देशभर के मां-बाप के लिए राहत की खबर, बच्चों के लिए कोरोना के घातक होने का नहीं मिला साक्ष्य
Coronavirus Servey अध्ययन में तमिलनाडु केरल महाराष्ट्र व दिल्ली-एनसीआर के 10 अस्पतालों में भर्ती 2600 बच्चों का डाटा एकत्रित किया गया जिसमें पाया गया कि अस्पतालों में भर्ती कोरोना के 10 फीसद बच्चों में ही गंभीर बीमारी देखी गई।
नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। कोरोना की पहली व दूसरी लहर में एम्स सहित देश के 10 अस्पतालों में भर्ती किए गए बच्चों पर अध्ययन करने के बाद डॉक्टरों की एक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं मिला जिससे यह साबित हो कि तीसरी लहर में बच्चे अधिक संक्रमित होंगे। डॉक्टरों की इस कमेटी ने अमेरिका, यूरोप सहित कई देशों में कोरोना से पीड़ित हुए बच्चों के आंकड़े की भी समीक्षा की। जिसमें दावा किया गया है कि बच्चों में कोरोना की बीमारी गंभीर होने का भी साक्ष्य नहीं है। यह रिपोर्ट द लांसेट कोविड 19 कमिशन की वेबसाइट पर ऑनलाइन प्रकाशित की गई है।
इस अध्ययन में एम्स के पीडियाट्रिक विभाग के विशेषज्ञ डॉ. एसके काबरा, डॉ. शेफाली गुलाटी, डॉ. राकेश लोढ़ा व मौलाना आजाद मेडिकल कालेज के डॉ. सिद्धार्थ राम जी शामिल हैं। इस अध्ययन में तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र व दिल्ली-एनसीआर के 10 अस्पतालों में भर्ती 2600 बच्चों का डाटा एकत्रित किया गया। इसमें पहली लहर व दूसरी लहर के दौरान भर्ती किए गए बच्चों पर तुलनात्मक अध्ययन किया गया। जिसमें पाया गया कि अस्पतालों में भर्ती कोरोना के 10 फीसद बच्चों में ही गंभीर बीमारी देखी गई। वहीं अस्पतालों में भर्ती बच्चों में मृत्यु दर 2.4 फीसद पाई गई। इनमें भी 40 फीसद ऐसे बच्चे थे जिन्हें पहले से कोई गंभीर बीमारी थी।
इस अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कोरोना के मरीजों में 12 फीसद बच्चे व नवयुवा हैं। 10 साल से कम उम्र के मरीजों की संख्या तीन से चार फीसद है। अमेरिका में कोरोना के मरीजों में 12.4 फीसद मरीज 18 साल से कम उम्र के हैं।
यूरोप के 30 देशों में 15 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या नौ फीसद है। ज्यादातर बच्चों को हल्का संक्रमण होता है। इस वजह से बच्चे आसानी से ठीक हो जाते हैं और मृत्यु दर भी बहुत कम है। फिर भी नवजात व किसी दूसरी बीमारियों से पीड़ित बच्चों को खतरा रहता है। ऐसे बच्चों की निगरानी जरूरी है।