सिख विरोधी दंगे और न्याय का तकाजा, जानें- जांच कमेटियों और आयोग का सच

दिल्ली, कानपुर, राउरकेला और देश के अन्य शहरों में दिन दहाड़े सिखों की हत्या कर दी गई। अकेले दिल्ली में यह आंकड़ा हजारों में था।

By Amit MishraEdited By: Publish:Tue, 20 Nov 2018 07:20 PM (IST) Updated:Tue, 20 Nov 2018 09:16 PM (IST)
सिख विरोधी दंगे और न्याय का तकाजा, जानें- जांच कमेटियों और आयोग का सच
सिख विरोधी दंगे और न्याय का तकाजा, जानें- जांच कमेटियों और आयोग का सच

नई दिल्ली, जेएनएन। 34 साल पहले 1 नवंबर, 1984 को भारत के इतिहास की सबसे भयावह घटना घटी थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिख विरोधी दंगे भड़क गए थे। हजारों सिखों की निर्ममता से हत्या कर दी गई थी। 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी के दो सिख बॉडीगार्ड ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। उनकी हत्या के बाद निर्दोष सिखों को निशाना बनाया गया, उनको मौत के घाट उतारा गया। सिखों की संपत्तियों को लूटा गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक दिल्ली, कानपुर, राउरकेला और देश के अन्य शहरों में दिन दहाड़े सिखों की हत्या कर दी गई। अकेले दिल्ली में यह आंकड़ा हजारों में था।

ये था दिल्ली का हाल 

एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भीड़ सड़कों पर उतर आई और 'खून के बदले खून' का नारा लगा रहा थी। लाजपत नगर, जंगपुरा, डिफेंस कॉलोनी, फ्रेंड्स कॉलोनी, महारानी बाग, पटेल नगर, सफदरजंग एंक्लेव और पंजाबी बाग जैसे इलाकों में जमकर लूटपाट हुई और हत्याएं की गईं। यहां दुकानों, घरों और गुरुद्वारों में लूटपाट करने के बाद उनमें आग लगा दी गई। बस, ट्रक, कार और स्कूटर समेत बड़ी संख्या में गाड़ियों को भी आग लगा दी गई।

पाकिस्तान से आए सिखों की बस्तियों, स्लम और गावों में हत्या, लूटपाट और आगजनी की वारदातों को अंजाम दिया गया। त्रिलोकपुरी, कल्याणपुरी, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी, नंद नगरी, पालम गांव और शकूरपुर इलाके में बड़ी संख्या में निर्दोषों को मौत के घाट उतारा गया। घरों में आग लगा दी गई और पुरुषों एवं जवान लड़कों की पीट-पीटकर मार डाला गया। कुछ लोगों को तो जिंदा जलाकर मार दिया गया। बड़ी संख्या में महिलाओं का अपहरण किया गया। आज भी कई ऐसे परिवार हैं जिनके सदस्य अब तक नहीं लौटे हैं।

गलियों, ट्रेनों, बसों, बाजारों और फैक्ट्री-कारखानों एवं दुकानों में सिख पुरुषों और युवकों पर हमले किए गए। उनमें से कई लोगों की निर्ममता से हत्या की गई। कुछ को या तो जिंदा जला दिया गया या फिर चलती गाड़ियों से बाहर फेंक दिया गया। हत्या और लूटपाट की घटनाएं दिल्ली के ज्यादातर इलाके में एक जैसी थीं लेकिन पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की गरीब बस्तियां हिंसा का कुछ ज्यादा शिकार हुईं थीं।

देश भर में भयावह थे हालात 

दिल्ली के अलावा हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, एमपी और यूपी में भी बड़े पैमाने पर सिखों की हत्या और लूटपाट की घटना को अंजाम दिया गया। लखनऊ, कानपुर, रांची और राउरकेला हिंसा में बुरी तरह झुलसने वाले शहरों में शामिल थे।

दंगे की जांच और सुनवाई

दंगों की जांच के लिए दस आयोग और कमेटियां बनीं। दंगों में कांग्रेस नेताओं की भूमिका पर भी सवाल उठे थे। जांच में सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर कांग्रेस के दो दिग्गज नेता थे जिन पर दंगा भड़काने और दंगाइयों के नेतृत्व का आरोप था लेकिन 2013 में एक निचली अदालत ने सज्जन कुमार को बरी कर दिया और पूर्व पार्षद बलवान खोखर, सेवानिवृत्त नौसैनिक अधिकारी कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और दो अन्य को एक नवंबर, 1984 को दिल्ली छावनी के राज नगर इलाके में एक परिवार के पांच सदस्यों की हत्या के मामले में दोषी ठहराया। खोखर, बागमल और गिरधारी लाल को आजीवन कारावस की सजा सुनाई गई जबकि अन्य दो दोषियों पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर को तीन-तीन साल जेल की सजा सुनाई गई। 

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