नागरिकता के साथ ही कोरोना टीके के इंतजार में हिंदू शरणार्थी, लगाई केंद्र से गुहार

मजनूं का टीला कैंप में रहने वाले पाकिस्तानी शरणार्थी डा. कृष्णमल कहते हैं कि अगर कोरोना महामारी नहीं आई होती तो शायद उन लोगों को अब तक नागरिकता मिल गई होती। ईश्वर का शुक्र है कि कोरोना महामारी से वे लोग बचे रहे।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Mon, 01 Mar 2021 09:05 PM (IST) Updated:Mon, 01 Mar 2021 09:05 PM (IST)
नागरिकता के साथ ही कोरोना टीके के इंतजार में हिंदू शरणार्थी, लगाई केंद्र से गुहार
मजनूं का टीला कैंप में रहने वाले पाकिस्तानी शरणार्थी

नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। देश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) भले ही लागू हो गया है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका क्रियांवयन न हो से पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी का इंतजार खत्म नहीं हुआ है। उनकी प्राथमिकता में नागरिकता मिलना ही शामिल था। अब उसमें इस महामारी से बचने के लिए कोरोना टीका भी जुड़ गया है। सवाल यह है कि बिना नागरिकता के उन्हें टीका कैसे लगेगा? इस संबंध में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह से हस्तक्षेप की गुहार लगा रहे हैं।

देश में दूसरे चरण का टीकाकरण प्रारंभ हो गया है। इसमें 60 साल से ऊपर के बुजुर्ग और 45 वर्ष से अधिक के गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों का टीकाकरण किया जाना है।

दिल्ली में हैं पाकिस्तान से आए तीन हजार हिंदू शरणार्थी 

दिल्ली में पाकिस्तान से आए तकरीबन तीन हजार हिंदू शरणार्थी हैं। ये मजनूं का टीला स्थित कैंप के साथ ही आदर्श नगर, रोहिणी सेक्टर 11 व सेक्टर 25 के साथ ही सिग्नेचर ब्रिज के नीचे रहते हैं। इनमें बुजुर्ग और गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या 100 से अधिक है। 

अभी तक नहीं मिली है नागरिकता, इसलिए बढ़ी है इनकी चिंता

मजनूं का टीला कैंप में रहने वाले पाकिस्तानी शरणार्थी डा. कृष्णमल कहते हैं कि अगर कोरोना महामारी नहीं आई होती तो शायद उन लोगों को अब तक नागरिकता मिल गई होती। ईश्वर का शुक्र है कि कोरोना महामारी से वे लोग बचे रहे। उन्हें उस समय भी खुशी हुई, जब दो स्वदेशी कोरोना टीके को मंजूरी दी गईं। अब जबकि आम लोगों को यह टीका लगना शुरू हो गया है तो सवाल कि क्या इस मामले में मानवीय आधार पर उन्हें देश का नागरिक मानते हुए टीका लगाया जाएगा। इस कैंप में भी कई उम्रदराज हैं।

कैंप के मुखिया 45 वर्षीय सोनादास के पिता 95 वर्ष तथा मां 85 वर्ष की हैं। साथ रहते बड़े भाई की उम्र भी 70 वर्ष के ऊपर है। वह अपने परिजनों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं। वह टीके के विरोध की सियासत से भी नाखुशी जताते हुए कहते हैं कि यह लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ मामला है, इसलिए इसका विरोध नहीं करना चाहिए। अगर मौका मिला तो वे सभी लोग टीका लगवाएंगे। इनके बीच सेवा का काम करने वाले भूपेंद्र सरीन कहते हैं कि भले ही किसी को नागरिकता नहीं मिली है, पर इनमें से कई परिवार का गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद आधार कार्ड बना है। ऐसे में इनके टीकाकरण की मांग वह जिला प्रशासन व सरकार तक पहुंचाएंगे।

रोहिंग्या को कैसे लगेगा टीका ?

कंचन कुंज के यमुना खादर में कैंप में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर भी सवाल है कि इन्हें कैसे टीका लगेगा? सरकार इन्हें घुसपैठिया मानती है। इनके बीच काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता शमा खान इनके मामले में भी केंद्र सरकार से मानवीय आधार पर हस्तक्षेप की गुहार लगाती हैं। वह कहतीं है कि यह भी दिल्ली के लोगों के बीच रह रहे हैं, अगर इन्हें इस तरह छोड़ा गया तो कोरोना के खिलाफ जंग जीतना मुश्किल होगा।

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