Kargil Vijay Diwas: साथियों के घायल होने पर भी हिम्मत नहीं हारी, दुश्मनों से लोहा लेते रहे सूबेदार मेजर राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह ने बताया कि आपरेशन विजय 1999 के समय बटालियन नार्दन सियाचिन ग्लेशियर पर तैनाती थी। वहां से दूसरी यूनिट के साथ कारगिल की तरफ से नीचे आ रहे थे। इसी दौरान सूचना मिली कि बेस कैंप के पास फिर से घुसपैठ हो रही है।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 02:52 PM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 06:25 PM (IST)
Kargil Vijay Diwas: साथियों के घायल होने पर भी हिम्मत नहीं हारी, दुश्मनों से लोहा लेते रहे सूबेदार मेजर राजेंद्र सिंह
सियाचीन में तैनाती के दौरान सूबेदार मेजर राजेंद्र सिंह ’ सौजन्य-स्वयं

नई दिल्ली [शिप्रा सुमन]। दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वफा आएगी.। देश के दुश्मनों को खाक में मिटाने का जज्बा, अडिग हौसला और देश सेवा के लिए समर्पित जज्बात, ऐसे ही जांबाजों में से एक हैं सूबेदार मेजर राजेंद्र सिंह। कारगिल में ग्लेशियर पर तैनाती से लौटने के बाद शरीर थका था और उनकी टीम को आराम करने के लिए नीचे भेजा गया था, लेकिन तभी सीमा पर घुसपैठियों के होने की खबर मिली तो सारी थकान जाती रही और दिल में जोश पैदा हो गया। दुश्मनों को शिकस्त देने वाले राजेंद्र कहते है कि आज भी उस पल को याद कर शरीर में चिंगारी सी उठती है।

गुस्से का उबाल

सूबेदार मेजर राजेंद्र सिंह कारगिल युद्ध के दौरान सिपाही थे और सेना में नियुक्ति के बाद उन्हें ग्लेशियर पर भेजा गया था। उस वक्त उनकी उम्र 28 वर्ष की थी। कुछ महीनों की ट्रेनिंग के बाद जब वह सेकेंड बेस पर लौटे तभी उन्हें पाकिस्तान के घुसपैठियों के होने की सूचना मिली जो उनके बेस के नजदीक ही थे। युद्ध को समाप्त हुए दस दिन बीत गए थे, लेकिन दुश्मनों की फिर से ऐसी हिमाकत को देखकर मन में गुस्से का उबाल आ गया।

चट्टानों को चीर कर बढ़ते रहे आगे

राजेंद्र सिंह ने बताया कि आपरेशन विजय 1999 के समय बटालियन नार्दन सियाचिन ग्लेशियर पर तैनाती थी। वहां से दूसरी यूनिट के साथ कारगिल की तरफ से नीचे आ रहे थे। इसी दौरान सूचना मिली कि बेस कैंप के पास फिर से घुसपैठ हो रही है।

वह कारगिल के तुरतक (गांव) सेक्टर में मेजर अतुल के नेतृत्व में टीम का हिस्सा बने। इस दौरान उन्हें सबसे ऊंचे प्वाइंट 5810 पर रोप (रस्सी) लगाने की जिम्मेदारी मिली थी। वह कहते हैं कि चट्टानों के बीच रोप लगाने से पहले यह तय किया गया कि दिन में ही सुरंग क्षेत्र को हटाया जाए। इसकी जिम्मेदारी भी राजेंद्र सिंह और एक अन्य फौजी को दी गई। 29 अगस्त 1999 को रास्ता साफ करने के लिए वह जत्थे के साथ आगे बढ़े।

बीस से अधिक रस्सियां ग्लेशियर युक्त चट्टानों में लगाई गईं। चट्टानों को चीर कर 1.5 किलोमीटर का रास्ता तय करने में सात घंटे का समय लगा और 30 अगस्त को प्वाइंट पर पहुंचे। इस दौरान उन्हें आठ से दस पत्थरों के गिरने से चोट लगी जिससे वह घायल हो गए थे, लेकिन जोश के साथ घुसपैठियों पर हमला करते रहे।

भारत माता की जय कर दुश्मनों का किया खात्मा

राजेन्द्र सिंह ने कहा ‘प्वाइंट 5685 पर कब्जा करने के लिए रिंग कंटूर प्वाइंट 5880 को फायर बेस बना दिया गया था। इस विजय अभियान में साथी रामदुलारे शहीद हो गए थे और दो जवानों को पाकिस्तान की सेना ने पकड़ लिया था। इसके बाद हमारी टीम ने 15 से 20 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था। इस दौरान जवानों के पास ज्यादा खाद्य सामग्री भी नही थी। जरूरी सामग्री खत्म हो रही थी और जवान घायल हो गए थे, फिर भी जवान पूरे जोश के साथ भारत माता की जय की ललकार से दुश्मनों से लोहा लेते रहे।

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