आइए, समय के अंतर्निहित अर्थ को तलाशें, दुख और आनंद क्या है यह जानें

बुद्ध का कथन है कि यदि आपको वर्तमान दौर संकटपूर्ण प्रतीत हो रहा है तो न घबराएं। अपने भीतर स्थित शांति के द्वीप पर जाएं वहां ठहर जाएं घर बना लें। याद रखें जीवन कहीं भी ठहरता नहीं यह समय भी बीतेगा और संकट के बादल छाते और जाते रहेंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 12:09 PM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 12:09 PM (IST)
आइए, समय के अंतर्निहित अर्थ को तलाशें, दुख और आनंद क्या है यह जानें
मुश्किल वक्त से बाहर निकल जाएंगे हम, यह संकल्प लें..

नई दिल्‍ली, सीमा झा। आज के समय में कोरोना जब एक बार फिर हर किसी को बुरी तरह डरा रहा है, तो क्या आपने इसके बारे में गंभीरता से सोचा है कि कहीं हम सब भी तो इसके लिए जिम्मेदार नहीं? एक तरफ जहां कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, उसमें यदि हम पर्याप्त सावधानी नहीं बरत रहे और केवल भय के साये में डूबे हैं तो यह बताता है कि हम खुद अपने दुश्मन हैं।

हम आमतौर पर तब तक अपने दुश्मन बन जाते हैं, जब तक कि हमें पता नहीं होता कि खुद से दोस्ती करना कितना जरूरी है। यदि खुद के दोस्त नहीं होंगे, तो शांति की तलाश बेमानी है। खुद से दूरी है, जो आपको अपने ही पथ पर संशय करने के लिए बाध्य कर देती है। अनिर्णय की स्थिति में रहते हैं आप। आत्मविश्वास की कमी रहती है और नकारात्मकता के शिकार हो जाते हैं। दिलचस्प तो यह है कि खुद के दोस्त न होने के कारण हम खुद के दुश्मन बन जाते हैं।

क्या तलाश रहे हैं हम : आपदा से बाहर निकलने की छटपटाहट है, लेकिन आप समय की डोर से बंधे हैं। आप समझ नहीं पाते कि कैसे उलझन भरे समय में मन को खुश रखें। आपका मन कुछ नया चाहता है। नये अनुभव, नये लोग, नयी उत्तेजना की खुशी मिले, पर क्या यह आपको खुश रखता है? आप जानते हैं कि यह क्षणिक होती है। आप जल्द ही अपने आप से ऊब जाते हैं। फिर एक और नयी उत्तेजना की तलाश के लिए विवश होते हैं। क्या खुशी इन नये अनुभवों की खोज में खुद को थका डालने में है या एक नये तरह के सुकून को पाने में है?

समरसता में खुशी: कोलाहल भरे परिवेश में शांत जीवन कैसे संभव है? अपनी मशहूर किताब ‘द कॉन्क्वेस्ट ऑफ हैप्पीनेस’ में दार्शनिक बर्ट्रेंड रसेल लिखते हैं, ‘आनंदमय जीवन बहुत हद तक एक शांत जीवन होना चाहिए। शांति के वातावरण में ही वास्तविक आनंद का अनुभव किया जा सकता है।’ वहीं, महात्मा गांधी ने खुशी के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है। उनका कहना था, ‘जब आपके कहने, बोलने और करने में समरसता होती है, तभी सुख होता है।’ सुखी जीवन के लिए यह एक शाश्वत नियम की तरह प्रतीत होता है। कथनी व करनी में अंतर का अर्थ है आंतरिक द्वंद्व। यह दु:ख का ही दूसरा नाम है। गांधी जी कथनी व करनी में सामंजस्य बनाए रखने का एक साक्षात उदाहरण थे। जब कोई उनसे पूछता था कि उनका संदेश क्या है तो उनका सीधा जवाब होता था, ‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है’ यानी कि वे जिसे ओढ़ते-बिछाते थे, वही लोगों को बताते थे। जो वे खुद करते थे, वही दूसरों से करने की अपेक्षा करते थे। यह बहुत सरल है। इसे एक अंतिम नियम बना लिया जाए तो जीवन में सुख भी बढ़ेगा और दु:ख कम भी होगा। क्या हम ऐसे आनंदपूर्ण जीवन के लिए तैयार हो सकते हैं? बेशक इच्छाशक्ति मजबूत हो तो सब संभव है। नियमित अभ्यास से हम आनंदपूर्ण जीवन की ओर बढ़ सकते हैं।

