दिल्ली के लिए हर साल 4 दिसंबर को क्यों होता है काला दिन, बच्चों समेत 50 लोगों की गई थी जान

qutub minar accident 1981 शुक्रवार के दिन (4 दिसंबर 1982) हुए इस हादसे में ज्यादातर बच्चों समेत 50 लोगों ने कुतुब मीनार में जान गंवा दी थी तभी से इस हादसे को दिल्ली का ब्लैक फ्राइडे कहा जाता है। इसकी याद लोगों के जेहन में आज भी है।

By Jp YadavEdited By: Publish:Sat, 04 Dec 2021 01:00 PM (IST) Updated:Sat, 04 Dec 2021 01:21 PM (IST)
दिल्ली के लिए हर साल 4 दिसंबर को क्यों होता है काला दिन, बच्चों समेत 50 लोगों की गई थी जान
40 साल पहले दिल्ली में हुआ था 'ब्लैक फ्राइडे' कुतुब मीनार में गंवाई से बच्चों समेत 50 लोगों ने जान

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। वर्ष 1981 में 4 दिसंबर को दिल्ली के कुतुब मीनार में ऐसा हादसा हुआ, जिसे शायद ही राजधानी के लोग भूलना चाहें। शुक्रवार के दिन हुए इस हादसे में ज्यादातर बच्चों समेत 50 लोगों ने कुतुब मीनार में जान गंवा दी थी, तभी से इस हादसे को दिल्ली का ब्लैक फ्राइडे कहा जाता है। इसकी याद लोगों के जेहन में आज भी है। इस हादसे के कुछ महीने बाद ही कुतुम मीनार के ऊपरी हिस्से को आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया।

घटनाक्रम के मुताबिक, 4 दिसंबर, 1981 को दिन शुक्रवार था। इस दिन भी बड़ी संख्या में लोग कुतुब मीनार घूमने आए थे। इनकी संख्या 400 के करीब थे। इस बीच कुतुब मीनार के अंदर अचानक लाइट बंद हो गई। ऐसा होते वहां मौजूद सभी लोग डर गए और नीचे की ओर भागने लगे। डर के माहौल में एकदम से भगदड़ मच गई। इस बीच माहौल लोग एक दूसरे के ऊपर भी गिर गए, जिससे लोग दब गए। इसमें सबसे दुखद रह रहा कि, इस हादसे के दौरान अधिकतर बच्चे थे।  बताया जा रहा है कि इस हादसे में 50 लोगों की जान चली गई, जिसमें अधिकतर संख्या बच्चों की थी। ये सभी स्कूली बच्चे थे।

संकरे रास्ते के चलते गई कई की जान

हादसे के दौरान चपेट में आए लोगों के मुताबिक, कुतुब मीनार के अंदर ऊपर जाने के लिए बनाई गईं सीढ़ियां बेहद संकरी हैं। यही वजह है कि एक बार में एक ही व्यक्ति ऊपर जा सकता है अथवा ऊपर से नीचे आ सकता है। यहां पर उचित प्रकाश व्यवस्था नहीं थी, यहां पर सिर्फ एक बल्ब ही हुआ करता था। 

इस हादसे ने सरकार और प्रशासन के झकझोर कर रख दिया। हादसे के बाद अप्रैल, 1982 से कुतुब मीनार के अंदर प्रवेश वर्जित कर दिया गया। इसके बाद कई बार कुतुब मीनार को खोलने की बात चलीग, लेकिन कोई ना कोई हादसा होता रहा और इसे खोलने पर सहमति नहीं बन पाई। आखिरकार अप्रैल, 1982 में कुतुब मीनार को सरकारी तौर पर बंद कर दिया गया।

नहीं भूल पाते लोग यह हादसा

हादसे के 40 साल बाद भी लोग इस हादसे को भूले नहीं हैं। जब भी कुतुब मीनार के बंद होने की बात आती है यह हादसा याद आ जाता है। हादसे को याद कर उन लोगों की आंखें आज भी नम हो जाती हैं, जिन्होंने अपने भाई-बहन इस दौरान गंवाएं।

स्मारकों को बचाने के लिए काम कर रही संस्था विरासत के अध्यक्ष व अधिवक्ता लखेंद्र सिंह कहते हैं कि 1981 में मीनार के अंदर हुई भगदड़ में कुछ स्कूली बच्चों के मारे जाने के बाद इसके अंदर प्रवेश बंद कर दिया गया था। वह कहते हैं कि उस समय भी कई बार पर्यटक मीनार में ऊपर जाकर डर जाते थे। इसे देखते हुए मीनार के प्रवेश द्वार पर चेतावनी लिखी गई थी। पुराने फोटो में यह गेट पर लिखा हुआ मिलता है कि मीनार में एक साथ कम से कम तीन लोग जरूर जाएं।

क्यों खास है कुतुबमीनार

लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से इस मीनार का निर्माण किया गया है। कुतुब मीनार को इस तरह डिजाइन किया गया है कि हर मंजिल पर विशिष्ट पैटर्न नजर आता है। 72.5 मीटर ऊंची कुतुब मीनार भारत की सबसे ऊंची मीनार है। यह स्मारक दिल्ली की एक खास पहचान है। दिल्ली मेट्रो कार्ड पर भी इसकी तस्वीर दिखाई देती है। इस का निर्माण कुतुब-उद्दीन ऐबक ने 1192 में शुरू कराया था। बाद में इसका निर्माण इल्तुतमिश ने पूरा कराया। कुछ हादसों की वजह से मीनार के अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं है। मीनार का डिजाइन इस तरह किया गया है कि हर मंजिल पर खास पैटर्न नजर आता है।

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