Father's Day 2021: पापा के साथ आई रिश्तों में मिठास, बच्चों का बढ़ा आत्मविश्वास

Fathers Day 2021कोरोना काल ने रिश्तों को नये रूप में परिभाषित किया है। फिर वह अपने हों या अनजाने। परिवार में बच्चों का पैरेंट्स और ग्रैंडपैरेंट्स के साथ बेहतर सामंजस्य बना है। खासकर पिता के साथ बच्चों का जुड़ाव गहरा एवं संबंध दोस्ताना हुए हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 19 Jun 2021 12:05 PM (IST) Updated:Sat, 19 Jun 2021 12:06 PM (IST)
Father's Day 2021: पापा के साथ आई रिश्तों में मिठास, बच्चों का बढ़ा आत्मविश्वास
बच्चों का डर-संकोच दूर हुआ है और वे मन से पापा के ज्यादा करीब आ गए हैं....

नई दिल्‍ली, अंशु सिंह। Father's Day 2021 एक समय था जब छह साल की सुहाना को डैडी से बात करने में झिझक होती थी,क्योंकि उनके साथ उसे बमुश्किल ही वक्त गुजारने को मिलता था। मां से ही सारी बातें या अपने सीक्रेट शेयर किया करती थी। लेकिन पिछले कुछ समय में वह मां से अधिक डैडी के करीब आ गई है। उनके साथ खेलना,पढ़ना,मस्ती करना सब करती हैं। यहां तक कि रात में डैडी से कहानी सुने बिना नींद ही नहीं आती । सुमित भी बेटी के साथ क्वालिटी टाइम बिताने के बाद काफी रिलैक्स महसूस करते हैं।

कोरोना काल में इस तरह के नये एवं सकारात्मक बदलाव काफी देखने को मिले हैं,फिर वह भारत में हों या विदेश में। सिंगापुर के मैनपावर मिनिस्ट्री के लेबर फोर्स रिपोर्ट के मुताबिक,स्टे एट होम फादर्स की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है। वर्क फ्राम होम या रिमोट वर्किंग के कारण पिता न सिर्फ बच्चों के साथ रह रहे हैं,बल्कि उन्हें अपने सामने ग्रो करते देख रहे। वे खुद भी सीख रहे हैं कि कैसे एक बेहतर पिता बनकर बच्चों का प्यार और विश्वास हासिल कर सकते हैं।

पापा से बहुत कुछ मिला सीखने को: ‘क्रिकेट मेरा पसंदीदा स्पोर्ट्स है। कोरोना से पहले दोस्तों के साथ खेला करता था। बीते डेढ़ साल से सब बंद है। मैंने सोचा नहीं था कि कभी पापा के साथ खेलने का मौका मिलेगा। टूरिंग जाब के कारण वे महीने में 15 दिन शहर से बाहर ही रहा करते थे। लेकिन, आज वर्क फ्राम होम करने के कारण हम हर शाम को फैमिली के साथ क्रिकेट जरूर खेलते हैं।‘ यह कहना है सातवीं में पढ़ने वाले युवराज का। इनकी मानें, तो पापा के घर में रहने से उनके अंदर एक अनुशासन आया है। उन्होंने हमारे लिए एक रूटीन बनाया है, जिसमें पढ़ाई के साथ इंडोर एवं आउटडोर गेम्स खेलने होते हैं।

दिलचस्प यह है कि पहले की तरह युवराज को अब उतना मोबाइल फोन देखने को नहीं मिलता है। बावजूद इसके उन्हें ज्यादा शिकायत नहीं है। वह कहते हैं, ‘कुछ वर्षों से मेरी एक आभासी दुनिया बन गई थी। दोस्तों के साथ ही समय बिताना अच्छा लगता था। पापा थोड़े सख्त थे, तो उनसे बहुत जरूरी बातें ही किया करता था। लेकिन इन दिनों अधिक समय साथ बिताने के बाद लगा कि वे काफी सरल और समझदार हैं। गंभीर बातें भी हल्के-फुल्के तरीके से बोल देते हैं। उनकी क्रिकेट की जानकारी एवं जनरल नालेज काफी स्ट्रांग है। उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला है। उन्होंने मुझे क्रिकेट से संबंधित कई किताबें लाकर दी हैं।‘

