फिर चर्चा में आया जेएनयू, लगा आरोप; देश का माहौल बिगाड़ने की कोशिश में वामपंथी संगठन

JNU Dispute जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष साकेत मून का एक वीडियो भी फेसबुक ट्विटर पर वायरल हुआ है। वो कहते दिख रहे हैं कि बाबरी को गिराना गलत था। इसे फिर से बनाकर इंसाफ करना चाहिए।

By Jp YadavEdited By: Publish:Thu, 09 Dec 2021 08:33 AM (IST) Updated:Thu, 09 Dec 2021 08:33 AM (IST)
फिर चर्चा में आया जेएनयू, लगा आरोप; देश का माहौल बिगाड़ने की कोशिश में वामपंथी संगठन
फिर चर्चा में आया जेएनयू, लगा आरोप; देश का माहौल बिगाड़ने की कोशिश में वामपंथी संगठन

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराया गया था। इसकी बरसी पर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में वापमंथी छात्र संगठनों ने प्रदर्शन किया। गंगा ढाबा से लेकर चंद्रभागा छात्रवास तक पैदल मार्च निकाला गया। इस दौरान भड़काऊ भाषण दिए गए। छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष साकेत मून का एक वीडियो भी फेसबुक, ट्विटर पर वायरल हुआ है। वो कहते दिख रहे हैं कि बाबरी को गिराना गलत था। इसे फिर से बनाकर इंसाफ करना चाहिए। पैदल मार्च में ‘नहीं सहेंगे हाशिमपुरा, नहीं करेंगे दादरी, फिर बनाओ बाबरी सरीखे नारे लगे।’ जिसकी चौतरफा भर्त्सना हो रही है। कहा जा रहा है कि वामपंथी संगठन देश का माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

जेएनयू छात्रसंघ और विभिन्न वामपंथी छात्र संगठनों ने छह दिसंबर को राम के नाम डाक्यूमेंट्री प्रसारित की। जेएनयू कुलसचिव ने बयान जारी कर इस तरह की डाक्यूमेंट्री छात्रों को नहीं दिखाने की गुजारिश की, लेकिन छात्र संगठनों ने परवाह नहीं की। पैदल मार्च के दौरान बाबरी मस्जिद दोबारा बनाने की मांग का वीडियो इंटरनेट मीडिया पर अगले दिन वायरल हो गया। ट्विटर पर इसकी चौतरफा निंदा होने लगी।

विनोद बंसल (प्रवक्ता, विश्व हिंदू परिषद) के मुताबिक, वामपंथी जेएनयू को राजनीतिक अखाड़ा बनाकर बदनाम करने की कोशिश में लगे हैं। विवि प्रशासन को ऐसे लोगों पर लगाम लगानी होगी। सिर्फ नोटिस देने से काम नहीं चलेगा, सख्त कार्रवाई भी करनी होगी। इस तरह के बयान साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश है। जो लोग बार-बार बाबर और बाबरी का स्मरण कर रहे हैं वो अफगानिस्तान के वर्तमान हालात भी देखें। इन्हें बाबरी मानसिकता से बाज आना चाहिए।

प्रो. अंशु जोशी ( स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू) इस तरह का बयान बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। छात्रों को इस तरह की बयानबाजी से बचना चाहिए। राजनीति की भी अपनी सीमाएं होती हैं। भड़काऊ भाषण देना, परिसर में छात्र-छात्रओं को भड़काना वामपंथियों का राजनीतिक षड्यंत्र है। उत्तर प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भड़काऊ भाषणों के जरिए राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की जा रही है।

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