IIT Delhi ने हासिल की बड़ी उपलब्धि, विकसित की ई कचरे से धातु को अलग करने की तकनीक

प्रो पंत ने बताया कि इस तकनीक का पेटेंट भी कराया गया है। इस शोध को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में भी प्रकाशित किया गया है। आइआइटी के मुताबिक ई कचरा 3-5 फीसद की वार्षिक वृद्धि दर के साथ सबसे तेजी से बढ़ते अपशिष्ट पदार्थों में से एक है।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Tue, 02 Mar 2021 07:07 AM (IST) Updated:Tue, 02 Mar 2021 10:58 AM (IST)
IIT Delhi ने हासिल की बड़ी उपलब्धि, विकसित की ई कचरे से धातु को अलग करने की तकनीक
50 से 100 फीसद तक ई कचरे से धातुओं को किया जा सकता है अलग

नई दिल्ली, जेएनएन। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली के शोधकर्ताओं ने बिना किसी उत्सर्जन के इलेक्ट्रानिक (ई) कचरे से धातु को निकालने की नई तकनीक विकसित की है। इससे बिना किसी उत्सर्जन के ई कचरे से कई धातुओं को 100 फीसद तक निकाला जा सकता है। वहीं, कुछ धातुओं को 50 फीसद तक अलग किया जा सकता है। इस तकनीक के तीन चरण हैं। पहले चरण में तापमान बढ़ाकर ई कचरे को पिघलाना। दूसरे चरण में प्रथक्करण द्वारा धातु को अलग करना और तीसरे चरण में धातु को अलग-अलग रूप में प्राप्त करना। इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे आइआइटी दिल्ली कैमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो केके पंत का कहना है कि ई-कचरा उत्पन्न होना अपरिहार्य है और यदि इस समस्या का समाधान नहीं किया जाता है, तो यह जल्द ही ठोस कचरे के पहाड़ों को जन्म देगा।

इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपनी देखरेख में शोध कर रहे छात्रों के साथ इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। उन्होंने बताया कि इस तकनीक के तहत बनाए गए पायरोलाइसिस प्लांट द्वारा प्रति घंटे 10 किलोग्राम ई कचरे से धातु को निकाला जा सकता है। यह तकनीक मुख्य रूप से कंप्यूटर और मोबाइल से निकलने वाले ई कचरे से धातु को निकालने के लिए उपयोगी है। प्रो पंत का कहना है कि अभी तक भारत में इस तरह की कोई तकनीक नहीं थी। इस तकनीक के माध्यम से पर्यावरण को स्वच्छ रखने में भी मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा कि सबसे पहले ई कचरे को तापमान बढ़ाकर तरल और गैसीय ईंधन के रूप में परिवर्तित किया जाता है। फिर इसके बाद बचे हुए ठोस अवशेषों से 90 से 95 फीसद शुद्ध धातु का मिश्रण और कुछ कार्बनयुक्त पदार्थ निकलते हैं। इसके बाद अगले चरण में तापमान को कम करके धातु मिश्रण से तांबा, निकल, सीसा, जस्ता, चांदी और सोना जैसी धातुएं प्राप्त हो जाती हैं। इनमें तांबा लगभग 93 फीसद जबकि निकिल, जस्ता और शीशा 100 फीसद तक प्राप्त होती हैं।

वहीं, सोना और चांदी की 50 फीसद तक प्राप्ति होती है। प्रो पंत ने बताया कि इस तकनीक का पेटेंट भी कराया गया है और इस शोध को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में भी प्रकाशित किया गया है। आइआइटी दिल्ली द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक ई कचरा 3-5 फीसद की वार्षिक वृद्धि दर के साथ सबसे तेजी से बढ़ते अपशिष्ट पदार्थों में से एक है। ग्लोबल ई-वेस्ट मानिटर रिपोर्ट 2020 में उल्लेख किया गया है कि वैश्विक स्तर पर 2019 में 53.7 मिलियन मीट्रिक टन ई-कचरे का उत्पादन किया गया था। यह 2030 तक 74.7 तक पहुंचने की उम्मीद है।

इसके अलावा, भारत ई-कचरे का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और उसने अकेले 2019 में 3.23 ई-कचरा उत्पन्न किया है। भारत के बढ़ते उपभोक्तावाद और ई-कचरा प्रबंधन पारिस्थितिकी तंत्र ने हमें एक कमजोर स्थिति में डाल दिया है। विशेष रूप से ई-कचरे में कई विषैले पदार्थ होते हैं जैसे शीशा, कैडमियम, क्रोमिय, ब्रोमाइड, फ्लेम रिटार्डेंट्स या पालीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल्स। इसलिए ई कचरे के अनियंत्रित संचय से लैंडफिलिंग की स्थिति बन सकती है, जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा है। 

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