तकनीक के सहारे जेएनयू ने दी कोरोना को मात, 11 देशों के स्कालर्स को प्रदान की गई डिग्री
जेएनयू ने बताया कि 13 केंद्रों एवं सात स्पेशल सेंटरों के तहत शोध होते हैं।इसमें इंजीनियरिंग विज्ञान सोशल साइंस भाषा आदि शामिल है।जेएनयू में पढ़ने वाले कुल छात्रों में 60 फीसद शोधार्थी है। कोरोना काल का शोधार्थियों पर बहुत ज्यादा असर ना पड़े इसके लिए तकनीक की मदद ली गई।
नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। कोरोना की वजह से गत वर्ष जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार छात्रों के लिए बंद थे। छात्र विवि से सैकड़ों किमी दूर गांव में रह रहे थे, लेकिन यह तकनीक का कमाल ही था जिसने छात्रों और विवि के बीच की दूरी को पाट दिया। आनलाइन थीसिस जमा करने से लेकर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए मौखिक परीक्षा हुई। नतीजन कोरोना काल में 614 स्कालर्स को डिग्री प्रदान की गई। ये स्कालर्स देश के 25 राज्यों व अफगानिस्तान, बांग्लादेश समेत ग्यारह देशों के हैं। इन स्कालर्स में भी सर्वाधिक संख्या छात्राओं की है।
25 राज्यों, 11 देशों के स्कालर्स को प्रदान की गई डिग्री
जेएनयू प्रशासन ने बताया कि 13 केंद्रों एवं सात स्पेशल सेंटरों के तहत शोध होते हैं। इसमें इंजीनियरिंग, विज्ञान, सोशल साइंस, भाषा आदि शामिल है। जेएनयू में पढ़ने वाले कुल छात्रों में 60 फीसद शोधार्थी है। कोरोना काल का शोधार्थियों पर बहुत ज्यादा असर ना पड़े इसके लिए तकनीक की मदद ली गई। जिसकी पहल 2017 में ही की गई थी। दरअसल जेएनयू ने 2017 में पहली बार वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए मौखिक परीक्षा लेनी शुरू की थी। यह कोरोना काल में काफी कारगर साबित हुआ।
थीसिस जमा करने से लेकर मौखिक परीक्षा तक आनलाइन हुई संपन्न
नोड्यूज सर्टिफिकेट से लेकर थीसिस जमा करने की प्रक्रिया, मौखिक परीक्षा आदि आनलाइन ही संचालित हुई। जिसका परिणाम यह निकला कि 1 मार्च 2020 से 31 मार्च 2021 के बीच जेएनयू 614 स्कालर्स को डिग्री दे पाया। देश के 25 राज्यों से 328 महिला जबकि 286 पुरुष स्कालर्स थे। इनमें अफगानिस्तान, चीन, नेपाल, दक्षिण कोरिया, बांग्लादेश, उजबेकिस्तान, तुर्की आदि देशों के भी स्कालर्स थे, जिन्हे डिग्री दी गई।
मौखिक परीक्षा के लिए परीक्षक बाहर से बुलाए जाते हैं। आनलाइन मौखिक परीक्षा का एक फायदा यह भी निकला कि परीक्षक को जेएनयू नहीं आना पड़ता। यही वजह रही कि मौखिक परीक्षा में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, पुर्तगाल के परीक्षक शामिल हुए। जेएनयू कुलपति प्रो एम जगदेश कुमार ने कहा कि शोधार्थियों के कार्यों के मूल्यांकन के लिए डिजिटल तकनीक की मदद को उच्चप्राथमिकता दी गई। ताकि छात्रों का करियर प्रभावित ना हो।