कैशलेस हेल्थ पॉलिसी लेकर हो गए हैं बेफ्रिक तो पढ़ ले ये खबर, कोरोना काल में कहीं न पड़ जाए पछताना

अगर आप लाखों रुपये की कैशलेस हेल्थ इंश्योरेंस पालिसी खरीदकर निश्चिंत हो गए हैं तो आप गलतफहमी में हैं। दरअसल स्वास्थ्य बीमा होने के बावजूद कोरोना संक्रमित मरीजों को भर्ती करने से पहले निजी अस्पताल दो-तीन लाख रुपये नकद जमा करा रहे हैं।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Thu, 13 May 2021 12:48 PM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 12:48 PM (IST)
कैशलेस हेल्थ पॉलिसी लेकर हो गए हैं बेफ्रिक तो पढ़ ले ये खबर, कोरोना काल में कहीं न पड़ जाए पछताना
बीमा कंपनी से क्लेम लेने की बजाय मरीज से वसूलते हैं पूरा पैसा।

नई दिल्ली, [अरविंद कुमार द्विवेदी]। अगर आप लाखों रुपये की कैशलेस हेल्थ इंश्योरेंस पालिसी खरीदकर निश्चिंत हो गए हैं तो आप गलतफहमी में हैं। दरअसल, स्वास्थ्य बीमा होने के बावजूद कोरोना संक्रमित मरीजों को भर्ती करने से पहले निजी अस्पताल दो-तीन लाख रुपये नकद जमा करा रहे हैं। वे क्लेम के लिए बीमा कंपनी में आवेदन करने की बजाय मरीज से ही ज्यादा से ज्यादा पैसे जमा करा लेते हैं। यह हाल किसी एक का नहीं बल्कि राजधानी के ज्यादातर निजी अस्पतालों का है। मजबूरी में लोगों को उनकी मनमानी के आगे झुकना ही पड़ता है। ऐसा ही एक मामला नेहरू नगर स्थित विमहंस अस्पताल में सामने आया है।

पालिसी के बावजूद जमा कराया एक लाख रुपये

निजी कंपनी में गार्ड की नौकरी करने वाले मंगू कोरोना संक्रमित थे। 22 अप्रैल को उन्हें विमहंस लाया गया। न्यू इंडिया इश्योरेंस कंपनी की स्वास्थ्य बीमा पालिसी की पूरी डिटेल देने के बावजूद उनसे एक लाख रुपये जमा कराए गए। असेसमेंट के बाद डाक्टरों ने कहा कि उनकी हालत गंभीर नहीं थी, इसलिए उन्हें अस्पताल से संबद्ध होटल में भर्ती किया गया है। एक सप्ताह बाद अस्पताल से 70 हजार रुपये जमा करने के लिए मंगू के तीमारदार को फोन किया गया। इस पर स्वजनों ने कहा कि पालिसी की डिटेल दे चुके हैं, इसलिए अस्पताल बीमा कंपनी में आवेदन करके क्लेम लें। इस पर अस्पताल ने कहा कि उन्हें नकद पैसे चाहिए, बीमा कंपनी से क्लेम नहीं मिलेगा।

72 हजार बिल अदा कर मरीज ले जाओ

पांच मई को अस्पताल से फोन आया कि मंगू ठीक हो गए हैं, 72 हजार रुपये बिल चुकाकर उन्हें डिस्चार्ज करवा लिया जाए। इस पर स्वजनों ने एक बार फिर बीमा कंपनी से क्लेम लेने की बात कही तो अस्पताल प्रशासन ने डिस्चार्ज करने से मना कर दिया। घरवाले प्रतिदिन अस्पताल प्रशासन से बात करते लेकिन उन्हें डिस्चार्ज नहीं किया गया। थक-हारकर परिजनों ने बीमा कंपनी से संपर्क किया तो बताया गया कि अस्पताल से कोई आवेदन ही नहीं मिला है।

पुलिस के हस्तक्षेप पर अस्पताल ने क्लेम के लिए किया आवेदन

परेशान होकर परिजनों ने पुलिस को फोन किया। पुलिस के हस्तक्षेप पर बड़ी मुश्किल से अस्पताल प्रशासन क्लेम के लिए बीमा कंपनी को आवेदन करने के लिए राजी हुआ। हालांकि इस बीच अस्पताल का बिल ढाई लाख तक बढ़ चुका था। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद अस्पताल प्रशासन ने बीमा कंपनी को 4.20 लाख रुपये के लिए आवेदन किया। इस पर बीमा कंपनी से 2.30 लाख रुपये का क्लेम मंजूर हुआ। मरीज डिस्चार्ज करने के साथ ही अस्पताल प्रशासन जमा किए गए एक लाख में से 87 हजार रुपये वापस करने पर राजी हुआ है। हालांकि अभी ये पैसे दिए नहीं गए हैं। स्वजनों का आरोप है कि अस्पताल और बीमा कंपनियों की साठगांठ के चलते उन्हें परेशान होना पड़ा।

डॉक्टर की बात

हमारे अकाउंट विभाग के मुताबिक मरीज ने बीमा होने की बात पहले नहीं बताई थी। मरीज ने बीमा पालिसी की बात तब बताई जब उन्हें डिस्चार्ज किया जाना था। जबकि नियम यह है कि मरीज को भर्ती होने के 24 घंटे के अंदर अपनी बीमा पालिसी की पूरी डिटेल देनी होती है। अगर बिलिंग में कोई समस्या हुई है तो अस्पताल आकर इस बारे में पता किया जा सकता है।

-डॉ. उबेद, इंचार्ज कोरोना यूनिट

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