जानिए- कैसे दिल्ली की सुमति और मनाली ने छत पर बना ली बगिया, आप भी आजमाएं हाथ
सुमति का पूरा सहयोग उनकी बेटी मनाली भी देती हैं। दोनों ने बड़े जतन से इस बगिया को हरा-भरा बनाया है।
नई दिल्ली [निहाल सिंह]। मिलावट और प्रदूषण के इस दौर में हर किसी की चाहत ताजी सब्जियों व फलों को खाने की होती है, लेकिन शहरीकरण व कोल्ड स्टोरेज के इस दौर में यह असंभव सा है, पर मोती बाग की सुमति ने इसे संभव कर दिखाया है। वे हरी, ताजी व बिना रासायनिक खाद व कीटनाशक वाली सब्जियों के लिए बाजार का रुख नहीं करतीं, बल्कि अपनी छत के कृत्रिम बगिया से उत्पादित सब्जियों से परिवार को स्वस्थ रख रही हैं। उनकी इस बगिया में सब्जियों के साथ फल और औषधीय पौधे भी हैं, जो इस कोरोना काल में उनके परिवार के सदस्यों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बना रहे हैं। सुमति बताती हैं कि उनको यह विचार वर्ष 2014 में दिल्ली आने के साथ हुआ। तब उन्हें सांस संबंधी समस्या होने लगी थी। चिकित्सकों ने खुद को व्यस्त रखने के साथ व्यायाम की सलाह दी। ऐसे में विचार किचन गार्डन का कौंधा। उन्होंने शुरुआत में कुछ औषधीय पौधे लगाए। फिर मौसम के हिसाब से सब्जियां उगाना शुरू किया। अब पूरे वर्षभर वे अलग-अलग प्रकार की सब्जियां, औषधीय पौधे और फलों का उत्पादन करती हैं। अब कई प्रकार की सब्जियां उनकीकृत्रिम बगिया में उपलब्ध हैं। टमाटर, भिंडी, तोरई, बैगन, लौकी समेत लहसुन, पुदीना, कढ़ी पत्ता, आंवला, एलोवेरा, अमरूद व अनार के पौधे लगा रखे हैं, जिसमें पर्याप्त मात्रा में प्रतिदिन के खाने के लिए सब्जियां हो जाती हैं। सुमति के परिवार में छह सदस्य हैं। केवल आलू और प्याज के लिए उन्हें बाजार जाना पड़ता है। इसमें सुमति का पूरा सहयोग उनकी बेटी मनाली भी देती हैं। दोनों ने बड़े जतन से इस बगिया को हरा-भरा बनाया है।
लगन देख पड़ोसी ने दी छत
सुमति के पति सरकारी अधिकारी हैं। उन्हें टाइप-4 श्रेणी का आवास मिला हुआ है। करीब तीन हजार वर्ग फुट छत पर उन्होंने 100 प्रकार के फलों के पेड़ पौधे, सब्जी और औषधीय पौधे लगा रखे हैं। सुमति बताती हैं कि पहले उन्होंने अपनी छत से इसकी शुरुआत की। मेहनत जब दिखने लगी तो पड़ोसियों ने भी अपनी छत का उपयोग करने की इजाजत दे दी। उन्होंने वहां भी गमलों में सब्जी और फल लगा दिए हैं।
रंग-बिरंगी तितलियां बिखेरती हैं छटा
बगिया में रंग-बिरंगी तितलियों और मधुमक्खियों को मंडराते आसानी से देखा जा सकता है। साथ ही तोते से लेकर अलग-अलग पक्षी भी यहां आते हैं। यह मनमोहक दृश्य होता है। कीटनाशक का नहीं करते छिड़कावसुमति बताती है कि पौधों को कीट से बचाव के लिए कीटनाशक दवा का उपयोग नहीं करती हैं। पास में ही गोपालन होता हैं वहां से वे गोमूत्र व गोबर ले आती हैं। इसका पतला घोल बनाकर 15 दिन के लिए मटके में रख देते हैं। इसके बाद स्प्रे मशीन से उसका पौधों पर छिड़काव करती हैं। इससे पौधों को कीड़े नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं।