दिल्ली हाइ कोर्ट ने भ्रष्टाचार के 25 साल पुराने मामले में एएसआइ को भेजा जेल
पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष दोषी के खिलाफ अपराध को साबित करने में कामयाब रहा है। सभी साक्ष्यों के आधार से साबित हुआ है कि दोषी रामनरेश ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए शिकायतकर्ता का नाम हटाने के नाम पर दस हजार रुपये रिश्वत की मांग की थी।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। भ्रष्टाचार के 25 साल पुराने मामले में निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए दिल्ली पुलिस के सहायक उप-निरीक्षक रामनरेश तिवारी की चुनाैती याचिका खारिज करते हुए की दिल्ली हाई कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया। 20 साल से जमानत पर बाहर राम नरेश को न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा की पीठ ने आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है। पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष दोषी के खिलाफ अपराध को साबित करने में कामयाब रहा है। सभी साक्ष्यों के आधार से साबित हुआ है कि दोषी रामनरेश ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए शिकायतकर्ता सुनील अग्रवाल का नाम हटाने के नाम पर दस हजार रुपये रिश्वत की मांग की थी।
अदालत ने ठुकरा दी दलील
अदालत ने फर्जी मामले में फंसाने की रामनरेश की दलील को भी ठुकरा दिया। पीठ कहा कि निचली अदालत के फैसले में कोई खामी नहीं है। उसे उसके अपराध के अनुसार सही सजा सुनाई गई है। निचली अदालत ने 26 अप्रैल, 2001 को विभिन्न धाराओं के तहत रामनरेश को दोषी ठहराते हुए तीन साल कैद और नौ हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनाई थी। रामनरेश ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने 23 मई 2001 को उसे जमानत पर रिहा कर दिया था।
यह है मामला
अभियोजन पक्ष के अनुसार मामला पुलिस चौकी शांति नगर से जुड़ा है। पीड़ित बाल किशन ने 4 जून 1996 में शिकायत दर्ज करवाई कि उनकी पुत्री का अपहरण सुनील अग्रवाल व उसके दोस्त ने कर लिया है। बाद में पता कि उनकी पुत्री ने सुनील के दोस्त के बेटे से प्रेम विवाह कर लिया। विवाह स्वीकार करने के कारण दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया था। हालांकि, इसके बावजूद भी रामनरेश ने सुनील को प्रताड़ित करते हुए मामले से नाम हटाने के बदले दस हजार रुपये रिश्वत की मांग की थी। हालांकि, रामनरेश को रिश्वत देने के बजाए सुनील ने जांच एजेंसी से संपर्क किया और केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) ने अपने कार्यस्थल पर पांच हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए रामनरेश को गिरफ्तार किया गया था।