Diwali 2021: गाय के गोबर से बनी लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां दे रही पर्यावरण संरक्षण का संदेश

गाय के गोबर से बनी यह मनमोहक लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच रही हैं। इसके साथ ही लोगों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही हैं।गाय के गोबर से बनने वाली मूर्तियों के अलावा यहां धूप-बत्ती व हवन सामग्री भी तैयार की जा रही है।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Fri, 29 Oct 2021 06:15 AM (IST) Updated:Fri, 29 Oct 2021 07:39 AM (IST)
Diwali 2021: गाय के गोबर से बनी लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां दे रही पर्यावरण संरक्षण का संदेश
गोशाला की ओर से यह आत्मनिर्भर भारत की ओर उठाया गया एक कदम भी है।

नई दिल्ली [शिप्रा सुमन]। घेवरा स्थित आयुर्वेदिक गोशाला में दीपावली को लेकर विशेष लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति बनाई गई है। गाय के गोबर से बनी यह मनमोहक लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच रही हैं। इसके साथ ही लोगों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही हैं। गोशाला की ओर से यह आत्मनिर्भर भारत की ओर उठाया गया एक कदम भी है। गाय के गोबर से बनने वाली मूर्तियों के अलावा यहां धूप-बत्ती व हवन सामग्री भी तैयार की जा रही है। दिवाली को देखते हुए इसे अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है।

प्राकृतिक मूर्तियां

गोशाला में काम कर रहे बंगाल के मूर्तिकार बिजय पाल ने बताया कि इन मूर्तियों को बनाने में 70 फीसदी गोबर का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा 30 फीसदी चिकनी मिट्टी के इस्तेमाल से मूर्तियां तैयार की जाती हैं। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने के लिए सांचे का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा मूर्तियों की रंगाई व अन्य सभी कार्य हाथ से ही होते हैं। उन्होंने बताया कि इन मूर्तियों में मशीन जैसी सफाई भले ही नहीं हो लेकिन यह बिल्कुल प्राकृतिक हैं। इससे बनाए गए धूप-बत्ती को पूजा-हवन में प्रयोग में लाया जाता है। स्थानीय लोग हमेशा इसकी मांग करते हैं। इनमें गोबर के अलावा गुग्गल, कपूर, देशी घी, लौंग, राल, अश्वगंधा जैसी आयुर्वेदिक चीजों का प्रयोग किया गया है।

पर्यावरण की शुद्धता

गोशाला के आयुर्वेदाचार्य वैद्य सूरज सुबरू ने बताया कि गोबर से बनी लक्ष्मी गणेश की सुंदर गोमय मूर्तियां पर्यावरण के अनुकूल है। उन्होंने बताया कि गोमय धूप-बत्ती का निर्माण किया है, जिसमें कई प्रकार की शुद्ध व सुगंधित सामग्री का इस्तेमाल किया गया है। सभी उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल हैं। इनके जलाने से पर्यावरण में मौजूद दूषित कण समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि आयुर्वेदिक गौशाला प्रबंधन ने लोगों से अपील की है कि वे ज्यादा से ज्यादा गोमय उत्पादों का इस्तेमाल करें। इससे पर्यावरण शुद्ध रहेगा। साथ ही देशव्यापी आत्मनिर्भर अभियान को बढ़ावा मिलेगा। गोशाला प्रबंधन के अनुसार शास्त्रों में गाय के गोबर में लक्ष्मी जी का वास बताया गया है। इसलिए इससे बनी मूर्तियों के पूजन का विशेष महत्व है। गौशाला के प्रधान का कहना है कि दिवाली के मौके पर इन मूर्तियों की खरीदारी उपहार देने के लिए भी की जा रही है।

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