अहमद पटेल की मौत की वजह से दिल्ली की राजनीति में भी देखने को मिलेंगे बड़े स्तर पर बदलाव
कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल के निधन ने पार्टी के भीतर खलबली मचा दी है। उनके निधन से पार्टी में एक युग का अंत हो गया है। स्थानीय नेता हों या फिर राष्ट्रीय नेता सभी अहमद पटेल के साथ अपने अनुभव फेसबुक पर शेयर कर रहे हैं।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल के निधन ने पार्टी के भीतर खलबली मचा दी है। उनके निधन से पार्टी में एक युग का अंत हो गया है। स्थानीय नेता हों या फिर राष्ट्रीय नेता, सभी अहमद पटेल के साथ अपने अनुभव फेसबुक पर शेयर कर रहे हैं। उनके न रहने से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की राजनीति में तो ठहराव देखने को मिलेगा ही, दिल्ली की राजनीति भी बड़े स्तर पर प्रभावित होना तय है।
पटेल दिल्ली के कई बड़े नेताओं के 'गॉड फादर' थे। उनकी छत्रछाया में ही दिल्ली के कई नेताओं की राजनीति चमकी और वे सियासी बुलंदियों पर पहुंचे। इनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा से लेकर पूर्व सांसद संदीप दीक्षित तक का नाम शामिल है। 2019 के चुनाव में शीला दीक्षित का चुनावी मैदान में उतरना और अजय माकन के बाद प्रदेश का अध्यक्ष बनना भी उन्हीं की देन थी। दिल्ली के राजनेताओं में जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार, मंगतराम सिंघल, रमाकांत गोस्वामी, अनिल भारद्वाज, हारुन युसूफ, मनीष चतरथ आदि ऐसे नाम हैं जिन्हें अहमद पटेल की सरपरस्ती प्राप्त थी।
दिल्ली के कांग्रेसी कहते हैं कि अहमद पटेल से दोनों पीढ़ियों के संबंध थे। हाइकमान के करीबियों में वही एकमात्र शख्स थे, जिन्हें कोई भी जाकर आसानी से मिल सकता था। जिलाध्यक्षों से भी मिलने पर गुरेज नहीं करते थे। 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन को लेकर चली रस्साकशी के बाद उसका पटाक्षेप करने वाले भी अहमद पटेल थे।
अहमद पटेल शुरू से ही सोनिया गांधी के भरोसेमंद सिपहसलार थे, जिनकी बातों को हमेशा वजन दिया जाता था। यही वजह रही कि दिल्ली की राजनीति काफी हद तक उनके इर्द-गिर्द रहती थी। शीला दीक्षित के निधन के बाद कीर्ति आजाद को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना लगभग तय हो गया था। सभी पूर्व प्रदेश अध्यक्षों को फोन तक कर दिए गए थे, लेकिन अंतिम समय में सुभाष चोपड़ा को अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे भी पटेल की ही रणनीति थी। अब उनके न रहने से दिल्ली में राजनीति करने वाले कई वरिष्ठ नेताओं की राजनीति प्रभावित होना तय है। निकट भविष्य में कुछ बड़े बदलाव नजर आएं तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी।
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