जानिए किन अव्यवस्थाओं की वजह से राजधानी के सरकारी और निजी अस्पतालों में बनी रही ऑक्सीजन की कमी, सिलेंडरों पर रहे निर्भर

संक्रमण से दिल्लीवासियों को बचाने के लिए बने कोविड अस्पताल खुद अव्यवस्थाओं से जूझ रहे हैं। महामारी के बीच अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाने की बात कही जा रही है। ये अस्पताल ऑक्सीजन सिलेंडर पर ही निर्भर हैं। निजी क्षेत्र के ज्यादातर छोटे अस्पतालों में यही स्थिति है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Wed, 05 May 2021 01:07 PM (IST) Updated:Wed, 05 May 2021 01:07 PM (IST)
जानिए किन अव्यवस्थाओं की वजह से राजधानी के सरकारी और निजी अस्पतालों में बनी रही ऑक्सीजन की कमी, सिलेंडरों पर रहे निर्भर
ऑक्सीजन सिलेंडर पर हैं निर्भर हैं निजी क्षेत्र के ज्यादातर छोटे अस्पताल।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। कोरोना वायरस के संक्रमण से दिल्लीवासियों को बचाने के लिए बने कोविड अस्पताल खुद अव्यवस्थाओं के संक्रमण से जूझ रहे हैं। महामारी के बीच अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाने की बात कही जा रही है। हालत यह है कि कोरोना संक्रमण से पीडि़त गंभीर मरीजों के इलाज के लिए अधिकृत दर्जनों सरकारी व निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन के स्टोरेज व सेंट्रलाइज ऑक्सीजन सप्लाई तक की व्यवस्था नहीं है। इस वजह से ये अस्पताल ऑक्सीजन सिलेंडर पर ही निर्भर हैं। निजी क्षेत्र के ज्यादातर छोटे अस्पतालों में यही स्थिति है।

अब जब अस्पतालों में बेड नहीं मिल पाने के कारण होम आइसोलेशन में रह रहे गंभीर मरीज घर में ऑक्सीजन सिलेंडर के सहारे रहने को मजबूर हो रहे हैं तो ऐसी स्थिति में अस्पतालों को ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी का सामना करना पड़ा रहा है। छोटे अस्पतालों में ही ऑक्सीजन की समस्या अधिक है। कई बड़े निजी अस्पतालों में भी अभी जरूरत से कम आक्सीजन आपूर्ति हो रही है, हालांकि स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है। सफदरजंग, आरएमएल, जीटीबी, राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल व एम्स में आक्सीजन स्टोरेज की अच्छी व्यवस्था तो है, लेकिन इन अस्पतालों में कोरोना के इलाज के लिए कम बेड आरक्षित किए गए हैं।

हालांकि, एम्स ने ट्रामा सेंटर में 294, मुख्य अस्पताल में 164 बेड की व्यवस्था करने के अलावा झज्जर स्थित राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (एनसीआइ) में करीब 570 बेड की व्यवस्था की है। इस तरह एम्स में करीब 1,028 बेड की व्यवस्था है, लेकिन दिल्ली एम्स के मुख्य अस्पताल के परिसर में इतने संसाधन हैं कि एम्स प्रशासन चाहे तो और बेड बढ़ाए जा सकते हैं। वहीं, जीटीबी अस्पताल में कोरोना के इलाज के लिए अधिकृत बेड 1,500 से घटाकर 750 व राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में 500 बेड से घटाकर 350 बेड आरक्षित किए गए हैं।

वहीं, राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के करीब हर बेड पर सेंट्रलाइज ऑक्सीजन की सुविधा है, लेकिन ऑक्सीजन की कमी का हवाला देकर अस्पताल प्रशासन ने बेड कम कर दिए हैं। करीब 1,500 बेड की क्षमता वाले आरएमएल अस्पताल में कोरोना के इलाज के लिए महज 263 बेड निर्धारित हैं। करीब 2,800 बेड की क्षमता वाले सफदरजंग अस्पताल के सुपर स्पेशियलिटी ब्लाक में कोविड मरीजों के लिए सिर्फ 275 बेड ही निर्धारित हैं। आरएमएल अस्पताल के एक वरिष्ठ डाक्टर ने कहा कि अस्पताल में गैर कोरोना मरीजों का भी इलाज हो रहा है, फिर भी कोरोना के इलाज के लिए जल्द 200 बेड जल्द बढ़ाया जाएगा।

वहीं, सफदरजंग अस्पताल के एक डाक्टर ने बताया कि यहां भी बेड बढ़ाने की कवायद चल रही है। दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डा. अजय लेखी कहते हैं कि ज्यादातर बड़े अस्पतालों में भी सभी बेड पर सेंट्रलाइज ऑक्सीजन की व्यवस्था नहीं है। ऑक्सीजन आपूर्ति की क्षमता के अनुसार ही अस्पतालों ने कोरोना के लिए बेड आरक्षित किए हैं, लेकिन इस महामारी के मद्देनजर यह जरूरी है कि अस्पतालों के सामान्य वार्ड में भी सभी बेड पर सेंट्रलाइज ऑक्सीजन की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा अस्पतालों में आइसीयू बेड भी बढ़ाने पड़ेंगे। करीब 150 की क्षमता वाले निजी क्षेत्र के रैनबो अस्पताल में सेंट्रलाइज ऑक्सीजन नहीं है।

अस्पताल प्रशासन का कहना है कि अस्पताल के भवन के नीचे से मेट्रो की लाइन गुजरती है इस वजह से ऑक्सीजन स्टोरेज प्लांट की व्यवस्था करना संभव नहीं है। अस्पताल को ऑक्सीजन सिलेंडर से ही काम चलाना पड़ेगा। दिल्ली सरकार के जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में भी सेंट्रलाइज ऑक्सीजन की सुविधा नहीं होने की वजह सिर्फ 14 बेड कोरोना के इलाज के लिए आरक्षित हैं, जबकि इन्हें बढ़ाकर 100 तक किया जा सकता है।

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