कैसे हो प्रदूषण कंट्रोल, राज्य प्रदूषण बोर्ड ठीक से पेट्रोलिंग टीमों का गठन तक नहीं करते, पढ़िए अन्य खामियां
Air Pollution in Delhi-सालों की मेहनत के बाद भी दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का अपेक्षित स्तर पर कम नहीं होना चिंताजनक है। दिल्ली में अभी भी हर नागरिक प्रदूषित हवा में ही सांस लेने को मजबूर है। हालांकि इससे निपटने के लिए योजनाएं तो बहुत बनाई गई हैं।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। सालों की मेहनत के बाद भी दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का अपेक्षित स्तर पर कम नहीं होना चिंताजनक है। दिल्ली में अभी भी हर नागरिक प्रदूषित हवा में ही सांस लेने को मजबूर है। हालांकि, इससे निपटने के लिए योजनाएं तो बहुत बनाई गई हैं, लेकिन उन पर गंभीरता से अमल बहुत कम हो पाता है। यह अलग बात है कि बीते कुछ सालों में विभिन्न वजहों से समग्रता में दिल्ली के प्रदूषण में कुछ कमी अवश्य आई है।
दरअसल, प्रदूषण से जंग में ईमानदारी व गंभीरता दोनों अनिवार्य हैं। सरकारी सक्रियता भी बहुत मायने रखती है। केंद्र सरकार कार्ययोजनाएं तैयार करती है, जबकि उन पर अमल करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है। प्रदूषण पर राजनीति ही नहीं, अमीर और गरीब का भेद खत्म करना भी जरूरी है। दीर्घकालिक उपायों को गति देनी होगी। निगरानी बढ़ानी होगी। जन जागरूकता के साथ-साथ सख्त रवैया भी अपनाना होगा। ऐसा नहीं होने के कारण ही पहले केवल सर्दियों के मौसम में समस्या का सबब बनने वाला वायु प्रदूषण अब नासूर बनकर दिल्ली एनसीआर में वर्ष भर दर्द देता है।
विभागों में तालमेल ही नहीं
ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) अधिसूचित होने के बावजूद दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ने की वजह इसके पालन में हीलाहवाली है। नियम-कायदे तो बन गए, लेकिन उन पर क्रियान्वयन करने वाली एजेंसियां अभी भी बहुत सक्रिय नहीं हैं। डीजल जेनरेटर पर प्रतिबंध सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारें हर साल हाथ खड़े कर देती है। ग्रेप के प्रविधान लागू करने के लिए राज्य सरकार से लेकर स्थानीय निकाय तक सभी जिम्मेदार हैं। लेकिन हकीकत में इनमें आपस में ही कोई तालमेल नहीं है।
कार्रवाई का अभाव
ग्रेप के प्रविधानों का पालन न होने की स्थिति में कार्रवाई आवश्यक है। लेकिन वह किसी भी स्तर पर ठीक से नहीं हो रही है। सीपीसीबी और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अलावा किसी राज्य प्रदूषण बोर्ड ने ठीक से पेट्रोलिंग टीमों का गठन तक नहीं किया है। विडंबना यह है कि सीपीसीबी की टीमें जो रिपोर्ट तैयार करती हैं, सीपीसीबी की ओर से कार्रवाई के लिए प्रदूषण बोर्ड को भेज दी जाती है। उदाहरण के लिए दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस रिपोर्ट को नगर निगमों के पास अग्रसारित कर देता है जबकि नगर निगम की ओर से न उस पर कार्रवाई होती है, न ही वापस ज-वाब भेजा जाता है।
(सुनीता नारायण, महानिदेशक, सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई)
समन्वय जरूरी
अगर दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण को और कम करना है तो केवल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ही नहीं, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी), लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी), नगर निगम (एमसीडी) और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी), दिल्ली कैंट सभी को मिलकर काम करना होगा। राज्य और केंद्र सरकार को भी निगरानी व जवाबदेही दोनों तय करनी होगी। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत करना होगा। इलेक्टिक वाहनों और साइकिल को भी बढ़ावा देना चाहिए।
सख्त कार्रवाई की जाए
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए 18 सदस्यीय एक आयोग बनाया गया है। उम्मीद है कि इस आयोग के जरिये विभिन्न समस्याओं का समाधान भी निकल आएगा। ग्रेप का दायरा भी बढ़ जाएगा, क्योंकि आयोग का अधिकार क्षेत्र सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ही नहीं, बल्कि वे सभी सीमावर्ती इलाके हैं, जो दिल्ली की हवा को प्रभावित करते हैं। आयोग को काफी शक्ति भी दी गई हैं। ग्रेप के प्रविधानों का पालन नहीं होने की स्थिति में सख्त कार्रवाई करना अत्यंत आवश्यक है।
चलाना होगा अभियान
ग्रेप के पालन में राज्य सरकारें जहां राजनीतिक राग द्वेष भी साथ लेकर चल रही हैं, वहीं प्रदूषण बोर्ड स्वयं को अधिकार विहीन बताते हुए लाचार महसूस कर रहे हैं। यही वजह है कि किसी को कोई भय नहीं है। पंजाब व हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं अभी भी सामने आ रही हैं। यहां भी राज्य सरकारों की भूमिका मायने रखती है। सरकारों को वोट बैंक के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य की भी चिंता होनी चाहिए। लोगों को जागरूक किए बिना इस पर नियंत्रण आसान नहीं है इसके लिए जन जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। जितनी जन जागरूकता बढ़ेगी, उतना ही सहयोग मिलेगा।