Delhi News: जानिए कौन से कदम उठाने से पेयजल की समस्या हमेशा के लिए हो जाएगी खत्म
हरियाणा से दिल्ली में पेयजल आर्पूित के लिए यमुना का पानी लाने के दो माध्यम हैं। एक तो मुनक नहर से हैदरपुर जल शोधन संयंत्र के लिए पानी आता है। नांगलोई द्वारका व बवाना जल शोधन संयंत्र के लिए भी नहर से ही पानी आता है।
नई दिल्ली। हरियाणा से दिल्ली में पेयजल आर्पूित के लिए यमुना का पानी लाने के दो माध्यम हैं। एक तो मुनक नहर से हैदरपुर जल शोधन संयंत्र के लिए पानी आता है। नांगलोई, द्वारका व बवाना जल शोधन संयंत्र के लिए भी नहर से ही पानी आता है, जबकि वजीराबाद व चंद्रावल जल शोधन संयंत्र के लिए यमुना से पानी लिया जाता रहा है।
यमुना के पानी में ही अमोनिया की समस्या होती है। नहर से जो पानी आता है उसमें अमोनिया की मात्रा अधिक होने की समस्या नहीं होती, क्योंकि नहर का जल स्तर ऊंचा है। हैदरपुर से लेकर वजीराबाद तक पानी की दो लाइनें डाली गई हैं। इसका मकसद यह था कि सीधे यमुना से पानी लेने के बजाय पश्चिमी यमुना नहर से वजीराबाद व चंद्रावल जल शोधन संयंत्र में पानी लिया जाएगा।
लेकिन पश्चिमी यमुना नहर का पानी भी सीधे जल शोधन संयंत्र में लेने बजाय यमुना में गिराकर वजीराबाद जलाशय में भंडारण किया जाता था। इसलिए नहर व नदी दोनों का पानी आपस में मिल जाता था और पानी दूषित हो जाता था। वजीराबाद जलाशय से वजीराबाद व चंद्रावल जल शोधन संयंत्र के लिए पानी उठाया जाता है। इसका कारण यह था कि हैदरपुर से वजीराबाद तक डाली गई पानी की दो लाइन सीधे जल शोधन संयंत्र से नहीं जुड़ी थीं। इस वजह से यमुना में अमोनिया का स्तर बढ़ते ही वजीराबाद व चंद्रावल जल शोधन संयंत्र पूरी तरह बंद हो जाते थे और दिल्ली के बड़े हिस्से में पेयजल आर्पूित प्रभावित होती थी।
80 क्यूसेक क्षमता की एक और लाइन बिछाने की जरूरत
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी व्यवस्था भी इतनी सख्त नहीं है कि औद्योगिक कचरा गिराने वाली फैक्ट्रियों को बंद कर दे, इसलिए यमुना के पानी में प्रदूषण की समस्या तो रहेगी। जरूरी है कि जल बोर्ड हैदरपुर से वजीराबाद तक 80 क्यूसेक क्षमता की एक और लाइन बिछा दें जिससे नहर का पानी सीधा जल शोधन संयंत्र में जाएगा।
इससे अमोनिया के कारण पेयजल आर्पूित प्रभावित होने की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। वजीराबाद जल शोधन संयंत्र से 120 एमजीडी व चंद्रावल जल शोधन संयंत्र से 95 एमजीडी पानी आर्पूित होती है। इन दोनों संयंत्रों से करीब 20 एमजीडी पानी ओखला जल शोधन संयंत्र में भेजा जाता है। दूसरी बात यह है कि हरियाणा से यमुना का पानी ड्रेन नंबर आठ से आता है।
ड्रेन नंबर छह व आठ के बीच का बांध कई बार क्षतिग्रस्त हो जाता है। इस वजह से औद्योगिक कचरा ड्रेन नंबर छह से ड्रेन नंबर आठ में मिल जाता है और यमुना के पानी में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती है। हरियाणा सरकार ने इन दोनों ड्रेन के बीच दीवार खड़ी करने के लिए जल बोर्ड से पहले 28 करोड़ रुपये की मांग की थी। यह राशि भी बढ़कर 36 करोड़ हो गई है। अमोनिया की समस्या के निदान का एक रास्ता यह भी है कि दोनों ड्रेन के बीच पक्की दीवार बना दी जाए। (रणविजय सिंह से बातचीत पर आधारित)
जरूरत के मुताबिक डाले पाइप लाइन
जल बोर्ड का तकनीकी सदस्य रहते हुए मैंने उन दोनों लाइनों को सीधे जल शोधन संयंत्र से जोड़ने का कार्य कराया। इसका फायदा यह हुआ कि वजीराबाद व चंद्रावल जल शोधन संयंत्र के तीन प्लांट चलने लगे। यमुना में अमोनिया आए या ना आए कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अभी समस्या यह रह गई है कि जो दो लाइनें डाली गई हैं उनकी क्षमता 370 क्यूसेक पानी पहुंचाने की है जबकि वजीराबाद व चंद्रावल जल शोधन संयंत्र के लिए हमें कुल 450 क्यूसेक पानी की जरूरत होती है।
लिहाजा, अभी भी यमुना से पानी लेना पड़ता है। हैदरपुर से वजीराबाद के बीच जिस वक्त दो लाइनें बिछाई गईं यदि उसी वक्त जरूरत के मुताबिक पूरी क्षमता की पाइप लाइन डाली गई होती तो अमोनिया की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जाती।
(आरएस त्यागी, पूर्व तकनीकी सदस्य, जल बोर्ड।)
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