दुर्गा पूजा के लिए छोटी मूर्तियां बना रहे कलाकार

मूर्तियों की कीमत एक हजार से 30 हजार रुपये के बीच है। सीआर पार्क स्थित चंद्रलोक सिनेमा परिसर में कलाकार मानिक पाल ने बताया कि कोरोना काल में काम काफी प्रभावित हुआ है। पहले पूरे एनसीआर से बड़ी-बड़ी मूर्तियों के आर्डर मिलते थे।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 03:59 PM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 03:59 PM (IST)
दुर्गा पूजा के लिए छोटी मूर्तियां बना रहे कलाकार
सीआर पार्क में मां दुर्गा की छोटी मूर्ति बनाते कारीगर। फोटो- विपिन शर्मा

नई दिल्ली [अरविंद कुमार द्विवेदी]। दुर्गा पूजा की तैयारियों के मद्देनजर कलाकार दो माह पहले से ही मां की मूर्तियां बनाना शुरू कर देते थे, लेकिन कोरोना के कारण अब तक सार्वजनिक रूप से दुर्गा पूजा की अनुमति नहीं मिली है। इस कारण मूर्ति बनाने वाले कलाकारों की रोजी-रोटी पर संकट है। कोरोना संबंधी दिशानिर्देशों व तमाम बंदिशों के कारण कलाकारों को इस बार बड़ी मूर्तियों के आर्डर नहीं मिल रहे हैं। इसलिए इस बार कलाकार छोटी-छोटी मूर्तियां ही बना रहे हैं। इनका कहना है कि लोग इस बार घर पर ही पूजा करेंगे। इसलिए छोटी मूर्तियों के आर्डर मिल रहे हैं।

इन मूर्तियों की कीमत एक हजार से 30 हजार रुपये के बीच है। सीआर पार्क स्थित चंद्रलोक सिनेमा परिसर में कलाकार मानिक पाल ने बताया कि कोरोना काल में काम काफी प्रभावित हुआ है। पहले पूरे एनसीआर से बड़ी-बड़ी मूर्तियों के आर्डर मिलते थे। दो-तीन माह पहले से काम शुरू कर देते थे, लेकिन कोरोना महामारी के कारण मांग घटकर आधी हो गई है। यही काम कर रहे एक अन्य कलाकार ने बताया कि पहले इतना काम होता था कि इस सीजन में उनकी अच्छी आय हो जाती थी, लेकिन अब तो घर चलाना मुश्किल हो रहा है।

सरोजनी नगर स्थित सिंधिया पोट्री कुम्हार गली में भी मां की मूर्तियों को सजाया-संवारा जा रहा है। यहां 60 कलाकार मां दुर्गा की मिट्टी की मूर्तियों में रंग भरते नजर आ रहे हैं। यहां मूर्तियों की 50 दुकानें हैं। इनमें ज्यादातर महिला कलाकार हैं, जो बनी हुई मूर्तियों में रंग भरते हैं और उनका शृंगार करती हैं।

यहां के हस्तकला संगठन समिति के अध्यक्ष रवि ने बताया कि कोरोना के कारण यहां मूर्तियों की डिमांड 50 प्रतिशत तक कम हो गई है। उन्होंने बताया कि यहां पर कोलकाता, पटना, जोधपुर, लखनऊ व उत्तम नगर से मिट्टी की बनी हुई मूर्तियां मंगवाते हैं। फिर उनमें रंग भरती हैं। उन्होंने बताया कि दिवाली के आसपास ही काम अच्छा चलता था, लेकिन कोरोना महामारी ने पूरा कारोबार चौपट कर दिया।

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