शांति के द्वीप पर चलें: दु:ख हमारी स्वाभाविक मनोदशा नहीं है। वेदांत और बौद्ध धर्म के संदेश भी मानव की एक ऐसी मूलभूत और वास्तविक अवस्था की तरफ संकेत करते हैं, जहां ‘शांति का एक द्वीप है’, जहां क्षणिक सुख और दु:ख से दूर आनंद की एक अवस्था में हम रह सकते हैं। यह अवस्था हर तरह की उठा-पटक, ऊहापोह और उद्वेलन से परे है। यदि आप इस समय बाहर मच रही उथल-पुथल से परेशान हैं तो स्वाभाविक रूप से उपलब्ध इस अवस्था को महसूस करने का सही समय है। यह अवस्था मनुष्य को स्वाभाविक रूप से उपलब्ध है।

यदि दुख से भरे और खुद को हारा हुआ महसूस कर रहे हैं तो याद रखें कि खुशी की तलाश से बहुत ज्यादा जरूरी है कि हम अपने रोजमर्रा के छोटे-छोटे दुखों की तह में जाएं और उनके कारणों को खत्म करें। याद रखें कि अक्सर दु:ख होता है, अपनी गलत समझ, अव्यवस्थित संबंधों और अहम वृत्तियों की ईंटों से। यदि उन पर काम किया जाए, उन्हें खत्म किया जाए तो सुख तो पहले से ही वहीं उपस्थित है, जहां हम हैं। खुशी का आसमान हर वक्त ऊपर तना हुआ है, बस दु:ख के बादलों को इतना महत्व न दिया जाए कि वे पूरे आकाश को ही ढक लें। उन्हें आने-जाने दिया जाए, यह समझते हुए कि उन क्षणभंगुर बादलों के ठीक पीछे हमेशा एक मुस्कुराता हुआ विस्तृत आसमान हमारी प्रतीक्षा में है। इसलिए हम सब अभी के हालात की गंभीरता को समङों और हर संभव सावधानी बरतते हुए अपने साथ-साथ अपनों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करें।

इन बातों का ध्यान रखें

इस पल में आप क्या करते हैं, उस पर एकाग्र रहें। उसे बेहतर बनाने का पूरा प्रयास होना चाहिए।

मुश्किलें बड़ी हैं तो उससे भागना नहीं लड़ना होगा, यह भाव आपको मजबूत बनाएगा।

नकारात्मक भावों को मन में अधिक देर तक ठहरने न दें। नकारात्मकता पैदा करने वाली स्थितियों, परिवेश से बचने का भरसक प्रयास करें।

अगर संकट है तो उसका समाधान भी उसके साथ है, इस बात को हमें नहीं भूलना चाहिए।

दुनिया लौटेगी आपके कदमों में

इसकी कोई दरकार नहीं कि आप अपना घर (आप जिस अवस्था में हैं) छोड़ दें। अपनी मेज पर ही रहें और सुनें। सुनिए भी मत, सिर्फ इंतजार कीजिए। इंतजार भी न करें, बस अकेले और शांत रहें। यह दुनिया खुद को आपके सामने पेश कर देगी। इसके पास और कोई चारा ही नहीं। अपने आह्लाद में डूब कर बस यह आपके कदमों में लौटेगी।

फ्रेंज काफ्का, उपन्यासकार

समङों जीवन की संपूर्णता को

आपको समूचे जीवन को समझना होगा, इसके सिर्फ एक नन्हे से हिस्से को ही नहीं। इसलिए आपको इसे पढ़ना चाहिए, आसमान की ओर निहारना चाहिए। इसलिए आपको गीत गाना चाहिए, नृत्य करना चाहिए और कविताएं लिखनी चाहिए। दुख भोगना चाहिए और समझना चाहिए कि जीवन यही सब कुछ तो है।

जे. कृष्णमूर्ति

(चैतन्य नागर लेखक कृष्णमूर्ति फाउंडेशन, वरिष्ठ स्तंभकार)

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