अपनों के पास जाने की खो चुके थे आस गिरीश ने मिलवाया

दुबई में रहने वाले प्रवासी भारतीय गिरीश पंत ने 12 वर्षों में 1200 प्रवासियों को स्वदेश पहुंचाने में मदद की है।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Sun, 12 Jul 2020 11:04 PM (IST) Updated:Sun, 12 Jul 2020 11:04 PM (IST)
अपनों के पास जाने की खो चुके थे आस गिरीश ने मिलवाया
अपनों के पास जाने की खो चुके थे आस गिरीश ने मिलवाया

नई दिल्ली [रितु राणा]। नौकरी की तलाश में बड़ी संख्या में भारतीय सात समुंद्र पार दुबई जाकर मेहनत मजदूरी कर रहे हैं। इनमें से बहुत से लोग धोखे का शिकार हो जाते हैं तो कुछ मानव तस्करी का शिकार बनकर वहां पहुंचते हैं। ऐसे लोग के लिए गिरीश उम्मीद की वो किरण हैं, जो सैकड़ों लोगों के जीवन में रोशनी बिखेर चुकी है।

दुबई में रहने वाले प्रवासी भारतीय गिरीश पंत 12 वर्षों से दुबई में हैं और पिछले छह वर्षों में करीब 1200 प्रवासियों को उनके स्वदेश पहुंचाने में मदद कर चुके हैं। गिरीश ने फोन पर जागरण संवाददाता से बात करते हुए कहा कि कोरोनाकाल में भी वह निरंतर प्रवासियों की मदद में जुटे हुए हैं। गिरीश उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सादतपुर के रहने वाले हैं। वह दुबई में फंसे लोगों की मदद के लिए आगे आए हैं। निस्वार्थ भाव से वह अब तक विभिन्न देशों के 1200 लोगों को उनके घर भेजने में मदद कर चुके हैं। इसके लिए उन्हें भारत सरकार की ओर से राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा पिछले वर्ष 23 जनवरी को वाराणसी में प्रवासी भारतीय अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। गिरीश का दावा है कि सबसे कम उम्र में प्रवासी भारतीय अवॉर्ड प्राप्त करने वाले वह दिल्ली व उत्तराखंड के पहले व्यक्ति हैं।

लॉकडाउन में 200 लोग की मदद

दुबई भी कोरोना की चपेट से बच नहीं सका, वहां की सरकार ने लॉकडाउन लगाया। कामकाज बंद होने से प्रवासियों के सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया। ऐसे जरूरतमंद लोग की मदद के  लिए काउंसलेट ने वहां के प्रशासन से बातचीत कर एक इमारत ली, जहां 500 प्रवासियों को क्वारंटाइन कर उनके खाने-पीने सहित सारी व्यवस्थाएं की। वहीं, 200 लोेगों के रहने की व्‍यवस्‍था आबू धाबी के मंदिर व काउस्लेट द्वारा अलग से की गई। इसमें गिरीश ने भी अहम भूमिका निभाई। इस दौरान जो अन्य बीमारियों से मरे उनका पार्थिव शरीर उन्होंने काउंसलेट जनरल ऑफ इंडिया की मदद से कार्गो व वंदे मातरम मिशन से जरिए भारत पहुंचाया। करीब 150 लोगों ने भारत जाने के लिए गिरीश से गुहार लगाई तो कॉउंसलेट से बात करके उन्हें भी घर पहुंचाने में मदद की।

भारत ही नहीं अन्य देशों के प्रवासियों की भी करते हैं मदद

गिरीश पंत ने बताया कि विदेश में फंसे लोगों का दर्द उनसे देखा नहीं गया तो उन्होंने उनकी मदद करने का प्रण लिया। वह भारत ही नहीं बल्कि जर्मन, रूस, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, फिलीपींस आदि देशों के करीब 1200 लोग, जो मानव तस्करी व धोखाधड़ी का शिकार हुए, उन्हें उनके घर पहुंचाने में मदद कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि 2017 एक कंपनी के जहाज में देहरादून (उत्तराखंड) के निर्मल सिंह रावत 11 महीने तक फंसे रहे थे,वो जहाज पोर्ट से दस मील दूर पानी के अंदर था, इस दौरान गिरीश ने उनसे फोन पर बात की और उनका मनोबल बढ़ाया। फिर उसके 11 महीने बाद काउंसलेट जनरल ऑफ इंडिया की मदद से उसे जहाज से बाहर निकाला और उसे घर वापस पहुंचाया। उन्हें यूएसए द्वारा इंटरनेशनल यूथ लीडर फॉर क्लाइमेट अवॉर्ड 2018, श्रीलंका द्वारा वर्ल्ड आइकॉन अवॉर्ड 2109 समेत विदेश में फंसे नागरिकों की मदद के लिए कई अन्य अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।

भारतीय कला व संस्कृति को भी बढ़ाया

गिरीश ने दुबई में भारतीय संस्कृति और कला को भी बढ़ाया है। वह उत्तराखंड के कई संस्कृतिक कार्यक्रमों में किए हैं और खुद भी स्टेज शो किए हैं। पिछले चार-पांच वर्ष से कॉउंसलेट के साथ मिलकर विश्व योग दिवस पर काम कर रहे हैं। वहीं, हिंदी को बढ़ावा देने के लिए हिंदी उत्सव व कई अन्य कार्यक्रम भी कराते हैं और लोगों को भी इससे जोड़ रहे हैं। वह इंडियन पीपल फोरम यूएई के लेबर एंड कॉउंसल अफेयर के अध्यक्ष भी हैं।

विरासत में मिले समाजसेवा के संस्कार

सादतपुर निवासी नंदा बल्लभ पंत ने बताया कि वह भी जीवनभर समाजसेवा से जुड़े रहे और उन्हें देखते-देखते बचपन से ही उनके बेटे गिरीश में लोगों की मदद करने की भावना पैदा हो गई। गिरीश के दादा स्वर्गीय लक्ष्मी दत्त पंत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उसके अंदर समाज सेवा के गुर विरासत में मिले हैं। उसने हमेशा परिवार व समाज की मदद के लिए खुद को आगे रखा है।

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