शौर्य गाथाः आखिरी सांस तक आतंकियों से लोहा लेते रहे नायक दिनेश चंद्र

कारगिल युद्ध के बाद कश्मीर में हुए आपरेशन रक्षक में नायक दिनेश चंद्र शर्मा ने छह आतंकियों का सामना किया था। इसी मुठभेड़ में एक आतंकी ने उन पर गोली चला दी थी। पहली गोली बाजू से निकल गई थी लेकिन दूसरी गोली उनके सीने में जा लगी थी।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 01:37 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 01:37 PM (IST)
शौर्य गाथाः आखिरी सांस तक आतंकियों से लोहा लेते रहे नायक दिनेश चंद्र
शहीद नायक दिनेश चंद्र की फाइल फोटो ’ सौजन्य-स्वजन

नई दिल्ली [रितु राणा]। भारतीय सैनिकों के त्याग और वीरता को दुनिया सलाम करती है। इतिहास जवानों के वीरता की कहानियों से भरा पड़ा है। इन्हीं वीरों में से एक अमर जवान नायक दिनेश चंद्र शर्मा भी थे। 27 वर्ष की आयु में अपनी जान की परवाह किए बगैर वह छह आतंकियों से लड़े, जिनमें से दो को उन्होंने मार गिराया। वह आतंकियों से आखिरी सांस तक लोहा लेते रहे।

आपरेशन रक्षक में शहीद हुए थे दिनेश चंद्र शर्मा

कारगिल युद्ध के बाद कश्मीर में हुए आपरेशन रक्षक में नायक दिनेश चंद्र शर्मा ने छह आतंकियों का सामना किया था। इसी मुठभेड़ में एक आतंकी ने उन पर गोली चला दी थी। पहली गोली बाजू से निकल गई थी, लेकिन दूसरी गोली उनके सीने में जा लगी थी। आतंकियों से लड़ते-लड़ते वह देश के लिए शहीद हो गए थे। दिनेश चंद शर्मा का जन्म 11 अगस्त 1972 में पूर्वी दिल्ली के करावल नगर इलाके में हुआ। उनके बड़े भाई सीआरपीएफ में सूबेदार चंद्र शेखर शर्मा ने बताया कि 28 मार्च 2000 को उनके भाई को आपरेशन रक्षक के दौरान सीने में गोली लगी और वह दुनिया में नहीं रहे, इस बात की जानकारी उनके परिवार को खजूरी पुलिस ने रात के समय उनके निवास स्थान करावल नगर पहुंचकर दी। खबर सुनते ही पूरा परिवार सदमे में चला गया। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनका दिनेश अब इस दुनिया में नहीं रहा।

दिनेश शर्मा के नाम पर भजनपुरा में बना शहीदी स्थल

दिनेश के पिता हरिदत्त शर्मा ने अपने बेटे को लोगों के दिलों में जिंदा रखने के लिए भजनपुरा चौक पर उनका स्मृति स्थल बनवाने के लिए सरकार से अपील की थी, जिसके बाद विधायक मोहन सिंह बिष्ट द्वारा उनके स्मृति स्थल का उद्घाटन किया गया।

वहीं, बाद में कई वर्षो तक सरकारी विभागों ने उनके स्मृति स्थल की देखरेख व साफ सफाई पर ध्यान नहीं दिया, जिसके चलते वह स्थान असामाजिक तत्वों का डेरा बन गया था। लेकिन अब करावल नगर परिवहन संघर्ष समिति से जुड़े युवाओं के प्रयास से उनके स्मृति स्थल को एक नया रूप मिल गया। वहीं, स्थानीय विधायक व पार्षद भी उनके स्मृति स्थल की देखरेख कर रहे हैं।

मौत के बाद मिला अंतिम पत्र पढ़ कर नहीं रुक रहे थे आंसू

दिनेश चंद्र शर्मा की पत्नी आशा शर्मा बताती हैं कि उनके पति दो महीने की छुट्टी बिताकर 23 मार्च 2000 को कश्मीर चले गए थे। वहां पहुंचने की खबर देने के लिए उन्होंने पत्र भी लिखा था। लेकिन वह पत्र उनके दुनिया से चले जाने के बाद मिला था। उसे पढ़ कर आंखों से आंसू नहीं रुक पा रहे थे। उस समय हमारी बेटी मेघा केवल छह महीने की थी। पूरा परिवार उनके जाने से काफी समय तक सदमे में रहा था, लेकिन अब पूरा परिवार गर्व से उन्हें याद करता है।

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