दिल्ली-NCR में कैसे दूर होगा पेयजल संकट, कब तक मूलभूत सुविधा के लिए तरसेंगे लोग?
नोएडा के प्रताप विहार में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण किया जा रहा है जिससे 99 एमएलडी गंगाजल की क्षमता बढ़ाई जाएगी। इससे नोएडा में 330 एमएलडी गंगाजल की आर्पूित होने लगेगी। जल नीति बगैर दिल्ली हर राज्य के पास अपनी जल नीति से संबंधित मास्टर प्लान होना जरूरी है।
नई दिल्ली। बचपन में दादी-नानी से मिली बचत की सलाह हमेशा रीढ़ की भांति काम आती है। फिर भी पता नहीं क्यों हम इस सलाह का सदुपयोग पानी बचाने में नहीं करते। पानीदार बनना तो चाहते हैं लेकिन सोच उसके विपरीत रखते हैं। दूसरों को पानी बहाने पर कोसते हैं और खुद वही काम करते हैं। दिल्ली का तो खैर सिस्टम ही लीक है। यहां जरूरत की अपेक्षा कम पाइपलाइन बिछाई हुई हैं और फिर उसमें से जुगाड़ व्यवस्था बनाकर दूसरी जगह भी आपूर्ति शुरू कर दी जाती है या क्षतिग्रस्त पाइपलाइन हैं। बिलकुल उसी तरह जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में खंभे से बिजली चोरी होती है, वही हाल देश की राजधानी दिल्ली में पानी वितरण सिस्टम का है।
अब इससे अधिक दुर्भाग्य दो करोड़ की आबादी वाली दिल्ली का क्या होगा कि यहां आज तक कोई जल नीति ही नहीं है। पानी व्यवस्था को लेकर मास्टर प्लान नहीं है। आबादी बढ़ती गई, उसके लिए पीने के पानी और शुद्ध पानी की उपलब्धता नहीं हो पाई। आखिर हम कब चेतेंगे? चुनाव में पानी के नाम पर वोट भी बटोरे जाते हैं, फिर भी झुग्गी और अवैध कालोनी वालों के घरों की पानी की टोंटी का हलक सूखा रहता है। आज भी दिल्ली पानी आपूर्ति को पड़ोसी राज्यों पर आश्रित है। जब यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती है, जलाशयों में जल स्तर कम हो जाता है तो अक्सर दिल्ली के बड़े क्षेत्रों में जल आर्पूित बाधित हो जाती है। आखिर कब तक दिल्ली पानी जैसी मूलभूत सुविधा को तरसती रहेगी? आखिर क्यों दिल्ली
की अपनी जल नीति नहीं है? क्यों नहीं साकार हो पा रहीं जलापूर्ति की योजनाएं... इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है :
आपूर्ति नहीं पर्याप्त कैसे बुझेगी प्यास
दिल्ली-एनसीआर में गर्मी शुरू होते ही बाल्टी, गैलन और डब्बा लिए लोग सड़कों पर टैंकर के पीछे भागते नजर आते हैं। पानी के लिए मारपीट और धक्कामुक्की तक की नौबत आ जाती है। कोरोना संक्रमण के इस दौर में भी लोग शारीरिक दूरी को भूल पानी के लिए मशक्कत करते नजर आ रहे हैं। करें भी तो क्या, प्यास जो बुझानी है। पानी की मांग और आपूर्ति के बीच का फासला कम नहीं हो रहा है। वर्तमान में कितने पानी की है जरूरत और कितनी हो रही है आपूर्ति, कितने फीसद लोगों को पाइपलाइन से हो रही है जलापूर्ति, भविष्य के लिए क्या बनाई जा रही हैं योजनाएं
जलार्पूित के लिए निर्माणाधीन परियोजनाएं
16 गांवों में बिछाई जाएंगी पेयजल लाइनें
नोएडा के प्रताप विहार में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण किया जा रहा है, जिससे 99 एमएलडी गंगाजल की क्षमता बढ़ाई जाएगी। इससे नोएडा में 330 एमएलडी गंगाजल की आर्पूित होने लगेगी। जल नीति बगैर दिल्ली हर राज्य के पास अपनी जल नीति और जलापूर्ति से संबंधित मास्टर प्लान होना जरूरी है। वर्ष 2012 में जल नीति तैयार कराई गई थी, जिसे दिल्ली सरकार के वरिष्ठ नौकरशाहों के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। सुझाव के अनुसार उसमें बदलाव करने के बाद जल बोर्ड ने उसे स्वीकृति दे दी, लेकिन उसे अब तक दिल्ली सरकार से मंजूरी नहीं मिली है। इस वजह से दिल्ली की अभी तक कोई जल नीति ही नहीं है। 2012 में ही वर्ष 2021 तक पेयजल आपूर्ति के लिए मास्टर प्लान बना था। वर्ष 2021 करीब आधा बीत चुका है, इसके बाद भी उसे जल बोर्ड से मंजूरी नहीं मिली है
दो टूल, संकट हो जाएगा दूर
जल नीति व मास्टर प्लान दोनों दो चीजें हैं। जल नीति का मतलब ऐसे दिशा निर्देश हैं, जिसमें यह तय होता है कि उपलब्ध पानी का किस तरह इस्तेमाल किया जाएगा। पानी के मास्टर प्लान का मतलब अपनी जनसंख्या के अनुसार अगले 10-20 साल की जरूरत के लिए योजनाएं बनाकर पेयजल उपलब्धता बढ़ाना है। जिस राज्य के पास ये दो प्रमुख टूल नहीं है वहां पेयजल किल्लत दूर करना आसान नहीं है।
बेहतर प्रबंधन ही निदान
यमुना के पानी में अमोनिया की समस्या दूर करने के लिए ओजोनेशन तकनीक से शोधन की बात कही जा रही है लेकिन जल प्रबंधन पर ध्यान देना होगा। सीवरेज के शोधन से करीब 500 एमजीडी पानी उपलब्ध होता है। उसे दोबारा शोधित कर गैर घरेलू कार्यों में इस्तेमाल किया जा सकता है। अभी सीवरेज का 90 एमजीडी पानी ही इस्तेमाल हो पा रहा है। बाकी पानी यमुना में बहा दिया जाता है जबकि पेयजल का इस्तेमाल गैर घरेलू कार्यों में होता है। इसलिए जब तक प्रबंधन बेहतर नहीं होगा तब तक समस्या दूर नहीं होगी।
योजना जो अभी तक इंतजार में
चंद्रावल जल शोधन संयंत्र की तरह वजीराबाद जल शोधन संयंत्र में नया प्लांट लगाने और उसके पूरे कमांड क्षेत्र में पाइपलाइन बदलने की योजना बनी थी। उसका टेंडर भी हुआ लेकिन जल बोर्ड ने उसे पास नहीं किया। इस वजह से योजना आगे नहीं बढ़ पाई। ऐसी कई योजनाएं कागजों में दम तोड़ रही हैं।