साहित्य और इतिहास को नए सिरे से समझने व व्याख्या करने की जरूरत: डा अवनिजेश अवस्थी

हिंदी साहित्य में कई धाराएं चलीं और चलाई गईं लेकिन राष्ट्रीय चेतना की धारा को हमेशा हाशिए पर ही रखा गया। जबकि आजादी से पहले का हिंदी साहित्य राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत रहा है। आजादी के बाद भी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का स्वर प्रबल रूप से नजर आता है।

By Pradeep ChauhanEdited By: Publish:Thu, 28 Oct 2021 09:11 PM (IST) Updated:Fri, 29 Oct 2021 07:45 AM (IST)
साहित्य और इतिहास को नए सिरे से समझने व व्याख्या करने की जरूरत: डा अवनिजेश अवस्थी
पीजीडीएवी कालेज के हिंदी विभाग एवं हिंदुस्तानी अकादमी, प्रयागराज द्वारा आयोजित कार्यक्रम।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। हिंदी साहित्य में कई धाराएं चलीं और चलाई गईं लेकिन राष्ट्रीय चेतना की धारा को हमेशा हाशिए पर ही रखा गया। जबकि आजादी से पहले का हिंदी साहित्य राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत रहा है। आजादी के बाद भी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का स्वर प्रबल रूप से नजर आता है लेकिन इस धारा के लेखकों और रचनाओं को हमेशा नजरअंदाज किया गया। अब यह स्थिति बदल रही है। आजादी का अमृत महोत्सव के तहत बुधवार को पीजीडीएवी कालेज के हिंदी विभाग एवं हिंदुस्तानी अकादमी, प्रयागराज द्वारा आयोजित 'हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना के स्वर' विषय पर विशेषज्ञों ने ये विचार रखे।

डा. अवनिजेश अवस्थी ने साहित्य और इतिहास की गुलामी को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझाते हुए यह कहा कि इतिहास से लेकर साहित्य तक में राष्ट्रीय चेतना को बहुत ही चालाकी के साथ हाशिए पर धकेला गया। इतिहास की घटनाओं और साहित्यिक रचनाओं का जो पाठ मध्ययुग से लेकर आधुनिक युग तक किया गया वह खास दृष्टि से ग्रसित पाठ था। इसलिए आज नए सिरे से साहित्य और इतिहास को समझने व उसकी व्याख्या करने की आवश्यकता है। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए डा. उदय प्रताप सिंह ने हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना विविध स्वरों काे ऐतिहासिक क्रम में रखा और भक्तिकाल से लेकर आधुनिक काल तक की राष्ट्रीय भाव धारा को रेखांकित किया।

पीजीडीएवी कालेज की प्राचार्या प्रो. कृष्णा शर्मा ने कालेज में राष्ट्रीय चेतना को लेकर होने वाली संगोष्ठियों और भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना के स्वर को भारतेंदु युग से लेकर छायावाद युग तक को रेखांकित किया। मुख्य वक्ता प्रो. अनिल राय ने भक्ति काव्य धारा में विद्यमान राष्ट्रीय चेतना के स्वर को अलग-अलग रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने भारतेंदु से लेकर जयशंकर प्रसाद, सुभद्रा कुमारी चौहान तक की रचनाओं का नया पाठ किया।

इस दौरान हिंदुस्तानी अकादमी, प्रयागराज से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'हिंदुस्तानी' के लक्ष्मीबाई पर केंद्रित अंक का लोकार्पण किया गया। इसके बाद 'हिंदी पत्रकारिता एवं स्वाधीनता आंदोलन' विषय पर भी एक सत्र आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने की। संगोष्ठी में डा. सच्चिदानंद जोशी, प्रो. निरंजन कुमार, डा. जितेंद्र कुमार सिंह संजय के अलावा कालेज के शिक्षक व छात्र मौजूद रहे।

chat bot
आपका साथी