खुलकर होने लगी हैं बातें: अमेरिका के नार्थ कैरोलिना स्थित वेक फारेस्ट यूनिवर्सिटी की एजुकेशन प्रोफेसर एवं पिता-पुत्री के मुद्दों की विशेषज्ञ लिंडा नीलसन के अनुसार, कोविड-19 ने सभी के जीवन को प्रभावित किया है। लेकिन इसने परिवार की संरचना को कहीं अधिक मजबूत किया है। खासकर पिता एवं बेटी के संबंधों में नई गर्माहट आई है। एक उम्र के बाद जब लड़कियां पिता से अधिक मां के नजदीक आने लगती हैं,तो पिता से उनका आपसी संवाद कम होने लगता है और दूरियां बढ़ने लगती हैं। इसलिए पिता एवं बेटियों के लिए यह मौका है कि वे इस दूरी को पाटने की कोशिश कर अपने संबंधों को बेहतर बना सकते हैं। 12वीं की छात्रा मेघना अपनी मां के बहुत करीब रही हैं। उन्हें ही अपना रोल माडल मानती हैं। आखिर हर मोड़ पर उन्होंने बेटी को हिम्मत एवं हौसला जो दिया है। डैडी के गंभीर स्वभाव के कारण उनसे कुछ भी शेयर करने से पहले काफी सोचना पड़ता है। लेकिन पिछले एक साल में कई परिवर्तन आए हैं। वह बताती हैं,‘कोविड ने मेरी बेस्ट फ्रेंड के पिता को उससे छीन लिया। मेरे पापा को भी 15 दिनों से अधिक अस्पताल में बिताने पड़े। बहुत कठिन समय था। घर लौटने के बावजूद वह मानसिक रूप से परेशान रहते थे। मैंने उनसे खुलकर बातें करनी शुरू की। एक दोस्त की तरह। पहले तो वह मुझे सिर्फ ध्यान से सुनते थे। धीरे-धीरे उन्होंने मुझे अपने बचपन एवं कालेज के दिनों के बहुत से किस्से सुनाए। तब एहसास हुआ कि वे बाहर से जितने सख्त दिखते हैं, भीतर से उतने ही कोमल एवं भावुक हैं। ठीक मेरी तरह। मैं बेवजह उन्हें गलत समझती थी।‘

साथ समय बिताने के हैं कई फायदे: समाजशास्त्री सुरेश प्रसाद कहते हैं,‘पिता-पुत्री हों या पिता-पुत्र, उनके रिश्ते जटिल हो सकते हैं,अगर उसमें सही से निवेश न किया जाए। क्योंकि संभव है कि बेटे एवं पिता या बेटी एवं पिता की रुचि,सोच-विचार अलग-अलग हों। जब उन्हें उचित सम्मान देंगे,तभी रिश्तों में मिठास आएगी। माना भी जाता है कि बच्चों के लिए पिता उनके रोल माडल से कम नहीं होते। बेटों पर खासतौर पर उनके पिता का प्रभाव रहता है।‘ रिसर्च भी बताते हैं कि पिता-पुत्र जितना अधिक साथ में समय बिताते हैं। भिन्न-भिन्न गतिविधियों में शामिल होते हैं,उससे बेटे के काग्निटिव,लिंग्विस्टिक एवं सोशल-इमोशनल डेवलपमेंट में मदद मिलती है। इसी प्रकार,पिता के साथ घनिष्ठ संबंध होने पर बेटियां कहीं अधिक मुखरता से अपनी बातें रख पाती हैं। अपने बारे में सकारात्मक सोचती हैं और पढ़ाई में बेहतर परफार्म करती हैं। ऐसा देखा गया है कि जब बेटी एवं पिता साथ में क्वालिटी टाइम बिताते हैं,तो उनके बीच विश्वास एवं सहयोग की मजबूत नींव पड़ती है। वे एक-दूसरे के अनुभवों से सीखते हैं।

