की, पुलिस हत्या को लेकर ही जांच करती रही। पुलिस ने इस केस में जिन आरोपितों को गिरफ्तार किया था, उनके पास से नकदी और गहने बरामद नहीं हुए। अगर उनके पास गहने और नकदी नहीं मिले तो घर से कहां गायब हो गए।
रिहाना की हत्या पहेली बनकर न रह जाए
रिहाना की हत्या महज एक पहेली बनकर न रह जाए। अगर उनकी हत्या उनके सौतेले बेटों ने नहीं की तो आखिर किसने की, इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। सवाल यह भी है कि आठ वर्ष बाद निचली अदालत ने तीनों आरोपितों को बरी कर दिया है, अब पुलिस किस तरह से रिहाना को इंसाफ दिलवा पाएगी। जब इस मामले में पुलिस के पास कोई गवाह नहीं है। अगर पुलिस ने गलत आरोपितों को पकड़ा था तो सही आरोपित कौन है। जो इतने वर्ष बाद भी पुलिस की नजरों से बचा हुआ है।
देश में सजा की दर बहुत कम है। ठीक तरह से पुलिस जांच नहीं कर पाती है, जिसका नतीजा यह होता है अधिकतर मामलों में एक वक्त बाद कोर्ट से आरोपित बरी हो जाते हैं। रिहाना की हत्या के मामले में पुलिस को लूट और डकैती के दृष्टिकोण से भी जांच करनी चाहिए थी। यह केस आठ साल तक कोर्ट में चला, अंत में आरोपित बरी हो गए। इससे पता चलता है कि पुलिस ने गंभीरता से मामले की जांच नहीं की। पुलिस को घर के अंदर से ठीक तरह से फिंगरप्रिंट जुटाने चाहिए थे।
मनीष भदौरिया, वरिष्ठ अधिवक्ता कड़कड़डूमा कोर्ट
जब तक पुलिस को कोर्ट का आर्डर नहीं मिल जाता, तब तक इस मामले में कुछ भी कहना उचित नहीं होगा। आर्डर को ठीक तरह से पढ़ा जाएगा, उस पर कानूनी राय लेने के बाद पुलिस इस केस को उच्च न्यायालय में लेकर जाएगी।
संजय कुमार सेन, जिला पुलिस उपायुक्त उत्तर पूर्वी जिला।