Delhi News: एनजीओ पर हाई कोर्ट ने लगाया एक लाख का जुर्माना, फाइल की थी इमारतों के ध्वस्तीकरण की याचिका

Delhi News दक्षिण दिल्ली के देवली में अनाधिकृत निर्माण का आरोप लगाते हुए 40 इमारतों के ध्वस्तीकरण की मांग को लेकर दायर याचिका को ब्लैकमेलिंग याचिका बताते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन प्रेरणा एक दिशा फाउंडेशन पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Mon, 01 Mar 2021 03:32 PM (IST) Updated:Mon, 01 Mar 2021 06:26 PM (IST)
Delhi News: एनजीओ पर हाई कोर्ट ने लगाया एक लाख का जुर्माना, फाइल की थी इमारतों के ध्वस्तीकरण की याचिका
हाई कोर्ट ने कहा, प्रतीत होता है ब्लैकमेलिंग के लिए दायर की गई है जनहित याचिका।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दक्षिण दिल्ली के देवली में अनाधिकृत निर्माण का आरोप लगाते हुए 40 इमारतों के ध्वस्तीकरण की मांग को लेकर दायर याचिका को ब्लैकमेलिंग याचिका बताते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन प्रेरणा एक दिशा फाउंडेशन पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने याचिका पर विचार करने से इन्कार करते हुए रिकॉर्ड पर लिया कि याचिककर्ता ने इमारतों के मालिकों को याचिका में पक्षकार भी नहीं बनाया है।

मुख्य पीठ ने कहा कि यह याचिका एक ब्लैकमेलिंग मुकदमे की तरह प्रतीत होती है। पीठ ने याचिका खारिज करते हुए एनजीओ को उक्त जुर्माना राशि कानूनी सेवा प्राधिकरण के पास जमा कराने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा कि किसी निर्माण की वैधता या अवैधता को साबित करने के लिए कड़े और ठोस सुबूत की जरूरत होती है। पीठ ने इसके साथ ही दक्षिण दिल्ली में अनाधिकृत निर्माण का आरोप लगाते हुए दायर की गई एक अन्य याचिका के याचिकाकर्ता पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने निर्माण की वैधता पर कोई दलील नहीं दी और निर्माण सामग्री सड़क पर पड़ी होने का मतलब अवैध निर्माण होना नहीं होता है। 

पीठ ने कहा कि निर्माण सामग्री का पड़ा होना निर्माण की अवैधता का अनुमान नहीं हो सकता है। याचिकाकर्ता ने इससे पहले सड़क किनारे पड़ी निर्माण सामग्री से जुड़ी फोटो दिखाते हुए अवैध निर्माण का आरोप लगाया था। 

दरअसल बीते कुछ सालों से हाइ कोर्ट में कई ऐसी याचिकाएं दायर की जा रही है जिनका किसी व्यक्ति विशेष से ही मतलब होता है। कई याचिकाएं बड़े वर्ग को प्रभावित करती है। कोर्ट के सामने भी कई बार ऐसी बातें आ चुकी हैं जिसमें ये देखा गया कि ये निजी लाभ के लिए दायर की गई हैं। इन चीजों को देखते हुए अब ऐसी याचिकाओं पर अधिक गंभीरता के साथ ध्यान नहीं दिया जा रहा है। 

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