बहुत अच्छे से निभाई है पिता के साथ मां की भूमिका: शेफ एवं लेखक सदफ हसन ने बताया कि जब मैं करीब नौ साल का था, तभी मां को पैरालिसिस अटैक आया था और पापा को पूरे घर की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी थी। इसलिए हमारे लिए उन्होंने पापा और मां दोनों की भूमिका निभाई। उन्होंने सिखाया कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। घर का काम सिर्फ औरतों का नहीं होता। लड़कों को भी सब कुछ करना होता है। उनकी सबसे बड़ी खूबी रही है कि चाहे कैसी भी परिस्थिति हो,उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती। पिछले महीने कोविड ने मां को हमसे हमेशा के लिए दूर कर दिया। लेकिन पापा पहले की तरह हमारे लिए स्ट्रांग पिलर की तरह डटे रहे। वह अंतर्मुखी हैं और मैं भी उन जैसा ही हूं। दोनों अपने-अपने कार्यों में मगन रहते हैं। एक-दूसरे के कामों में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करते और न ही जजमेंटल होते हैं। हां,जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे का सहयोग करने में पीछे नहीं रहते। उन्हें मेरी रेसिपीज ज्यादा पसंद नहीं आतीं, लेकिन बिरयानी एवं अंडे का हलवा जरूर पसंद करते हैं,क्योंकि उससे उन्हें दादी की याद आती है।

पापा बने जिगरी दोस्त: बाल कलाकार दिशिता सहगल ने बताया कि मेरी और पापा की बांडिंग पहले से काफी स्ट्रांग रही है। मैं उनसे अपना हर सीक्रेट शेयर करती हूं औऱ वे जो भी सलाह देते हैं, उन पर आंख मूंद कर विश्वास करती हूं। लाकडाउन के दौरान मुझे उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताने का मौका मिला। हमने साथ में आरेंज कैंडी, बिस्किट केक बनाए हैं। जब घर में छोटे मेहमान भाई का जन्म हुआ, तो पापा के साथ मिलकर उसकी देखभाल भी किया करती थी। हम दोनों रात में साथ बैठकर मूवी देखते हैं। दोस्त तो पहले भी थे, अब जिगरी दोस्त बन चुके हैं।

उम्मीदें बढ़ाती हैं हौसला: अंडर-19 क्रिकेटर इरफान अली ने बताया कि पापा ने मुझे बचपन से हर चीज के लिए सपोर्ट किया है। उन्होंने क्रिकेट खेलने के लिए भी हमेशा प्रोत्साहित किया। घर की आर्थिक हालत ठीक न होने के बावजूद कभी किसी बात के लिए ना नहीं कहा। खेल के जरूरी उपकरण लाकर दिए। खानपान का पूरा ध्यान रखा। पापा कम बोलते हैं। एक ही बात दोहराते हैं कि खेल एवं फिटनेस से कोई समझौता नहीं होना चाहिए। मैं उनसे अपने मन की बात बेझिझक शेयर कर लेता हूं। पहले टूर्नामेंट्स की वजह से घर पर अधिक समय नहीं रह पाता था। लेकिन कोरोना काल में परिवार के साथ अच्छा वक्त गुजार रहा हूं। नियमित रूप से जिम एवं फिटनेस ट्रेनिंग करता हूं। जब कभी मन उदास होता है,तो पापा यही समझाते हैं कि वक्त कभी ठहरता नहीं। यह समय भी चला जाएगा। उनकी उम्मीदें हौसला बढ़ाती हैं।

साथ मिलकर लगाए पौधे: यूट्यूबर स्वराज प्रखर ने बताया कि मैं जितना पिछले कुछ महीनों में पापा के साथ तरह-तरह की एक्टिविटीज की हैं, उनके साथ बैठकर फिल्में देखी और बातें की हैं, उतना पहले कभी नहीं किया था। मेरे स्कूल से आने तक वे कोर्ट जा चुके होते थे औऱ जब रात में लौटते थे, तो मैं सो चुका होता था। वीकेंड्स पर ही ठीक से मिलना हो पाता था या जब कभी पूरा परिवार ट्रैवल पर जाता था। लाकडाउन और कोरोना काल में हमने साथ मिलकर घर के टेरेस पर खूब सारे पौधे लगाए। साथ में योग एवं व्यायाम किया। हां, जब कभी ज्यादा मोबाइल देखता था, तो थोड़ी डांट पड़ती थी। दरअसल, पापा को जल्दी गुस्सा आ जाता है। लेकिन कुछ ही देर में वे शांत भी हो जाते हैं। मुझे वीडियो गेम्स देखने की आदत लग गई थी। जब पापा ने समझाया, तो मैंने कुछ क्रिएटिव करने का फैसला किया। यूट्यूब चैनल शुरू किया, जिसमें कोविड समेत अलग-अलग विषयों पर लोगों को जागरूक करता हूं।

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