खुद न पहुंच सका तो सैनिक की फोटो के साथ युवती ने लिए थे 7 फेरे, पढ़िए- रोचक स्टोरी
शादी के तीन महीने बाद जगजीत सिंह घर लौटे और पूरे परिवार को उन पर गर्व महसूस हुआ।
नई दिल्ली [रितु राणा]। जवानों के लिए देश सर्वोपरि है। सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना युवाओं का सपना होता है। देश सेवा से बढ़कर कोई कर्म नहीं होता, यह कहना है उत्तर-पूर्वी दिल्ली के ब्रिजपुरी इलाके में रहने वाले सेवानिवृत्त नायक जगजीत सिंह मडाड का। सेना में भर्ती होना उनका सपना था जो पूरा भी हुआ। 1947 में हरियाणा के कैथल जिले में जन्मे जगजीत सिंह ने बचपन में ही आर्मी में जाने का इरादा कर लिया था। 1962 और 1965 की लड़ाई की खबरें वह दिनभर रेडियो पर सुना करते थे। सैनिकों के शौर्य की गाथा सुनकर उनके अंदर भी दुश्मनों से लड़ने के लिए हौसले बुलंद हो जाते थे।
देश सेवा के लिए गए जगजीत, फोटो के साथ पूरी हुई रश्म
1966 में जगजीत सिंह की सेना में जाने की इच्छा पूरी हुई और सिग्नल कोर में रेडियो मैकेनिक के तौर पर उनकी भर्ती हुई। सिग्नल कोर का उद्देश्य हमेशा चौकस रहना होता है। संचार के बिना तो युद्ध जीतने की कल्पना भी नहीं की जा सकती, वैसे जरूरत पड़ने पर हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान ही उनकी शादी की तारीख तय हो गई, लेकिन वह अपनी ही शादी में नहीं जा सके। इस बात का मलाल न ही उन्हें और न ही उनकी पत्नी ओमपति मडाड को कभी रहा। ओमपति ने उनकी फोटो के साथ ही शादी कर सभी रस्में पूरी कीं। उनके एक दोस्त ने उन्हें पत्र लिखकर शादी की मुबारकबाद भी भेजी थी। शादी के तीन महीने बाद वह घर लौटे और पूरे परिवार को उन पर गर्व महसूस हुआ।
1971 का युद्ध और सेना में रहने के कुछ अनुभव
1971 में जब भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ, तब जगजीत सिंह ईस्टर्न सेक्टर में ही तैनात थे। उनका काम सभी संचार उपकरणों को संचार के लिए तैयार करना और हमेशा संचार स्थापित रखना था। चार दिसंबर को लड़ाई शुरू हुई और नौ दिसंबर को पूरे पूर्वी पाकिस्तान पर भारत की सेना का कब्जा हो गया था, जो अब बांग्लादेश है।
पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने भारतीय जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था। इतनी संख्या में युद्धबंदी का यह रिकॉर्ड भारत के नाम है। 17 दिसंबर 1971 को युद्ध विराम हो गया था। फिर लद्दाख में श्योक नदी घाटी में हॉट स्पि्रंग पर तैनात हुए, जहां हाल में चीन एलएसी बदलने की कोशिश कर रहा है। उस समय तो वहां तक पहुंचने के लिए लेह से हवाई जहाज में जाना पड़ता था। जरूरत का सामान एयर ड्रॉपिंग से ही भेजा जाता था।