दिल्ली में लैंडफिल साइट्स : ट्रामेल मशीनों की स्थापना से तीनों ही लैंडफिल साइटें हो पाएंगी खत्म
उत्तरी और पूर्वी निगम क्षेत्र में आने वाली लैंडफिल साइट पर भी इसके जरिये प्रयास हो रहे हैं। लेकिन इसके लिए सबसे बड़ी दिक्कत निगम के सामने यह आ रही है कि जो ट्रामेल मशीनों के जरिये निकली मिट्टी को कहां डाला जाए?
नई दिल्ली, निहाल सिंह। राजधानी दिल्ली में लैंडफिल साइट्स खत्म करने के लिए तीनों नगर निगम काफी अच्छे प्रयास कर रहे हैं। इन प्रयासों के तहत ही ट्रामेल मशीनों की स्थापना तीनों ही लैंडफिल साइट्स ओखला, गाजीपुर और भलस्वा में की गई है। इसके सकारात्मक प्रयास भी दिखाई दे रहे हैं। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम ने तो विभिन्न प्रयासों से ओखला लैंडफिल साइट की ऊंचाई भी 20 मीटर तक कम हुई है।
उत्तरी और पूर्वी निगम क्षेत्र में आने वाली लैंडफिल साइट पर भी इसके जरिये प्रयास हो रहे हैं। लेकिन इसके लिए सबसे बड़ी दिक्कत निगम के सामने यह आ रही है कि जो ट्रामेल मशीनों के जरिये निकली मिट्टी को कहां डाला जाए? फिलहाल तो निगम ने इसे बदरपुर में बन रहे प्लांट के अलावा अन्य कुछ स्थानों और पार्को में डाला है, पर यह स्थायी समाधान नहीं है। इसके लिए निगमों को ऐसे स्थानों की जरूरत है जहां पर तीनों लैंडफिल साइट पर ट्रामेल की गई मिट्टी को डाला जा सके। इसके लिए विभिन्न एजेंसियां मिलकर कार्य करेंगी तो इसका भी समाधान हो सकता है। इसके लिए किसी बड़ी खाली जगह की जरूरत है।
अगर, जगह नहीं मिलती हैं तो नगर निगम के पास इन लैंडफिल साइट की कै¨पग करने का ही विकल्प है। इसके जरिये पहले पाइ¨पग के माध्यम से लैंडफिल के अंदर जमा गैस और कीचड़ को निकाला जाता हैं और एक प्रक्रिया के तहत इन पर घास लगाई जाती है। यह तो लैंडफिल साइट की समस्या हो गई, लेकिन आगे से दिल्ली में और लैंडफिल साइट नहीं बढ़ें इसके लिए नागरिकों को जागरूक होना होगा और स्थानीय निकायों को सहयोग देना होगा। अगर, दिल्ली की बात करें तो यहां पर तेजी से आबादी बढ़ रही है आबादी बढ़ेगी तो जाहिर सी बात है घरों से निकलने वाले कूड़े की मात्र भी बढ़ेगी।
इस कूड़े को लैंडफिल साइट पर लेकर जाते हैं तो उसकी ऊंचाई बढ़ाने में नागरिक ही जिम्मेदार होंगे। इसके लिए प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह अपने घरों से निकलने वाले कूड़े का घर पर अलग-अलग करें तो इस समस्या से बहुत हद तक निजात पाई जा सकती है। इसके लिए हर नागरिक को अपनी आदत यह बनानी होगी कि गीला व सूखा कूड़ा अलग-अलग रखें। इससे स्थानीय निकायों को भी लाभ होता है और शहर में लैंडफिल साइट की समस्या का भी हल होता है। सालिड वेस्ट मैनेजमैंट उपनियम ग्रुप हाउसिंग सोसाइटियों और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के साथ मार्केट एसोसिएशन को कूड़े के उत्पादन के स्थान पर ही उसके निस्तारण के लिए प्रेरित करते हैं। ग्रुप हाउसिंग सोसायटियों को इसके लिए कूड़े से खाद बनाने के लिए प्लांट लगाने चाहिए और अपने कूड़े का निस्तारण खुद ही करना चाहिए।
यह खाद सोसायटी के पार्को को हरा-भरा रखने के लिए भी उपयोग रहेगी। पार्को के लिए अलग से खाद पर अतिरिक्त खर्च भी नहीं होगा। इतना ही नहीं लोग बाजार जाते हैं तो वहां भी गीले-सूखे कूड़े के लिए उपयुक्त कूड़ेदान का ही प्रयोग करें। गीला कचरा हरे कूड़ेदान में तो सूखा कचरा नीले कूड़ेदान में डालना चाहिए। साथ ही हमें बच्चों को भी बचपन से इसके लिए जागरूक करना होगा। अगर शहर स्वच्छ रहेगा तो रहने वाले नागरिकों का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। (संजय कुमार जैन, ईएनसी (सेवानिवृत्त), दक्षिणी दिल्ली नगर निगम)
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