छठ महापर्व का व्रत धैर्य की लेता है परीक्षा - डॉ रमाकांत शुक्ल
समाज में यदि लोग धैर्यवान हों सहनशील रहें तो इससे परस्पर सामंजस्य में बढ़ोतरी होती है। आज यह महापर्व दिल्ली की विविधतता से भरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अवयव है। इस महापर्व के आयोजन में समाज के सभी वर्गों की सहभागिता किसी न किसी रूप में सुनिश्चित होती है।
जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली। छठ महापर्व का व्रत धैर्य की परीक्षा लेता है। हमारी सहनशीलता को बढ़ाता है। समाज में यदि लोग धैर्यवान हों, सहनशील रहें तो इससे परस्पर सामंजस्य में बढ़ोतरी होती है। आज यह महापर्व दिल्ली की विविधतता से भरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अवयव है। इस महापर्व के आयोजन में समाज के सभी वर्गों की सहभागिता किसी न किसी रूप में सुनिश्चित होती है।
जाने- माने संस्कृत विद्वान व पद्मश्री से सम्मानित डॉ रमाकांत शुक्ल बताते हैं कि ऐसे लोग जिनकी जड़ें पूर्वांचल में नहीं हैं वे भी इस पर्व से भलीभांति परिचित हो चुके हैं। व्रतियों की मदद करना, घाटों के निर्माण में सहभागी बनना जैसी बातें, एक दूसरे क्षेत्र की संस्कृति को आपस में जोड़ती हैं।
डॉ शुक्ल बताते हैं कि छठ महापर्व अब किसी क्षेत्र, प्रदेश या राष्ट्र का नहीं बल्कि पूरे विश्व का त्योहार बन चुका है। भारत से बाहर भी जहां पूर्वांचल के लोग निवास करते हैं वे अपनी संस्कृति को अपने साथ लेकर गए और वहां छठ महापर्व पूरे विधि-विधान के साथ मनाते हैं। भारत के अलावा फिजी, मॉरीशस, सुरीनाम जैसे देशों में भी यह महापर्व मनाया जाता है। पहले इसको मनाने के लिए नदी के किनारे पर आयोजन किया जाता था मगर बदलते समय में अब इसका आयोजन स्विमिंग पुल, घर में अलग से टब रखकर, गांवों में अलग से कच्चा घाट बनाकर किया जा रहा है। कोरोना काल में अब इसे मनाने के लिए लोगों ने प्लास्टिक के टबों का इस्तेमाल करने का मन बनाया है। सोशल डिस्टेसिंग का पालन करने के लिए घर की बालकनी और छत पर इसका आयोजन किया जा रहा है।
यह पर्व एक तरह का पारिवारिक तप है जो व्रत के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत इसमें जुड़ा लोक तत्व है। यह ऐसा पर्व है जो कुटीर उद्योग को बढ़ावा देता है। कुंभकार हो या मालाकार सभी की इसमें कहीं न कहीं भूमिका रहती है। मिट्टी के बर्तन, फल, फल, बांस के बने उत्पादों का इस्तेमाल निश्चित तौर पर कुटीर उद्याेगों को बढ़ावा देता है।
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