अब समझ आया इस साल क्यों दिल्ली में स्मॉग ने तोड़ डाले रिकॉर्ड, जानें कारण

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पिछले कई दिनों से एक गैस चैम्बर बनी हुई है। इसके पीछे पराली जलाना भी एक बड़ा कारण है और इस साल पराली जलाने की घटनाएं पिछले साल के मुकाबले ज्यादा हुई हैं...

By Prateek KumarEdited By: Publish:Fri, 16 Nov 2018 06:03 PM (IST) Updated:Fri, 16 Nov 2018 06:23 PM (IST)
अब समझ आया इस साल क्यों दिल्ली में स्मॉग ने तोड़ डाले रिकॉर्ड, जानें कारण
अब समझ आया इस साल क्यों दिल्ली में स्मॉग ने तोड़ डाले रिकॉर्ड, जानें कारण

नई दिल्‍ली, एजेंसी। दिल्ली में स्मॉग ने इस साल आम जन का जीना मुहाल कर रखा है। पिछले कई दिनों से दिल्ली प्रदूषण के लिहाज से एक गैस चैम्बर बनी हुई है। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें से एक बड़ा कारण पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना भी है। पिछले साल की तुलना में इस साल पराली जलाने के मामले ज्‍यादा हुए हैं, यह कहना है एनवायरमेंट पॉल्यूशन प्रिवेंशन एंड कंट्रोल अथॉरिटी के अध्‍यक्ष भूरेलाल का। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा नियुक्‍त किए हुए इपीसीए अध्‍यक्ष भूरेलाल ने कहा कि इतनी सख्‍ती के बावजूद इस साल सबसे ज्‍यादा पराली जलाने के मामले हुए हैं। उन्‍होंने कहा कि लोगों को अपनी आदत में बदलाव लाना होगा।

बताया पराली का उपयोग
पीएचडी चैंबर के द्वारा आयोजित वर्कशॉप में उन्‍होंने पराली के दूसरे उपयोग करने की बात कही साथ ही इस बात पर जोर दिया कि वायु प्रदूषण से बचने के लिए इसे जलाने से मना किया। उन्‍होंने कहा कि पराली खाद का एक महत्‍वपूर्ण साधन हो सकता है। इसे जमीन में मिला दिया जाए तो यह खाद के काम में लाया जा सकता है।

जलाने से लगातार बढ़ रहा प्रदूषण
हरियाणा और पंजाब में लगातार पराली जलाने से दिल्‍ली में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ जाता है इसलिए यह एक गंभीर समस्‍या बनी हुई है। पिछले गुरुवार को राष्‍ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण का स्‍तर इतना बढ़ गया कि यह एक आपातकाल जैसी स्‍थिति में पहुंच गया। हालांकि पराली के साथ-साथ पटाखों ने इस वायु प्रदूषण को और गहरा कर दिया था।

एयर क्‍वालिटी इंडेक्‍स पहुंचा सबसे ऊपर 
एयर क्‍वालिटी इंडेक्‍स सबसे ज्‍यादा 642 पर मापा गया था। अध्‍यक्ष ने कहा कि इस साल पराली जलाने को लेकर सबसे ज्‍यादा सख्‍ती बरती गई मगर फिर भी किसानों ने जमकर पराली जलाई। उन्‍होंने कहा कि पराली को मिट्टी में घुलने में 45 दिनों का समय लगता है तब जाकर यह खाद बनता है। वहीं किसानों के पास मात्र 25 दिनों का समय होता है इस कारण वह इसे जला देते हैं। अग र इस समय को कम कर दिया जाए तो यह समस्‍या खत्‍म हो सकती है।

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