बायो डिकंपोजर को खेत में छिड़काव से पहले रखें ये ध्यान, वरना नहीं गलेंगे फसल के अवशेष

वैपकास की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि बायो डिकंपोजर का घोल केवल गैर बासमती कृषि अवशेषों को गलाने के लिए ही उपयोग में लाया जाना चाहिए बासमती के लिए नहीं। दूसरे जिन खेतों में यह घोल छिड़का जाए वहां जमीन में भी पर्याप्त नमी होनी चाहिए।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Fri, 24 Sep 2021 09:32 AM (IST) Updated:Fri, 24 Sep 2021 09:32 AM (IST)
बायो डिकंपोजर को खेत में छिड़काव से पहले रखें ये ध्यान, वरना नहीं गलेंगे फसल के अवशेष
बायो डिकंपोजर के लिए खेत में नमी होना जरूरी, शुष्क जमीन पर नहीं होता ज्यादा फायदा

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। पराली की समस्या से निपटने के लिए पूसा बायो डिकंपोजर के इस्तेमाल की बात तो खूब हो रही है, लेकिन इसके बेहतर परिणाम के लिए कुछ बातों का ख्याल रखना भी बहुत जरूरी है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की कंसलटेंट एजेंसी वैपकास लिमिटेड, जिसने राजधानी में बायो डिकंपोजर के गत वर्ष हुए इस्तेमाल पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है, ने अपनी रिपोर्ट में कुछ सुझाव भी दिए हैं। दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब सरकार अगर इन सुझावों को भी ध्यान में रखे तो पराली प्रबंधन में अधिक मदद मिल सकती है।

वैपकास की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि बायो डिकंपोजर का घोल केवल गैर बासमती कृषि अवशेषों को गलाने के लिए ही उपयोग में लाया जाना चाहिए, बासमती के लिए नहीं। दूसरे जिन खेतों में यह घोल छिड़का जाए, वहां जमीन में भी पर्याप्त नमी होनी चाहिए। यदि जमीन शुष्क हुई तो यह घोल कृषि अवेशेषों को गला नहीं पाएगा।रिपोर्ट में एक सुझाव यह दिया गया है कि बायो डिकंपोजर के बेहतर परिणाम के लिए खेत में पुरानी फसल की कटाई और नई फसल की बुवाई के बीच पर्याप्त अंतराल होना चाहिए। अगर समय का अंतराल नहीं होगा तो कृषि अवशेष पूरी तरह से गल नहीं पाएंगे और नई फसल की बुवाई भी ठीक से नहीं हो पाएगी।

वैंपकास रिपोर्ट के मुताबिक जिस गांव के खेतों में बायो डिकंपोजर घोल का छिड़काव किया जाए, यह घोल तैयार भी वहीं पर किया जाना चाहिए। साथ ही इसका छिड़काव करने से पहले किसानों को इस बाबत जागरूक भी किया जाना चाहिए। जागरूकता होने पर उनकी सहभागिता बढ़ेगी और यह अभियान अच्छे परिणाम दे सकेगा।

इस रिपोर्ट में एक सुझाव यह भी दिया गया है कि जागरूकता के अभाव और फसलों की कटाई एवं बुवाई में अधिक अंतराल न होने से ज्यादातर किसान अपने खर्च से इस तकनीक का इस्तेमाल करने में रूचि नहीं दिखाते। इसलिए इस घोल को तैयार कराने और साथ ही इसका मुफ्त छिडकाव कराने की जिम्मेदारी भी राज्य सरकारों को स्वयं ही उठानी चाहिए।

chat bot
आपका साथी