आदेश न मानने वाले व्यक्ति को हाई कोर्ट ने सुनाई कारावास की सजा, जुर्माना लगाते हुए की सख्त टिप्पणी
भरण-पोषण का भुगतान करने के संबंध में दिए गए आदेश की जानबूझकर अवज्ञा करने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि अदालत के आदेशों की पूर्ण अवहेलना करने के लिए पति के कार्यो या चूक को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। भरण-पोषण का भुगतान करने के संबंध में दिए गए आदेश की जानबूझकर अवज्ञा करने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि अदालत के आदेशों की पूर्ण अवहेलना करने के लिए पति के कार्यो या चूक को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अगर इस तरह की अनुमति दी जाती है, तो अराजकता फैल जाएगी। पीठ ने कहा कि न्यायालयों के आदेशों को हल्के में लिया जाएगा और संबंधित व्यक्ति की मर्जी से उल्लंघन किया जाएगा।
उक्त टिप्पणी करते हुए पीठ ने आदेश की अवज्ञा करने वाले व्यक्ति को तीन माह के साधारण कारावास की सजा सुनाई। साथ ही दो हजार रुपये जुर्माना भी लगाया।
अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि व्यक्ति ने अपनी वास्तविक आय को पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के अनुपालन से बचने के लिए छिपाया था। पीठ ने कहा कि अदालत इस सजा को वापस लेने पर विचार करेगी अगर व्यक्ति दो सप्ताह के अंदर आदेश का पालन करके माफी मांगे। विफल रहने पर नौ दिसंबर को तिहाड़ जेल अधीक्षक के समक्ष आत्मसमर्पण करना होगा।
परिवार न्यायालय के बाद हाई कोर्ट का आदेश भी नहीं माना गया
पत्नी ने अवमानना याचिका में कहा था कि व्यक्ति ने परिवार न्यायालय के साथ ही हाई कोर्ट के आदेश की भी अवज्ञा की है। परिवार न्यायालय ने निर्देश दिया था कि व्यक्ति 35 हजार रुपये का मासिक भरण-पोषण दे। साथ ही यह भी कहा था कि छह महीने के भीतर किश्तों के माध्यम से भरण-पोषण का बकाया चुका सकता है। हाई कोर्ट ने भी परिवार न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम भरण-पोषण आदेश का पालन करने का निर्देश दिया था। अदालत के बार-बार दिए गए निर्देश के बावजूद भी वह अपने सभी खातों, आय और व्यय की स्पष्ट जानकारी देने में विफल रहा था।