Actor Pankaj Tripathi: 'संवाद लेखक विद्वान होते हैं, किरदार नहीं'; अभिनेता पंकज त्रिपाठी का विशेष Video साक्षात्कार
Exclusive Video Interview of Actor Pankaj Tripathi 20 साल पहले सिनेमा की जो भाषा थी उसमें काफी बदलाव आया है। तब स्त्री शब्द का उपयोग शायद नहीं होता लेकिन अब इस नाम से फिल्म बनी है। उनका मानना है कि OTT प्लेटफार्म से भी हिंदी को विस्तार मिला है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। पिछले कई वर्षो में हिंदी की कहानियां छोटे शहरों से निकल कर आ रही हैं, फिल्मों की कहानियां देसज हुई हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की कहानियों पर फिल्में बनने लगी हैं। जाहिर है वहां की भाषा और क्षेत्रीय शब्दावली संवाद में आने लगी हैं। हिंदी के जो नए लेखक हैं वे हिंदी इलाकों से आ रहे हैं, उनकी पकड़ हिंदी भाषा पर अधिक है। मैं कई बार अपनी स्क्रिप्ट इन लेखकों में से किसी एक को भेजता हूं और उनकी राय लेता हूं।
मेरा मानना है कि संवाद लेखक विद्वान होता है, किरदार नहीं। उसकी जो भाषा या शैली है या जिस शब्दावली में वह सहज होता है वही संवाद की भाषा रखता हूं। मैंने जब ‘गुड़गांव’ फिल्म की तो उसके किरदार के हिसाब से शैली अपनाई। ये कहना था मशहूर अभिनेता पंकज त्रिपाठी का, दैनिक जागरण के ‘हिंदी हैं हम’ के हिंदी उत्सव में। उन्होंने स्काटलैंड के एक रेस्तरां का किस्सा सुनाया जब हिंदी में बोलने की वजह से उनसे खाने के पैसे नहीं लिए गए।
पंकज मानते हैं कि 20 साल पहले सिनेमा की जो भाषा थी, उसमें काफी बदलाव आया है। तब स्त्री शब्द का उपयोग शायद नहीं होता, लेकिन अब इस नाम से फिल्म बनी है। उनका मानना है कि ओवर द टाप (ओटीटी) प्लेटफार्म की वजह से भी हिंदी को विस्तार मिला है। दूसरी भाषा के लोग जब सब-टाइटल के साथ फिल्म या वेब सीरीज देखते हैं तो उनके कानों में हिंदी शब्दों के स्वर जाते हैं।
पंकज त्रिपाठी से दैनिक जागरण की स्मिता श्रीवास्तव ने बातचीत की। हिंदी को समृद्ध करने के लिए दैनिक जागरण के उपक्रम ‘हिंदी हैं हम’ के अंतर्गत हिंदी दिवस के मौके पर एक पखवाड़े का हिंदी उत्सव मनाया जा रहा है। इसमें हर दिन ‘हिंदी हैं हम’ के फेसबुक पेज पर अलग-अलग क्षेत्र के लोगों से बातचीत की जाएगी।