जानिए किताबों ने कैसे बदली सागर की जिंदगी, सपने पूरे करने के साथ लिखी कामयाबी की नई इबारत
कंस्ट्रक्शन वर्कर पिता ने कभी सोचा नहीं था कि उनका बेटा एक दिन अपना कारोबार भी करेगा। वह तो सागर को सरकारी नौकरी करने के लिए प्रेरित करते थे क्योंकि वह स्थायी होती है। लेकिन सागर के अपने सपने थे।
नई दिल्ली [अंशु सिंह]। आम परिवारों में जन्मे युवा अपने सपने पूरे करने के साथ लगातार कामयाबी की नई इबारत लिख रहे हैं। नई-नई पहल कर रहे हैं। जैसे जबलपुर के सागर आजाद ने मुश्किल हालात के बीच पहले नौकरी की। फिर उद्यमिता में एक नये सफर की शुरुआत। एक एसएमई के रूप में रजिस्टर्ड ‘चैंप रीडर्स एसोसिएशन’ के जरिये वह न सिर्फ
किताबों से जुड़े इवेंट्स आयोजित करते हैं, बल्कि बुक रीडिंग को प्रमोट भी करते हैं। सागर कहते हैं कि कोई काम छोटा नहीं होता है। बस अपने सपने को पूरा करने का हौसला चाहिए।
मध्य प्रदेश के जबलपुर में जन्मे सागर के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उनके ऊपर घर की बड़ी जिम्मेदारी थी। लेकिन वह कुछ ऐसा करना चाहते थे, जिससे खुद की हालत सुधारने के साथ-साथ समाज और देश को भी कुछ दे सकें। 2011 में 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह दोस्तों के साथ कोटा चले गए। वहां उन्होंने दूरस्थ शिक्षा के तहत ग्रेजुएशन करने के साथ-साथ छोटी-मोटी नौकरी की।
एक दिन किसी ने उन्हें क्रासवर्ड बुक स्टोर में वैकेंसी के बारे में बताया, जिसकी तब शुरुआत ही हुई थी। सागर को स्टोर में नौकरी मिल गई। वहां उन्हें काम करने के साथ किताबें पढ़ने का सुनहरा अवसर मिला। धीरे-धीरे उसमें उनकी दिलचस्पी गहरी होती गई। वह बताते हैं, ‘दो-तीन महीने के अंदर मैंने बहुत-सी किताबें पढ़ीं। अपने ज्ञान को बढ़ाया। मुझे एक किताब से काफी प्रेरणा मिली, जिसमें कहा गया था कि अगर जीवन में आगे बढ़ना है, तो उद्यमिता एक प्रभावी रास्ता हो सकता है।‘
कोटा में नई शुरुआत
कोटा में देशभर से स्टूडेंट्स मेडिकल एवं इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए जाते हैं। सागर स्टूडेंट्स से इंटरैक्ट करते थे। उनकी मुश्किलों एवं चुनौतियों को समझने की कोशिश करते थे। वह बताते हैं, ‘मैंने देखा था कि कई स्टूडेंट्स सिर्फ अपने पैरेंट्स के दबाव में कोटा तैयारी के लिए आते हैं। उनकी खुद की दिलचस्पी इंजीनियरिंग करने में नहीं होती। इस कारण वे परेशान रहते थे। मैं उन्हें किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करता था।‘ सागर की मानें, तो किताबों की दुनिया एवं उसके बाजार से पहला सबसे बड़ा एक्सपोजर उन्हें 2012 में दिल्ली में हुए विश्व पुस्तक मेले से हुआ। वहीं यह आइडिया आया कि क्यों न देश के बड़े लेखकों को कोटा आमंत्रित किया जाए।
इवेंट्स आयोजिए किए जाएं, जिसमें युवाओं का लेखकों से सीधा संवाद हो सके। वह बताते हैं कि जैसे किसी भी नई चीज का विरोध होता है, दिक्कतें आती हैं, उनके साथ भी वही सब हुआ। जब वह अपने आइडिये को लेकर स्थानीय लोगों के पास गए, तो किसी को उस पर विश्वास नहीं हुआ। लोगों ने मजाक उड़ाया। उन्हें लगता ही नहीं था किताबों से जुड़े इवेंट्स कामयाब हो सकते हैं। क्योंकि किसी को इस बात का आभास ही नहीं था कि आइटी, इंजीनियरिंग आदि की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स ही सबसे ज्यादा नावेल्स पढ़ते हैं।
वक्त लगा, लेकिन 2012 में सागर ने बुक रीडिंग सेशन आयोजित कर एक शुरुआत कर दी। इस इवेंट की कामयाबी के बाद उनके पास और भी प्रस्ताव आने लगे। 2013 में इन्होंने दुर्जाय दत्ता के साथ इवेंट किया, जो बेहद कामयाब रहा। एक हजार से अधिक लोग शामिल हुए। वह बताते हैं, ‘रविंदर सिंह का इवेंट हमारा टर्निंग प्वाइंट रहा। दो हजार से अधिक लोग पहुंचे थे उसमें।‘
नये लेखकों को देते हैं मंच
सागर बताते हैं, ‘2015-16 के आसपास मुझे लगा कि बड़े लेखकों को तो प्राय: लोग जानते हैं। लेकिन ऐसे तमाम युवा हैं, जो लिखते तो हैं, पर उन्हें मंच नहीं मिलता। उन्हें किताबें प्रकाशित कराने में भी दिक्कतें आती हैं। इसके बाद अपने
एक दोस्त की मदद से हमने ‘चैंप रीडर्स एसोसिएशन’ की नींव रखी। इसके माध्यम से हम उभरते हुए लेखकों को प्रमोट करते हैं।‘ आज कोटा के अलावा वह जयपुर, जोधपुर, उदयपुर जैसे शहरों के स्कूलों-कालेजों में रीडिंग सत्र करवाते हैं। लेखकों के टाक शो होते हैं। आगे चलकर इन्होंने दिल्ली, पुणे में भी इवेंट्स कराए। इसमें देश के अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर के लेखकों के इवेंट्स शामिल रहे।
मेहनत पर किया भरोसा
कंस्ट्रक्शन वर्कर पिता ने कभी सोचा नहीं था कि उनका बेटा एक दिन अपना कारोबार भी करेगा। वह तो सागर को सरकारी नौकरी करने के लिए प्रेरित करते थे, क्योंकि वह स्थायी होती है। लेकिन सागर के अपने सपने थे। वह कहते हैं, मैं कभी मेहनत करने से पीछे नहीं हटा। आलोचनाओं से सीखा और आगे बढ़ता गया। आज दोस्तों के साथ
माता-पिता को भी मुझ पर नाज है।