दिल्ली के गांवों में भी पराली में लगाई जा रही आग, 15 दिन में चौथी घटना आई सामने

पराली जलाने का यह चौथा मामला सामने आया है। इससे पहले भी नरेला विधानसभा क्षेत्र के घोगा गांव में दो बार व बाजितपुर गांव में पराली जलाई गई थी। घोगा गांव में पराली जलाने का पहला मामला आठ अक्टूबर को व दूसरा 15 अक्टूबर को सामने आया था।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Mon, 25 Oct 2021 02:42 PM (IST) Updated:Mon, 25 Oct 2021 02:42 PM (IST)
दिल्ली के गांवों में भी पराली में लगाई जा रही आग, 15 दिन में चौथी घटना आई सामने
नांगल ठाकरान गांव-कंझावला रोड पर तीन एकड़ खेत में पराली जलाने से आसपास धुआं ही धुआं हो गया।

नई दिल्ली [सोनू राणा]। राजधानी दिल्ली में जहां पंजाब व हरियाणा में जलाई जा रही पराली से प्रदूषण बढ़ रहा है, वहीं दिल्ली में जल रही पराली का धुआं भी हवा में जहर घोल रहा है। बढ़ते प्रदूषण के बीच दिल्ली में पराली जलाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। बवाना विधानसभा क्षेत्र के नांगल ठाकरान गांव में रविवार दोपहर को पराली जलाई गई। नांगल ठाकरान गांव-कंझावला रोड पर ड्रेन के पास दिनदहाड़े तीन एकड़ खेत में पराली जलाने से आसपास धुआं ही धुआं हो गया। इससे आसपास के लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।

यह पहली बार नहीं है, जब दिल्ली में पराली जलाई गई। बीते 15 दिनों में पराली जलाने का यह चौथा मामला सामने आया है। इससे पहले भी नरेला विधानसभा क्षेत्र के घोगा गांव में दो बार व बाजितपुर गांव में पराली जलाई गई थी। घोगा गांव में पराली जलाने का पहला मामला आठ अक्टूबर को व दूसरा 15 अक्टूबर को सामने आया था। बाजितपुर गांव में भी 15 अक्टूबर में पराली जलाई गई थी। नांगल ठाकरान गांव में बीते वर्ष भी पराली जलाने के मामले सामने आए थे।इस बारे में पक्ष जानने के लिए संबंधित अधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया।

किसानों की बातें

दिल्ली में किसान पंजाब की तरह बड़े स्तर पर पराली नहीं जलाते। खेत में जो थोड़ा कबाड़ होता है, उसे इकट्ठा कर आग लगाई जाती है, उससे इतना प्रदूषण नहीं होता। इसके अलावा बीते वर्ष खेत में पराली पर बायो डिकंपोजर का छिड़काव करवाया गया था, लेकिन वह कारगर साबित नहीं हुआ। यह भी परेशानी का विषय है।

-अजीत, किसान, दरियापुर गांव

एक तरफ जहां बायो डिकंपोजर 25 दिन में पराली को गलाता है, उधर दूसरी ओर एक महीने में तो विलायती मूली, मेथी, पालक और सरसों तैयार हो जाती है। किसान पट्टे पर जमीन लेकर खेती करते हैं। ऐसे में उनको काफी नुकसान होता है। पराली जलाने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचता। किसानों को बेलिंग मशीन, टर्निंग मशीन, हे-रैक आदि उपकरण उपलब्ध करवा दिए जाएं तो वह पराली न जलाएं।

पप्पन सिंह गहलोत, किसान, तिगीपुर

इस वर्ष गांवों में लोग न के बराबर पराली जला रहे हैं। लोगों को लगातार जागरूक भी किया जा रहा है। अब जिस मशीन से धान की फसल की कटाई की जाती है, वह काफी अच्छी है। इसके बाद सुपर सीडर मशीन से गेहूं की बुआई की जाएगी। इस मशीन का इस्तेमाल करने से पराली जलाने की नौबत नहीं आती।

सुमेर ठाकरान, किसान, नांगल ठाकरान

किसानों के पास पराली न जलाने का कोई विकल्प नहीं है। न तो उनके पास इतने पैसे हैं कि वह खेतों में मजदूर लगाकर पराली को जड़ से उखड़वा दें और न ही उनके पास आधुनिक उपकरण हैं। मुंडका इलाके के खेतों में फिलहाल पानी भरा हुआ है। कम से कम 15 दिन पानी को सूखने में ही लगेंगे।

-रोशन लाकड़ा, किसान, मुंडका

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