भूजल स्तर को बढ़ाने में प्राकृतिक जल स्त्रोत ही सबसे बेहतर माध्यम

दिल्ली हो या एनसीआर बढ़ते शहरीकरण से अगर सबसे ज्यादा कुछ प्रभावित हुआ है तो वह है प्राकृतिक जल स्नोत। शहरीकरण ने जल स्रोतों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। इसका सीधा असर भूजल स्तर पर पड़ रहा है क्योंकि भूजल स्तर को बढ़ाने में प्राकृतिक जल स्नोत ही सबसे बेहतर माध्यम हैं।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Wed, 14 Apr 2021 01:16 PM (IST) Updated:Wed, 14 Apr 2021 01:16 PM (IST)
भूजल स्तर को बढ़ाने में प्राकृतिक जल स्त्रोत ही सबसे बेहतर माध्यम
भूजल स्तर को बढ़ाने में प्राकृतिक जल स्त्रोत ही सबसे बेहतर माध्यम हैं।

नई दिल्ली, [रणविजय सिंह]। दिल्ली हो या एनसीआर बढ़ते शहरीकरण से अगर सबसे ज्यादा कुछ प्रभावित हुआ है तो वह है प्राकृतिक जल स्त्रोत। शहरीकरण ने जल स्रोतों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। इसका सीधा असर भूजल स्तर पर पड़ रहा है, क्योंकि भूजल स्तर को बढ़ाने में प्राकृतिक जल स्त्रोत ही सबसे बेहतर माध्यम हैं।

लेकिन दिल्ली व एनसीआर के शहरों में बड़ी-बड़ी सोसायटी और हाई राइज बिल्डिंग, र्शांपग माल बनाने की आपाधापी में जोहड़ों और तालाबों को बगैर सोचे-समझे पाट दिया गया है। लेकिन हमें यह समझना होगा कि बेहतर कल के लिए शहरों में भी जल संग्रहण बहुत जरूरी है।
सभी भवनों में सख्ती से वर्षा जल संग्रहण प्रणाली की व्यवस्था और वर्तमान समय में मौजूद जलाशयों का जीर्णोद्धार किया जाए तो दिल्ली एनसीआर में भी धरा जल से भर उठेगी।
अतिक्रमण से मिले निजात
दिल्ली में करीब एक हजार जलाशय हैं, जिन्हें अब अदालत का संरक्षण मिल चुका है। इसलिए यहां नए जलाशय विकसित करने की जरूरत नहीं है। पहले से मौजूद जलाशयों को ही अगर पुनर्जीवित कर दिया जाए तो दिल्ली में पानी की समस्या काफी हद तक समाप्त हो जाएगी।
यहां जलाशयों की जमीन पर अतिक्रमण बड़ी समस्या है। इसलिए जरूरी है कि सभी जलाशयों को अतिक्रमण मुक्त किया जाए। दिल्ली के ज्यादातर जलाशय सूख चुके हैं। सौ से ज्यादा जलाशय ऐसे हैं जिसमें गंदा पानी भरा है। नालियों का गंदा पानी उन जलाशयों में गिरता है, जिसमें सीवरेज भी मिला होता है। सबसे पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि नालियों का गंदा पानी जलाशय में न गिरने पाए।
नालियों के पानी को वेटलैंड में पौधों के माध्यम से साफ करने के बाद जलाशय में संग्रहण किया जाना चाहिए। इसके लिए यह
सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि पानी में बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) की मात्रा 10 पार्ट पर मिलियन (पीपीएम) या उससे कम हो।
सरकार का हो सहयोग
दिल्ली में 100 वर्ग मीटर और उससे बड़े सभी भूखंडों में बने भवनों में वर्षा जल संग्रहण प्रणाली लगाने का प्रविधान है। इस नियम को सख्ती से लागू करने की जरूरत है। सिर्फ कागजी प्रविधान से बात नहीं बनेगी। लोगों में पहले की तुलना में वर्षा जल संग्रहण के लिए जागरूकता बढ़ी है।
दिल्ली में कई आरडब्ल्यूए वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था करने को इच्छुक हैं। उनको सरकार की तरफ से प्रशासनिक मदद मिलनी चाहिए ताकि कोई संगठन पार्क में वर्षा जल संग्रहण प्रणाली लगाना चाहते तो उसे विभागों के चक्कर न काटने पड़े।
इस अभियान में कारपोरेट सोशल रिस्पांसब्लिटी (सीएसआर) फंड का भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
इससे बड़े स्तर पर लोग खुद वर्षा जल संग्रहण के लिए आगे आएंगे। दिल्ली में हर साल 611 मिलीमीटर बारिश होती है।
इसका बड़ा हिस्सा वर्षा जल संग्रह पिट्स बनाकर संग्रहित किया जा सकता है। इससे दिल्ली में पेयजल की जरूरतें पूरी करने में भी मदद मिलेगी।
निगरानी और रखरखाव जरूरी
दिल्ली में पहले से ही अनेक सरकारी भवनों, फ्लाईओवर और सोसायटी में वर्षा जल संग्रहण के लिए पिट्स बने हुए हैं। दिल्ली देश के उन शहरों में से एक है जहां स्वैच्छिक वर्षा जल संग्रहण पिट्स यानी गड्ढे बड़ी संख्या में बने हुए तो हैं लेकिन उसका रखरखाव ठीक नहीं है।
हर साल उनकी सफाई नहीं होती। इस वजह से ज्यादातर पिट्स चालू हालत में नहीं होते जबकि उसका रखरखाव बहुत आसान है। सफाई के लिए पिट्स में भरे कचरे और मिट्टी को निकालना होता है। इसलिए अधिकतम दो हजार रुपये खर्च करके उसका रखरखाव संभव है।
दूसरी बात यह है कि वर्षा जल संग्रहण पिट्स का कोई ठोस डाटा नहीं है। निगरानी की कोई कारगर व्यवस्था भी नहीं है। इसलिए जानकारी के अभाव में भी रखरखाव ठीक से नहीं हो पाता। लिहाजा, जल बोर्ड के पास एक प्रस्ताव भेजने की तैयारी है ताकि सभी वर्षा जल संग्रहण प्रणाली का आनलाइन डाटा एकत्रित किया जा सके। इससे हर किसी को वर्षा जल संग्रहण प्रणाली की सूचना मिलने में आसानी होगी। इससे निगरानी व रखरखाव बेहतर हो सकेगा।
योजना से बनेगी बात
केंद्र सरकार ने जल संग्रहण के लिए अभियान शुरू किया है। राज्य से लेकर जिला स्तर तक के अधिकारियों को कार्ययोजना दी गई है। इसके तहत लोगों को जल संग्रहण के लिए प्रेरित करने से लेकर कार्ययोजना को धरातल पर उतारने के निर्देश दिए गए हैं। अभियान में छतों पर बारिश के पानी को सहेजने के लिए वर्षा जल संग्रहण प्रणाली लगाने, जलाशयों को विकसित करने और अधिक से अधिक पौधे लगाने की बात कही गई है।
(ज्योति शर्मा, संस्थापक, फोर्स, गैर सरकारी संगठन)
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