दिल्ली का यह गांव आजादी के बाद से आज तक परिवहन सुविधा से है महरूम, दो किमी पैदल चलने पर मिलती है बस
दिल्ली में एक ऐसा भी गांव है जहां आजादी के बाद से अब तक परिवहन सुविधा नहीं पहुंच सकी है। मुंडका विधानसभा क्षेत्र के इस गांव के लोग आज भी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली से जुड़े वाहनों में सफर करने के लिए दो किलोमीटर पैदल चलते हैं।
नई दिल्ली [सोनू राणा]। देश की राजधानी दिल्ली में एक ऐसा भी गांव है जहां आजादी के बाद से अब तक परिवहन सुविधा नहीं पहुंच सकी है। मुंडका विधानसभा क्षेत्र के इस गांव के लोग आज भी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली से जुड़े वाहनों में सफर करने के लिए दो किलोमीटर पैदल चलते हैं। परिवहन सुविधा शुरू करवाने के लिए लोग पार्षद, विधायक को तो फरियाद कर ही चुके हैं, इसको लेकर वह कई बार प्रदर्शन भी कर चुके हैं, लेकिन समस्या जस की तस है। परिवहन सुविधा का अभाव होने की वजह से करीब 15 सौ की आबादी वाले गांव के एक फीसद लोग भी सरकारी नौकरी नहीं पा सके हैं। क्योंकि गांव में पांचवी कक्षा तक का ही स्कूल है। आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें दूसरे गांवों में जाना पड़ता है। ऐसे में सुबह दो किलोमीटर पैदल जाना व दो किलोमीटर पैदल आना बच्चों के लिए संभव नहीं है।
वहीं आसपास के गांवों के शरारती तत्व भी शराब आदि का सेवन करके रास्ते पर खड़े रहते हैं। गांव के लोगों के अनुसार वह गांव की बहू-बेटियों से छेड़छाड़ भी करते हैं, जिस वजह से ग्रामीणों ने बेटियों को स्कूल भेजना ही बंद कर दिया है।मजबूरी में गांवों के लोग खेती करने को मजबूर हैं।ग्रामीणों का कहना है कि अगर गांव में बस सुविधा शुरू हो जाए तो गांव की तकदीर ही बदल जाएगी।
ग्रामीण रवि ने बताया कि परिवहन सुविधा न होने की वजह से गांव की बेटियों को पैदल ही आवागमन करना पड़ता है। दो किलोमीटर लंबे रास्ते में आसपास के गांवों के शरारती तत्व शराब आदि का सेवन करके खड़े रहते हैं। वह बेटियों से छेड़छाड़ करते हैं। इस वजह से लोगों ने बेटियों को बाहर भेजना भी बंद कर दिया।
ग्रामीण अनिल ने कहा कि गांव में काफी समस्या हैं, लेकिन परिवहन सुविधा न होना सबसे बड़ी समस्या है।बच्चों को पढ़ने के लिए भी दूसरे गांवों में जाना पड़ता है वो भी रोज चार किलोमीटर पैदल चलकर।गर्मियों के दौरान तो कई बार बच्चे बेहोश होकर गिर जाते हैं। देश आजाद हो गया है, लेकिन आज भी गांव में बस नहीं आती।
ग्रामीण नरेंद्र ने कहा कि शाम होते ही गांव में सुनसान हो जाता है।जौन्ती गांव से लेकर गांव तक पहुंचने वाले रास्ते पर अंधेरा हो जाता है। ऐसे में जंगली जानवरों का तो डर बना ही रहता है, लूटपाट का भी खतरा रहता है। दो किलोमीटर के रास्ते में कोई मदद करने वाला भी नहीं है।
स्थानीय निवासी सचिन ने बताया कि पास के ही कटेवड़ा, जटखोड़ आदि गांवों में दर्जनों बसें जाती हैं, लेकिन हमारे गांव में एक बस भी नहीं आती। रैलियों में नेता यहां से लोगों को बसों में बैठाकर ले जाते हैं, लेकिन गांव के लोगों की सुविधा के लिए कोई बस नहीं चलाई गई है। इस वजह से लोगों को काफी परेशानी हो रही है।