दिल्ली मेरी यादें: स्कूल बंक कर दोस्तों के साथ देखी थी 'दोस्ती', छात्रों से जुड़ गया अटूट रिश्ता

शहीद भगत सिंह कालेज में प्रधानाचार्य रहने के दौरान छात्रों से एक अटूट रिश्ता जुड़ गया था। 1975 में इस कालेज में लेक्चरार था। 2007 में पदोन्नति हुई और इसी कालेज में प्रधानाचार्य बन गया। 12 वर्ष तक कालेज के दोनों शिफ्ट में प्रधानाचार्य का कार्यभार संभाला।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 02:46 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 02:47 PM (IST)
दिल्ली मेरी यादें: स्कूल बंक कर दोस्तों के साथ देखी थी 'दोस्ती', छात्रों से जुड़ गया अटूट रिश्ता
65 वर्षीय डा. पीके खुराना दिल्ली विवि के शहीद भगत सिंह कालेज के पूर्व प्रधानाचार्य रहे हैं

 नई दिल्ली। रानी दिल्ली की गलियों में ही खेलते-कूदते बड़ा हुआ हूं। यहां की हरेक गलियों और चौक-चौराहों से अच्छी तरह वाकिफ हूं। आज भी जब इन जगहों से गुजरता हूं तो बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं। मुङो याद है वो पुराना हडसन लेन जहां केवल झुग्गी झोपड़ी हुआ करती थी। उन झुग्गियों में एक हमारी झुग्गी भी थी। अब तो वहां बड़ी बड़ी कोठियां बन गई हैं। शा¨पग कांप्लेक्स बन गए हैं। पुरानी दिल्ली की एक खासियत है यहां के लोग बड़े मिलनसार होते हैं। मेरा जन्म पहाड़गंज में हुआ था, इसलिए प्राथमिक शिक्षा भी वहीं हुई।

11वीं कक्षा में मेरी आल इंडिया स्तर पर 14वीं रैंक आई थी। उन दिनों अखबारों में मेरिट लिस्ट आती थी, उसमें मेरा भी नाम था। इस परिणाम से मेरे घर के लोग जितने खुश थे उतनी ही खुशी बस्ती के लोगों को भी हुई थी। आज तो हडसन लेन में लोग बगल वाले घर में कौन रहता है यह भी नहीं जानते। डीडीए ने झुग्गियों को तोड़कर जमीन बेच दी। उसके बाद वहां मुखर्जी नगर स्थानांतरित कर दिया गया। तब से हडसन लेन की सूरत ही बदल गई।

सुबह नौकरी करता और शाम को कालेज जाता

अब कालेज के दिनों की कुछ दिलचस्प किस्से बताता हूं। दिल्ली विवि के श्रीराम कालेज से मैंने बीकाम की पढ़ाई की। लंच के समय सभी छात्र कैंटीन जाते वहां खाते, चाय-काफी पीते, लेकिन मैं कभी कैंटीन नहीं गया। वहां जाने का मतलब था खाने-पीने में पैसे खर्च होना और हमारी आर्थिक स्थिति वैसी थी नहीं कि ज्यादा खर्च कर पाते। आज भी यह बात दिल को कचोटती है। स्नातक के बाद मैंने दिल्ली स्कूल आफ इकोनामिक्स से एमकाम किया। पढ़ाई के दौरान ही सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट में इंस्पेक्टर की नौकरी लग गई। सुबह कमला नगर में ड्यूटी करता और शाम को कालेज जाता। कक्षा में दोस्त मुङो इंस्पेक्टर साहब बोलकर चिढ़ाते थे। हंसराज कालेज के सामने मलकागंज क्रासिंग के पास एक रावलपिंडी छोले वाला था। बचपन में तो कभी वहां खा नहीं पाया था, लेकिन नौकरी लगने के बाद वहां के छोले भटूरे खूब खाए।

मंगेतर के साथ देखी थी फिल्म निकाह

बचपन से ही मुझे फिल्में देखने का बहुत शौक था। नौवीं कक्षा में यह शौक भी पूरा हो गया। अजमेरी गेट पर मेरे एक भाई की दुकान थी। उनके और दोस्तों के साथ पहली बार न्यू अमर टाकीज में दोस्ती फिल्म देखी थी। एक बार स्कूल बंक कर घंटाघर के पास रोबिन टाकीज में दोस्त के साथ एक फिल्म देखी थी। तीसरी फिल्म पत्नी निरुपमा के साथ तब देखी थी, जब हमारी शादी नहीं हुई थी, रिश्ता तय हो गया था। आप कह सकते हैं, तब वह मेरी फियांसी थीं। फिल्म देखने जाने का किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है। निरुपमा विदेश मंत्रलय में सीनियर अकाउंटेंट थीं। मैं यूजीसी में नौकरी करता था। हमारा रिश्ता तय हो गया था। लेकिन उन दिनों फोन नहीं होते थे तो एक दूसरे से बात कैसे करते। दफ्तर में एक महिला अधिकारी थीं, जो मेरी बहुत अच्छी दोस्त थीं। वह मुझसे हमेशा कहती कि तुम निरुपमा से मिलते क्यों नहीं हो। कभी उन्हें फिल्म तो दिखा लाओ। हमें मिलवाने के लिए एक दिन उन्होंने ही अपने दफ्तर के लैंडलाइन नंबर से फोन कर निरुपमा के साथ फिल्म देखने के लिए मीटिंग फिक्स की। उसके बाद हम दोनों दरियागंज के गोलचा सिनेमा हाल में निकाह फिल्म देखने गए। इस फिल्म को देखने का आइडिया भी मेरी दोस्त ने ही दिया था।

जीवन परिचय

पहाड़गंज में जन्में 65 वर्षीय डा. पीके खुराना दिल्ली विवि के शहीद भगत सिंह कालेज के पूर्व प्रधानाचार्य रहे हैं। उन्होंने दिल्ली विवि के श्रीराम कालेज आफ कामर्स से बीकाम व दिल्ली कालेज आफ इकोनामिक्स से एमकाम की पढ़ाई की। दिल्ली सेल्स टैक्स विभाग में इंस्पेक्टर, यूनिवर्सटिी ग्रांट कमीशन (यूजीसी), शहीद भगत सिंह कालेज में लेक्चरार भी रह चुके हैं। 12 वर्ष तक शहीद भगत सिंह कालेज में प्रधानाचार्य का कार्यभार संभालने के बाद 2019 में सेवानिवृत्त हुए।

छात्रों से जुड़ गया अटूट रिश्ता

शहीद भगत सिंह कालेज में प्रधानाचार्य रहने के दौरान छात्रों से एक अटूट रिश्ता जुड़ गया था। 1975 में इस कालेज में लेक्चरार था। 2007 में पदोन्नति हुई और इसी कालेज में प्रधानाचार्य बन गया। 12 वर्ष तक कालेज के दोनों शिफ्ट में प्रधानाचार्य का कार्यभार संभाला। आमतौर पर हम छात्र संघ के बच्चों से नाराज ही रहते थे। उनसे बहस भी हो जाया करती थी। लेकिन कालेज से निकलने के बाद वही बच्चे हमें कभी नहीं भूलते थे। छात्र संघ का हिस्सा रहा हर बच्चा आज भी मुङो फोन करता है, मिलने आता है। यही बच्चे अब परिवार का हिस्सा लगते हैं।

[डा. पीके खुराना की संवाददाता रितु राणा से बातचीत पर आधारित]

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