स्पीकिंग ग्रे प्लेटफार्म के जरिये मानसिक समस्याओं पर खुलकर बात करने की जरूरत

WHO की रिपोर्ट कहती है कि 10 से 20 फीसद बच्चे मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं कोरोना काल में तो यह समस्या औऱ भी बढ़ गई। उत्तराखंड के देहरादून की अदिति जोशी ने इस चुनौती को समझा और ‘स्पीकिंग ग्रे’ प्लेटफार्म के जरिये मानसिक समस्याओं पर संवाद शुरू किया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 12:33 PM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 12:38 PM (IST)
स्पीकिंग ग्रे प्लेटफार्म के जरिये मानसिक समस्याओं पर खुलकर बात करने की जरूरत
अदिति बताती हैं, ‘मैंने पाया कि लोग अवसाद, तनाव, बेचैनी जैसी समस्याओं से संघर्ष करते रहते हैं।

अंशु सिंह। जून महीने में प्रतिष्ठित 'द डायना अवार्ड' से सम्मानित की गईं अदिति का छोटी उम्र में समाजसेवा के प्रति रुझान पैदा हो गया था। जब वह वर्ष की थीं, तब इसमें सक्रिय रूप से भागीदारी करने लगीं। कालेज में पढ़ते हुए उन्होंने मेंस्ट्रुअल अवेयरनेस से जुड़े प्रोजेक्ट किए। उन्होंने वर्कर्स के मुद्दे पर भी काम किया। अपने कुछ निजी एवं आसपास के लोगों के अनुभवों को देखते हुए उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य एवं भावनात्मक विकास के क्षेत्र में काम करने का निर्णय लिया। इसके लिए पहले गहन अध्ययन किया।

विशेषज्ञों से बात की और आखिरकार पिछले साल स्पीकिंग ग्रे नाम से एक प्लेटफार्म लांच किया। अदिति बताती हैं, ‘मैंने पाया कि लोग अवसाद, तनाव, बेचैनी जैसी समस्याओं से संघर्ष करते रहते हैं। लेकिन किसी से मदद नहीं मांगते। क्योंकि उन्हें खुद ही समस्या की गंभीरता का एहसास या उसके बारे में उचित जानकारी नहीं होती है। इसका कई बार बहुत खतरनाक परिणाम निकलता है। मैंने बहुत से लोगों को मानसिक अवसाद के कारण अपनी जिंदगी समाप्त करते देखा या उसके बारे में सुना है।‘

मुंबई से इंजीनियरिंग करने वाली अदित ने पढ़ाई के बाद करीब डेढ़ साल नौकरी की। लेकिन उनका वहां मन नहीं लगा और उन्होंने समाजसेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का निर्णय लिया। वह बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें खुद ही नहीं पता था कि कैसे काम करना है? थेरेपिस्ट्स से कैसे संपर्क करते हैं? उन्होंने सोचा कि जब यह स्थिति उनकी है, तो दूसरे लोगों का क्या हाल होगा? कहती हैं, ‘मैंने पहले के छह महीने खुद से अध्ययन किया। वस्तुस्थिति को समझने की कोशिश की। फिर वालंटियर्स एवं इनटर्न्‍स की मदद से लोगों से संपर्क करना शुरू किया। कालेज स्टूडेंट्स ने काफी सपोर्ट किया। हमने सामुदायिक स्तर पर जनजागरूकता के कई कार्यक्रम किए। आज कई अंतरराष्ट्रीय पार्टनर्स भी हमसे जुड़े हैं।‘

महामारी ने निश्चित तौर पर अदिति के सामने कई चुनौतियां पेश कीं। वित्तीय मुश्किलें रहीं। लेकिन समुदाय के सहयोग ने प्रेरित किया। डिजिटल माध्यम से लोगों से संपर्क करना, कार्यक्रम आयोजित करना आसान रहा। अदिति बताती हैं, ‘कोविड की वजह से पूरे विश्व के लोगों की सोच में बदलाव आया है। जिस तरह से देश-विदेश के लोगों ने हमारे अभियान का समर्थन किया, मुमकिन है कि उसका इतना सकारात्मक असर पहले देखने को नहीं मिलता। एक और उत्साहवर्धक बात यह रही कि जब लोगों ने खुद से स्वीकार किया कि वे किसी प्रकार की मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं, तो दूसरों के प्रति उनके रवैये एवं सोच में बदलाव आया।‘

आज हजारों की संख्या में किशोर से लेकर युवा इनके प्लेटफार्म एवं इंस्टाग्राम पेज से अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर रहे हैं। स्पीकिंग ग्रे से जुड़े विशेषज्ञों की टीम उनकी मदद करती है। वेबसाइट पर विश्व भर के सुसाइड हेल्पलाइन नंबर्स हैं। कोई भी यहां से सहायता प्राप्त कर सकता है। अदिति मानती हैं कि अवसाद या अन्य मानसिक बीमारियों को लेकर समाज में अलग-अलग प्रकार की भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। जैसे अवसाद कई प्रकार के होते हैं। सभी को एक रूप में नहीं देखा जा सकता है।

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