अपनी हार से निराश होने के बजाय दृढ़ संकल्प आत्मसंयम एवं विश्वास को दर्शाता है
अस्वस्थ अभिमान में फंसा व्यक्ति स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझकर अपने इर्द-गिर्द एक मिथकीय संसार रच लेता है जो उसकी सफलता में बाधक बनता है। यह अहंकार कई बार उन पर भारी पड़ जाता है। इससे दूसरों के साथ उनके संबंध प्रभावित होने लगते हैं।
नई दिल्ली, अंशु सिंह। ओलिंपिक में हिस्सा लेने वाली पहली भारतीय महिला तलवारबाज भवानी देवी की जीत का सफर बेशक थम गया है, लेकिन उन्होंने अगले ओलिंपिक (2024) में वापसी के लिए तीव्र प्रतिबद्धता दिखाई है। अपनी हार से निराश होने के बजाय भवानी का यह दृढ़ संकल्प उनके आत्मसंयम एवं विश्वास को दर्शाता है। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि लोग क्या कहेंगे या सोचेंगे? वह अपनी धुन में रमी हुई हैं।
मनोचिकित्सकों के अनुसार, इसे स्वस्थ अभिमान कहेंगे। लेकिन जो लोग संशय में रहते हैं, हार या असफलता से शर्मसार महसूस करते हैं, जिन्हें अपनी क्षमताओं को लेकर अतिआत्मविश्वास होता है और जो दूसरों की सफलताओं व कार्यो का श्रेय लेने की कोशिश करते हैं, उन्हें हम अस्वस्थ अभिभान से ग्रसित कह सकते हैं। वरिष्ठ मनोचिकित्सक स्वाति भागचंदानी के शब्दों में, ऐसे व्यक्ति आलोचनाओं को स्वीकार नहीं कर पाते और न ही अपनी गलती मानते हैं। अमेरिकी लेखक एवं स्पीकर जान सी मैक्सवेल कहते हैं कि अभिमान दो प्रकार का होता है- स्वस्थ एवं अस्वस्थ। स्वस्थ अभिमान आत्मसम्मान एवं गौरव को प्रतिबिंबित करता है, जबकि अस्वस्थ अभिमान दंभ एवं अभिमान की आड़ में श्रेष्ठता साबित करने का प्रयास कहलाता है।
‘आयरन मैन’ का खिताब पाने वाले अभिषेक मिश्र को दौड़ने का जुनून है। उन्होंने अपने अनुभवों को लेकर किताब लिखी है। इनकी मानें, तो लोग अति-आत्मविश्वास से बचने की सलाह देते हैं, लेकिन इससे भी अधिक घातक होता है अस्वस्थ अभिमान। वह बताते हैं, ‘एक बार साइक्लिंग प्रतियोगिता में मैंने चार किलोमीटर की रेस पूरी कर ली थी, तभी अचानक जोर से आवाज हुई। करीब से एक अन्य प्रतिस्पर्धी गुजरा, तो मुङो लगा कि उसकी साइकिल का पहिया पंक्चर हुआ है, लेकिन अगले ही क्षण एहसास हुआ कि पहिया तो मेरी साइकिल का पंक्चर हुआ था। मैं 35 मिनट तक वहीं खड़ा रह गया। वह मेरा अस्वस्थ अभिमान ही तो था।’
मनोचिकित्सकों के अनुसार, अस्वास्थ्यकर अभिमान व्यक्तिगत श्रेष्ठता पर जोर देता है और अक्सर दूसरों पर ध्यान देने या उन्हें नीचा दिखाने के लिए किया जाता है। वहीं, स्वस्थ अभिमान प्रामाणिक क्षमता की बात करता है। लेखिका एवं मनोचिकित्सक अभिलाषा माथुर कहती हैं, जो लोग परिवार, समाज, देश का गौरव बढ़ाते हैं, वे सबके प्रेरणास्नेत बनते हैं। उनमें ईष्र्या या अहंकार की भावना नहीं होती। वहीं, अस्वस्थ अभिमान में फंसा व्यक्ति स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझकर अपने इर्द-गिर्द एक मिथकीय संसार रच लेता है, जो उसकी सफलता में बाधक बनता है। यह अहंकार कई बार उन पर भारी पड़ जाता है। इससे दूसरों के साथ उनके संबंध प्रभावित होने लगते हैं। स्वस्थ अभिमान जीवन को सुंदर एवं सुखमय बनाता है।