Kumar Vishwas News: कुमार विश्वास ने नामी कविता का किया बेहद सुंदर पाठ? जानिये- बिहार से इसका कनेक्शन
Kumar Vishwas News देश ही विदेश में भी अपनी पहचान बनाने वाले कवि कुमार विश्वास ने मौसम के बदले मिजाज पर एक खूबसूरत और शानदार कविता का पाठ किया है। इसके बाद उन्होंने इस कविता पाठ को ट्वीट भी किया है।
नई दिल्ली/गाजियाबाद, ऑनलाइन डेस्क। दिल्ली-एनसीआर समेत पूरे भारत में दस्तक देने के बाद मानसून की झमाझम बारिश हो रही है। दिल्ली-एनसीआर में भी सोमवार को झमाझम बारिश हुई और यह सिलसिला मंगलवार को भी जारी है। मंगलवार सुबह से ही दिल्ली-एनसीआर के आसमान पर छाए घने बादल 9 बजे के बाद बरस ही पड़े। इस बीच देश ही विदेश में भी अपनी पहचान बनाने वाले कवि कुमार विश्वास ने मौसम के बदले मिजाज पर एक खूबसूरत और शानदार कविता का पाठ किया है। इसके बाद उन्होंने इस कविता पाठ को ट्वीट भी किया है। हालांकि, जिस कविता का पाठ कुमार विश्वास ने किया है, वह महान कवि नागार्जुन की है। कुमार विश्वास ने इस कविता कुछ अंश ही पढ़ा है, जो इस तरह है-
बादल को घिरते देखा है
कहां गया धनपति कुबेर वह?
कहां गयी उसकी वह अलका?
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का,
ढूंढ़ा बहुत परन्तु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर,
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो, वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुम्बी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।
कविता पाठ के दौरान वीडियो में झमाझम बारिश हो रही है और कुमार विश्वास अपने घर के बाहर खड़े हैं और कविता पाठ कर रहे हैं।
यहां पढ़िये- पूरी कविता
अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर विष-तंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
ऋतु वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल बह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे
एक-दूसरे से विरहित हो
अलग-बगल रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होगी,
निशाकाल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रन्दन, फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
दुर्गम बर्फानी घाटी में
शत-सहस्र फुट ऊंचाई पर
अलख नाभि से उठने वाले
निज के ही उन्मादक परिमल-
के पीछे धावित हो-होकर
तरल-तरुण कस्तूरी मृग को
अपने पर चिढ़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
कहां गया धनपति कुबेर वह?
कहां गयी उसकी वह अलका?
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का,
ढूंढ़ा बहुत परन्तु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर,
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो, वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुम्बी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।
शत-शत निर्झर-निर्झरणी-कल
मुखरित देवदारु कानन में,
शोणित-धवल-भोजपत्रों से
छायी हुई कुटी के भीतर,
रंग-बिरंगे और सुगंधित
फूलों से कुन्तल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले
शंख-सरीखे सुघड़ गलों में,
कानों में कुवलय लटकाए,
शतदल लाल कमल वेणी में,
रजत-रचित मणि-खचित कलामय
पान पात्र द्राक्षासव-पूरित
रखे सामने अपने-अपने
लोहित चंदन की त्रिपदी पर,
नरम निदाग बाल-कस्तूरी
मृगछालों पर पलथी मारे
मदिरारुण आखों वाले उन
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अँगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
अभी-अभी….🏔पर…!
बादल ⛅️ को घिरते देखा है…!🥰❤️ pic.twitter.com/Nr84jejCUd
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) July 20, 2021
गौरतलब है कि महान कवि नागार्जुन का जन्म 30 जून, 1911 को मधुबनी जिले के सतलखा गांव में हुआ था। नागार्जुन का असली नाम 'वैद्यनाथ मिश्र' था। हिंदी में उन्होंने 'नागार्जुन' तथा मैथिली में 'यात्री' उपनाम से साहित्य सृजन किया। उन्होंने कई अप्रतिम रचनाएं हिंदी रचना संसार को दीं। बता दें कि कि देश के जाने माने कवि कुमार विश्वास लगातार अपनी कविताओं के जरिये लोगों संदेश देते रहते हैं।