मनुष्य के साहस व संकल्प के सामने बड़े-बड़े पर्वत तक टिक नहीं पाते: साध्वी ऋतम्भरा
कोरोना महामारी से लड़ते समाज को हिम्मत देते हुए आध्यात्मिक गुरु दीदी मां साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि मनुष्य के साहस व संकल्प के सामने बड़े-बड़े पर्वत तक नहीं टिक पाते हैं। ऐसे में इस अदृश्य विषाणु के दौर से भी जरूर बाहर निकलेंगे।
नई दिल्ली, [नेमिष हेमंत]। कोरोना महामारी से लड़ते समाज को हिम्मत देते हुए आध्यात्मिक गुरु दीदी मां साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि मनुष्य के साहस व संकल्प के सामने बड़े-बड़े पर्वत तक नहीं टिक पाते हैं। ऐसे में इस अदृश्य विषाणु के दौर से भी जरूर बाहर निकलेंगे। यह ध्यान में रखना होगा कि इस विकट परिस्थिति में असहाय होेने से समाधान नहीं निकलेगा। हमें अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करना होगा। अपनी समस्त शक्तियों को समाहित कर मजबूत संकल्प के साथ इससे लड़ना होगा, तब निश्चित ही इस चुनौती पर विजय प्राप्त होगी। वह "हम जीतेंगे-पाजिटीविटी अनलिमिटेड' श्रृंखला के चौथे दिन देशवासियों को संबोधित कर रही थी।
साध्वी ऋतंभरा ने अपने उद्बोधन में कहा, "विपरीत परिस्थितियों में ही समाज के दायरे के धैर्य की परीक्षा होती है। इन विपरीत परिस्थितियों में जबकि हमारा पूरा देश एक विचित्र महामारी से जूझ रहा है, ये वो समय है, जब हमें अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करना है।' उन्होंने कहा, "मनुष्य के साहस व संकल्प के सामने बड़े-बड़े पर्वत तक टिक नहीं पाते। नदी का प्रवाह जब प्रवाहित होता है तो वो बड़ी-बड़ी चट्टानों को रेत में परिवर्तित करने का सामर्थ्य रखता है। इसलिए इस विकट परिस्थिति में असहाय होने से समाधान नहीं होगा, अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करना होगा।'
"दोषारोपण की जगह आत्मबल, संयम व संकल्प को जागृत करें'
उन्होंने कहा कि हर संकट का समाधान है, लेकिन समाधान तब होता है, जब मनुष्य को अपने पर भरोसा होता है। जब मनुष्य अपने आराध्य और इष्ट पर भरोसा करता है। इस विश्वास के साथ हम इस महामारी से पार जाएंगे। "मैं समस्त भारतवासियों को निवेदन करना चाहती हूं कि दोषारोपण के बजाय सभी अपने आत्मबल, आत्म संयम को और आत्म संकल्प को जागृत करें...इन सारी परिस्थितियों के बीच में अगर हमारी शक्ति मात्र नकारात्मक चिंतन में लग जाएगी तो कर्म करने का सामर्थ्य और कुछ नया सोचने का सामर्थ्य समाप्त हो जाएगा।' उन्होंने कुरुक्षेत्र में कौरव और पांडवों के बीच युद्ध के बीच टिटहरी के अंडों की रक्षा के लिए प्रभु कृष्ण के ध्यान का जिक्र करते हुए कहा कि टिटहरी के करूण पुकार पर भगवान कृष्ण ने उसकी तथा उसके अंडों की रक्षा की। वहीं, टिटहरी भी युद्ध को देखते हुए युद्धकाल के 18 दिन वह एक स्थान पर छुपी रहीं। यहीं प्रयास हमारा होना चाहिए।
समृद्ध परंपराओं की पहचान कर उन्हें व्यवहार में लाएं: पीठाधीश्वर संत ज्ञानदेव सिंह
श्री पंचायती अखाड़ा-निर्मल के पीठाधीश्वर संत ज्ञानदेव सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा, "केवल भारतवर्ष में नहीं संपूर्ण विश्व में जो यह संक्रमण काल चल रहा है, इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है, मनोबल गिराने की आवश्यकता नहीं है। जो भी वस्तु संसार में आती है, वह सदा स्थिर नहीं रहती। दुःख आया है, वह चला जाएगा। इसलिए घबराने की आवश्यकता नहीं है।'
उन्होंने कहा, "यदि कोई संक्रमित हो जाता है तो वो परमात्मा का चिंतन करें, गीता का पाठ करें, गुरुवाणी का पाठ करें। अपने शरीर को स्वस्थ रखें, मन को स्वस्थ रखें। मन जीते जग जीत, यदि आपका मन स्वस्थ है तो आप स्वस्थ रहेंगे, आप पर कोई प्रभाव नहीं होगा।'
उन्होंने कहा भारत की परंपरागत जीवनशैली में वे सभी तत्व पहले से मौजूद रहे हैं, जिनका पालन करने के लिए हमें आज चिकित्सक कह रहे हैं। इस समृद्ध सांस्कृतिक व आध्यात्मिक परंपरा का पालन कर हम सभी स्वस्थ रह सकते हैं। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी इन समृद्ध परंपराओं की पहचान कर उन्हें व्यवहार में लाएं।
कल होगा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का उद्बोधन
पांच दिवसीय इस व्याख्यानमाला का आयोजन कोविड रिस्पॉन्स टीम (सीआरटी) द्वारा किया गया है, जिसमें समाज के सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व है। इस व्याख्यानमाला का प्रारंभ 11 मई को हुआ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के उद्बोधन के साथ इसका समापन 15 मई को होगा।
यहां हो रहा है प्रसारण
इस व्याख्यानमाला का प्रसारण प्रतिदिन सायं 4.30 बजे से 5.00 बजे विश्व संवाद केंद्र भारत के सोशल मीडिया चैनल (facebook.com/VishwaSamvadKendraBharat और youtube.com/VishwaSamvadKendraBharat) सहित विभिन्न डिजिटल व सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हो रहा है।