Kumar Vishwas: अमिताभ बच्चन के पिता को कुछ इस तरह कुमार विश्वास ने किया याद, पढ़िये- पूरा ट्वीट

अमिताभ बच्चन के पिता साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन की आज (27 नवंबर) की 114वीं जयंती है। इस मौके पर देश-दुनिया के कवि प्रेमी मधुशाला जैसा उम्दा काव्य संग्रह देने वाले साहित्याकार हरिवंश राय बच्चन को याद कर रहा है।

By Jp YadavEdited By: Publish:Sat, 27 Nov 2021 02:23 PM (IST) Updated:Sat, 27 Nov 2021 02:27 PM (IST)
Kumar Vishwas: अमिताभ बच्चन के पिता को कुछ इस तरह कुमार विश्वास ने किया याद, पढ़िये- पूरा ट्वीट
Kumar Vishwas: अमिताभ बच्चन के पिता को कुछ इस तरह कुमार विश्वास ने किया याद, पढ़िये- पूरा ट्वीट

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। बालीवुड के शहंशाह और हिंदी फिल्मों के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन के पिता साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन की आज (27 नवंबर) की 114वीं जयंती है। इस मौके पर देश-दुनिया के कवि प्रेमी मधुशाला जैसा उम्दा काव्य संग्रह देने वाले साहित्याकार हरिवंश राय बच्चन को याद कर रहा है। देश के जाने-माने कवि कुमार विश्वास (famous poet Kumar Vishwas) ने भी हरिवंश राय की जयंती पर उन्हें याद किया है।

कवि कुमार विश्वास ने हरिवंश राय को जयंती पर नमन करते हुए ट्वीट किया है- 'मां हिंदी की वीणा को अपनी सरल और सरस शैली द्वारा झंकृत करके कविता को जन-जन के कंठ तक पहुंचाने वाले समर्थ गीत-ऋषि, स्व हरिवंश राय 'बच्चन' जी का आज जन्मदिन है। सम्मोहक कविताओं के द्वारा खड़ी बोली की कविता को लोक-रुचि केन्द्र बनाने वाले हरिवंश राय बच्चन जी को जन्मदिन पर सादर प्रणाम।' इसके साथ ही कुमार विश्वास ने हरिवंश राय बच्चन की मशहूर कविता की कुछ पंक्तियां भी शेयर की हैं।

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूं,

फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूं;

कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर

मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूं!

यह है हरिवंश राय रचित पूरी कविता

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूं,

फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूं;

कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर

मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूं!

मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूं,

मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूं,

जग पूछ रहा है उनको, जो जग की गाते,

मैं अपने मन का गान किया करता हूं!

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूं,

मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूं;

है यह अपूर्ण संसार हीम मुझको भाता

मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूं!

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूं,

सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूं;

जग भाव-सागर तरने को नाव बनाए,

मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूं

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूं,

उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूं,

जो मुझको बाहर हंसा, रुलाती भीतर,

मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूं!

कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?

नादन वहीं है, हाय, जहां पर दाना

फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?

मैं सीख रहा हूं, सीखा ज्ञान भुलाना

मैं और, और जग और, कहां का नाता,

मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;

जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,

मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूं,

शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूं,

हों जिस पर भूपों के प्रसाद निछावर,

मैं उस खंडर का भाग लिए फिरता हूं!

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,

मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;

क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,

मैं दुनिया का हूं एक नया दीवाना!

मैं दीवानों का एक वेश लिए फिरता हूं,

मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूं;

जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,

मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूं!

गौरतलब है कि सुपुत्र अमिताभ बच्चन ने भी अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की 114वीं जयंती पर याद करते हुए एक फोटो शेयर की है, उसमें हरिवंश राय बेहद खुश नजर आ रहे हैं और सेहरा बांधे अपने बेटे को देख रहे हैं। ब्लैक एंड व्हाइट इस फोटो में दोनों ही तस्वीरें बेहद भाव पूर्ण प्रकृति की हैं। 

अपने पिता हरिवंश राय बच्चन को याद करते हुए अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लाग में लिखा है- ‘मेरे पिता, मेरे सब कुछ.. 27 नवंबर 1907 में उनका जन्म हुआ था…इस तरह ये उनकी 114वीं जयंती हैं…वह स्वर्ग में हैं और मेरी मां के साथ सेलिब्रेट कर रहे…जैसा हम करते हैं…अपने विचारों में और कर्मों में…।’

हरिवंश राय का दिल्ली से है गहरा रिश्ता

दिल्ली के पाश इलाके गुलमोहर पार्क में वर्ष 1972 में अमिताभ के साहित्यकार पिता हरिवंशराय बच्चन और मां तेजी बच्चन ने प्लाट नंबर B-8 में घर बनवाया था। इसका दोनों ने 'सोपान' रखा। 70 के दशक में 'सोपान' में अक्सर कविता पाठ और साहित्यिक चर्चाएं होती थीं। इस दौरान मेजबान हरिवंश राय बच्चन भी दूसरे साहित्यकारों की गोष्ठियों में भाग भी लेते थे।'सोपान' में नामी साहित्यकार धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, कन्हैया लाल नंदन, अक्षय कुमार जैन, विजेन्द्र स्नातक जैसे नामवर जैसे साहित्यकार आते थे और साहित्य पर घमासान होता था।

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