छात्रों के लिए खुशखबरी: दिल्ली स्किल एंड एंटरप्रेन्योर यूनिवर्सिटी एडमिशन के लिए खुद पहुंचेगी छात्रों के पास, जानें कब
शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक शुरुआत हुई है। दिल्ली स्किल एंड एंटरप्रेन्योर यूनिवर्सिटी (डीएसईयू) दाखिला देने के लिए छात्रों के पास खुद जाएगी। यूनिवर्सिटी पहले ही सत्र में 6000 छात्रों को दाखिला देगी। इनमें 4500 बच्चों को डिप्लोमा और 1500 बच्चों को डिग्री कोर्स में दाखिला दिया जाएगा।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी शुरुआत हुई है। दिल्ली स्किल एंड एंटरप्रेन्योर यूनिवर्सिटी (डीएसईयू) दाखिला देने के लिए छात्रों के पास खुद जाएगी। यूनिवर्सिटी पहले ही सत्र में 6,000 छात्रों को दाखिला देगी। इनमें 4,500 बच्चों को डिप्लोमा और 1,500 बच्चों को डिग्री कोर्स में दाखिला दिया जाएगा। डीएसईयू द्वारा शुक्रवार को आयोजित किए गए एक वेबिनार में हिस्सा लेते हुए उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि देश के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा कि जब एक यूनिवर्सिटी दाखिला देने के लिए छात्रों के पास जाएगी।
यूनिवर्सिटी आगामी दिसंबर-जनवरी में स्कूलों में जाकर वहां एक टेस्ट लेगी और उसके आधार पर बच्चों को दाखिला मिलेगा। कैंपस सेलेक्शन की तर्ज पर कैंपस एडमिशन होगा। एडमिशन के लिए बच्चों को परीक्षा में अंकों का इंतजार नहीं करना होगा। जो बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ अपने व्यक्तित्व के चहुंमुखी विकास पर ध्यान देते हैं उनको ध्यान में रखकर ही ये तरीका अपनाया गया है।
पढ़ा-लिखा होने और संवेदनशील होने में मामूली नहीं बहुत बड़ा अंतर है। कोरोना काल में जब आक्सीजन की कालाबाजारी शुरू हुई तो इसका अंतर बखूबी समझ आया। ये देखा गया कि हर व्यक्ति जो पढ़ा लिखा है जरूरी नहीं कि वो संवेदनशील ही हो। आक्सीजन और दवाओं की कालाबाजारी से पढ़े-लिखे और शिक्षित समाज की असंवेदनशीलता खुलकर सामने आई। इन सभी ने स्कूलों में नैतिक मूल्यों का पाठ तो पढ़ा पर इनमें जीवन कौशल की भारी कमी देखने को मिली।ये कहना है शिक्षाविदों का। शिक्षाविदों का मानना है कि जीवन कौशल की कमी से एक हम असंवेदनशील समाज का निर्माण कर रहे हैं।
महामारी के दौरान संक्रमित मरीजों के प्रति इस कदर असंवेदनशीलता देखने को मिली कि लोगो ने आक्सीजन सिलेंडर और दवाइयां छुपा ली और उनके दाम बढ़ा दिए। मरीज की जरूरत की चीज को मरीज के काम ही नहीं आने दिया। शिक्षाविदों का कहना है कि नैतिक मूल्यों के साथ जीवन कौशल को सीखना बहुत जरूरी है। कहीं न कहीं शिक्षा प्रणाली जीवन कौशल का पाठ सिखाने में पीछे रह गई। उनके मुताबिक जीवन कौशल का पाठ भी न सिर्फ पढ़ाना होगा बल्कि आत्मसात कराना होगा। ताकि एक बेहतर समाज का निर्माण हो सके