IIT Delhi और AIIMS ने लकवा मरीजों को दी खुशखबरी, अब ठीक से काम करेंगी कलाई और अंगुलियां
आइआइटी दिल्ली और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) मिलकर उनके बेहतर रिहैबिलिटेशन के लिए रोबोटिक एक्सोस्केलेटन थेरेपी पर काम कर रहे हैं। दोनों संस्थानों के विशेषज्ञों ने मिलकर स्वदेशी उपकरण रोबोटिक ग्लव तैयार किया है। अब तक हुए दो क्लीनिकल ट्रायल बेहतर भविष्य की उम्मीद जगा रहे हैं।
नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। लकवा मरीजों की परेशानी थोड़ी कम हो सकेगी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी), दिल्ली और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) मिलकर उनके बेहतर रिहैबिलिटेशन के लिए रोबोटिक एक्सोस्केलेटन थेरेपी पर काम कर रहे हैं। दोनों संस्थानों के विशेषज्ञों ने मिलकर स्वदेशी उपकरण 'रोबोटिक ग्लव' तैयार किया है। अब तक हुए दो क्लीनिकल ट्रायल बेहतर भविष्य की उम्मीद जगा रहे हैं। यह उपकरण मरीजों के मस्तिष्क को स्टीमुलेट कर (स्फूर्त कर) उनकी कलाई और अंगुलियों में जान फूंकने में मददगार पाया गया है।
आइआइटी के सेंटर फार बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रो. अमित मेहंदीरत्ता बताते हैं कि लकवा के मरीजों की फिजियोथेरेपी के दौरान कलाई और अंगुलियों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता। ऐसे में यदि कंधे और कोहनी ठीक भी हो जाएं तो मरीज दैनिक कार्य नहीं कर पाता, क्योंकि अंगुलियां और कलाई ठीक से काम नहीं करती।
सिग्नल पर काम करेंगी निष्क्रिय अंगुलियां और कलाई
प्रो. मेहंदीरत्ता कहते हैं कि दरवाजा खोलने, ब्रश करने, शर्ट के बटन बंद करने और नहाने समेत नियमित दिनचर्या के अन्य कई कामों के लिए कलाई और अंगुलियों की सक्रियता बहुत जरूरी है। इसे ध्यान में रखते ही यह उपकरण तैयार किया गया है। यह तभी काम करेगा जब दिमाग से इलेक्ट्रिक सिग्नल मिलेगा।
दरअसल जब मरीज को यह पहना दिया जाएगा तो एक बल्ब जलने के बाद मरीज को हाथ की अंगुलियों को इधर-उधर हिलाने का संकेत मिलेगा। मरीज का दिमाग इसे समझकर इलेक्ट्रिक सिग्नल उपकरण को भेजेगा जिसके बाद इसमें गति उत्पन्न होगी। हालांकि यह गति बिना मरीज की दृढ़ इच्छाशक्ति के संभव नहीं होगी। इसके इस्तेमाल से कलाई और अंगुलियों की अकडऩ तो दूर होगी ही, यह प्रक्रिया धीरे-धीरे मस्तिष्क भी सीख जाएगा। लंबे प्रयोग के बाद डिवाइस हटाने पर भी जब मरीज अंगुलियों को हिलाने की कोशिश करता है तो मस्तिष्क तत्काल प्रतिक्रिया देने लगता है।
परीक्षण में जगी उत्साह और उम्मीद
एम्स में इसके अभी तक 11 और 40 मरीजों पर दो परीक्षण हो चुके हैं। यह परीक्षण दो समूह बनाकर किए गए। एक रोबोटिक गुप, दूसरा कंट्रोल ग्रुप। जल्द होने वाले तीसरे चरण के परीक्षण में 200 मरीज शामिल किए जाएंगे। बकौल प्रो. अमित एक महीने के ट्रायल के बाद मरीजों की अंगुलियों और कलाइयों की अकडऩ दूर हो गई।
घर में कर सकेंगे उपयोग
यह पोर्टेबल डिवाइस है। जिसे आसानी से घर में प्रयोग किया जा सकेगा। एक बार मार्केट में आने के बाद इसे किराए पर भी लिया जा सकेगा। यह बिजली से चलेगी।
एम्स दिल्ली के न्यूरोलाजी विभाग के प्रो. एमवी पद्मा श्रीवास्तव ने कहा कि विदेश में पैरालिसिस में रिहैबिलिटेशन की तकनीक पर बहुत काम हुआ है और कई रोबोटिक उपकरण भी बना लिए गए हैं। इनकी कीमत बहुत अधिक होने के कारण भारतीय मरीज फायदा नहीं उठा पाते। ऐसे में किफायती स्वदेशी तकनीक विकसित करने की दिशा में यह पहल है।