कृषि कानून विरोधी आंदोलन के समर्थन में मुनिरका पहुंचे जेएनयू छात्रों को लोगों ने बैरंग लौटाया

कृषि कानून विरोधी आंदोलन के समर्थन में बृहस्पतिवार को जेएनयू के 25-30 वामपंथी छात्र-छात्राएं अचानक मुनिरका गांव पहुंच गए और ढपली बजाकर नारे लगाकर लोगों को कृषि कानून विरोधी आंदोलन का समर्थन करने की अपील करने लगे। ये गांव के लोगों को पर्चे बांट रहे थे।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Thu, 04 Mar 2021 05:11 PM (IST) Updated:Thu, 04 Mar 2021 05:11 PM (IST)
कृषि कानून विरोधी आंदोलन के समर्थन में मुनिरका पहुंचे जेएनयू छात्रों को लोगों ने बैरंग लौटाया
जेएनयू के गेट तक उन्हें वापस छोड़कर आए गांव वाले, दोनों पक्षों में कुछ देर तक कहासुनी भी हुई।

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। कृषि कानून विरोधी आंदोलन के समर्थन में बृहस्पतिवार को जेएनयू के 25-30 वामपंथी छात्र-छात्राएं अचानक मुनिरका गांव पहुंच गए और ढपली बजाकर, नारे लगाकर लोगों को कृषि कानून विरोधी आंदोलन का समर्थन करने की अपील करने लगे।

ये लोग गांव के लोगों को पर्चे बांट रहे थे और केंद्र सरकार के विरोध में नारे लगा रहे थे। पर्चे पर भी कृषि कानूनों के विरोध में सिंघु बार्डर समेत अन्य जगहों पर चल रहे आंदोलन का समर्थन करने की अपील लिखी थी। ढपली व नारेबाजी का शोर सुनकर भाजपा के आरके पुरम विधानसभा प्रभारी आनंद सिंह, भाजपा कार्यकर्ता विकास मुद्गल, मुनिरका मार्केट ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र बंसल, के अलावा नरेंद्र शौर्य, संजय टोकस, कृष्ण टोकस, प्रदीप राय आदि मौके पर पहुंच गए।

इन लोगों ने छात्रों से प्रदर्शन संबंधी पुलिस का अनुमति पत्र मांगा तो वे लोग नहीं दिखा पाए। इस पर गांव के लोगों ने उन्हें वापस जेएनयू कैंपस जाने के लिए कहा। 

इस बात को लेकर दोनों पक्षों में बहस होने लगी तो गांव के अन्य लोग भी आ गए। गांव के लोगों ने उनकी ढपली व नारे बंद करवा दिए और उन्हें चुपचाप जेएनयू कैंपस वापस जाने को कहा। गांव के लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रदर्शनकारियों ने वहां से वापस जाना ही बेहतर समझा। गांव के लोग इन्हें जेएनयू के गेट तक छोड़कर आए। गांव वाले तभी वापस लौटे जब सभी वामपंथी छात्र कैंपस के अंदर चले गए।  

मालूम हो कि तीन कृषि कानूनों के विरोध में बीते तीन माह से अधिक समय से किसान आंदोलन कर रहे हैं। ये दिल्ली की सीमाओं पर धरना देकर बैठे हुए हैं। 26 जनवरी को आयोजित ट्रैक्टर रैली से पहले किसानों के आंदोलन में काफी भीड़ थी मगर लाल किले पर किए गए उपद्रव के बाद से इनकी संख्या कम होती चली गई। कुछ किसान संगठन इससे अलग भी हो गए थे। 

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