Kisan Andolan: आखिर कब खत्म होगी किसानों की राह रोकने वाली जिद, UP-दिल्ली और हरियाणा के लाखों लोग हैं परेशान
Kisan Andolan सुप्रीम कोर्ट अपने एक पुराने फैसले में यह कह चुका है कि धरना-प्रदर्शन के नाम पर रास्तों को अवरुद्ध करने की अनुमति नहीं दी जा सकती तब फिर इसका कोई औचित्य नहीं कि किसान संगठनों की जिद के चलते देश की राजधानी दिल्ली के रास्ते बाधित बने रहें।
नई दिल्ली [सौरभ श्रीवास्तव]। यह स्वागत योग्य है कि सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों द्वारा दिल्ली के सीमांत इलाकों में रास्ता अवरुद्ध किए जाने का संज्ञान लिया और यह कहा कि हर हाल में रास्ते खोले जाने चाहिए, लेकिन उसे यह भी आभास होना चाहिए कि ये रास्ते लगभग आठ माह से बाधित हैं और सरकार एवं किसान संगठनों की बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। पिछले कुछ समय से दोनों पक्षों में कोई बातचीत ही नहीं हो रही है। इसके चलते रास्ते अवरुद्ध पड़े हुए हैं और लाखों लोग प्रतिदिन परेशानी उठा रहे हैं। उचित यह होता कि सुप्रीम कोर्ट सरकार पर सारी जिम्मेदारी डालने के बजाय अपने स्तर पर यह सुनिश्चित करता कि अवरुद्ध मार्ग खुलें।
दिल्ली के रास्ते बाधित बने रहें
आखिर जब सुप्रीम कोर्ट अपने एक पुराने फैसले में यह कह चुका है कि धरना-प्रदर्शन के नाम पर रास्तों को अवरुद्ध करने की अनुमति नहीं दी जा सकती तब फिर इसका कोई औचित्य नहीं कि किसान संगठनों की जिद के चलते देश की राजधानी दिल्ली के रास्ते बाधित बने रहें। नए कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर कुछ किसान पिछले लगभग नौ माह से गाजीपुर बार्डर, सिंघु बार्डर और टिकरी बार्डर पर सड़क बंद करके धरना दे रहे हैं जिससे दिल्ली से गाजियाबाद व नोएडा और हरियाणा आने-जाने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
शाहीन बाग में भी चला महीनों तक प्रदर्शन
गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शाहीनबाग में प्रदर्शन करने वालों ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय लगभग चार माह तक दिल्ली-नोएडा सड़क को बंद रखा था। उस समय भी सुप्रीम कोर्ट ने प्रदर्शन के नाम पर सड़क बंद नहीं करने का आदेश दिया था। इसका पालन नहीं हो रहा है।
हक की मांग को लेकर लोगों को परेशान करना ठीक नहीं
ऑकिसी विषय पर असहमति को लेकर प्रत्येक व्यक्ति को आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन इससे दूसरे लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए। दुर्भाग्य से इसे ध्यान में नहीं रखा जा रहा है। कभी सड़क तो कभी रेल की पटरियों पर प्रदर्शनकारी बैठ जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट को लोगों की परेशानी समझनी चाहिए और अगली सुनवाई लगभग एक माह बाद निर्धारित करने के बजाय जल्द से जल्द करनी चाहिए।