रहने योग्य शहरों की सूची में बहुत पीछे है देश की राजधानी दिल्ली, बेंगलुरु पहले स्थान पर
रिपोर्ट के मुताबिक सुख सुविधाओं जीवन की गुणवत्ता आर्थिक अवसरों की उपलब्धता सतत विकास और लोगों की सोच के आधार पर बेंगलुरु पहले चेन्नई दूसरे और शिमला तीसरे स्थान पर है। भुवनेश्वर चौथे मुंबई पांचवें और दिल्ली छठे पायदान पर है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली देश की राजधानी जरूर है, लेकिन रहने योग्य शहरों की सूची में कई राज्यों की राजधानी से भी पीछे है। ज्यादातर मानकों में दिल्ली को प्रथम श्रेणी यानी 60 फीसद अंक भी नहीं मिलते। यह सामने आया है सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरनमेंट (सीएसई) की नई सांख्यिकीय विश्लेषण रिपोर्ट स्टेट आफ इंडियाज एन्वायरमेंट में। आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय शहरों में सतत विकास और रहने की स्थिति आज भी बहुत अच्छी नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक, सुख सुविधाओं, जीवन की गुणवत्ता, आर्थिक अवसरों की उपलब्धता, सतत विकास और लोगों की सोच के आधार पर बेंगलुरु पहले, चेन्नई दूसरे और शिमला तीसरे स्थान पर है। भुवनेश्वर चौथे, मुंबई पांचवें और दिल्ली छठे पायदान पर है। भोपाल, रायपुर, गांधीनगर और जयपुर क्रमश: सातवें, आठवें, नौवें और दसवें स्थान पर है।
रिपोर्ट बताती है कि भारतीय शहरों में तेजी से विस्तार हुआ है, लेकिन आवश्यक नगर पालिका सेवाओं, आर्थिक और अन्य अवसरों को बनाए रखने में ज्यादातर शहर विफल रहे हैं। आलम यह है कि इन शहरों में सीवेज उपचार का फीसद तक बेहद कम है। कुल मिलाकर 28 फीसद सीवेज का ही उपचार किया जा रहा है। अंडमान- निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, लक्षद्वीप, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड के राज्य और केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) अपने शहरों में सीवेज का शोधन बिल्कुल भी नहीं करते।
13 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपने सीवेज का 20 फीसद से भी कम का शोधन करते हैं। सात अन्य राज्य 20 से 50 फीसद का उपचार करते हैं। केवल पांच राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपने यहां 50 फीसद से अधिक सीवेज को शोधित करते हैं।
सुनीता नारायण (महानिदेशक, सीएसई) का कहना है कि भारतीय शहरों के मामले में आंकड़े स्पष्ट रूप से बताते हैं कि उनमें विकास की दिशा अस्थिर है। इन्हें स्मार्ट और विकसित शहर बनाने के लिए अभी लंबा सफर तय करने की जरूरत है। राज्य सरकारों की भूमिका तो इसमें सबसे अहम है ही, एक आम नागरिक के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता। राज्यों की राजधानियों की तुलना में देश की राजधानी दिल्ली को तो बहुत कुछ करने की जरूरत है।